मंगल द्वादश भाव में "भौम दोष" का निर्माण करता है जो जनसाधारण में मांगलिक दोष के नाम से जगप्रसिद्ध है। कहा जाता है कि अशुभ अवस्था में मंगल द्वादश भावस्थ हो तो जुठे आरोप या कलंक लगता है। जातक स्वयं स्वार्थी होता है तथा अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए दूसरों का उपकार भुला देतें है। विवाहित और दाम्पत्य सुख से रहित विवाह विच्छेद, डाइवोर्स आदि के प्रसंग उपस्थित होने के साथ कई अशुभ फल प्रदान करके सदैव अनिष्ट फल देने वाला होता है। अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु बेईमानी, चोरी और धर्म रहित कर्म करने पर नौकरी या कार्यरत किसी भी कर्म में उच्चपद से नीचे की और ले जाने वाला, धन का नाश करने वाला अपव्ययी होता है।
पापयुक्त मंगल से जातक को पाखंडी बना देता है। ऐसे जातक को कारागार, बंधन या जेल योग भी नसीब होता है। धन संचय नही हो पाता तथा जीवन में कई प्रकार के क्लेश से सम्पन्न होता है। शरीर गर्म रहती है या पसीना ज्यादा होता है तथा वायु एवं नेत्र रोग आदि की संभावना भी बनती है। कहा जाता है द्वादश भाव में मंगल होने पर उस जातक के साथ इन्द्रतुल्य शत्रु भी शस्त्र या किसी तरह के युद्ध मे भी हार जाता है। शुक्र के साथ हो तो दुर्व्यसनी, मीन या कर्कट राशि मे होने पर लोगों से मित्रता रखने वाला होता है। केतु के साथ होने पर स्त्री की मृत्यु तथा अग्नि भय आदि का फल प्रदान करता है। द्वादश भावस्थ मंगल सदैव अनिष्टकारी ही माना गया है। गुरु युक्त या गुरु के राशि मे शुभ संबंध में आवध्य होने पर अशुभता मे थोड़ी कमी अवश्य लाता है परंतु पूर्ण अशुभता का नाश नही होता। इस तरह द्वादस्थ मंगल हमेशा अमंगलकारी ही माना गया है।
मंगल विभिन्न भाव में -
मंगल के विशेष उपाय-
मूंगा धारण करें या ताम्बा धारण करें ( कन्या और मिथुन लग्न को छोड़कर ) । नीम का वृक्ष लगाएं अगर घर में लागतें हैं तो घर के वायुकोण ( north west ) दिशा में ही लगाएं किसी दूसरे दिशा में नहीं । भाई भाभी की सेवा करें कहना मानें , गायत्री का पाठ करें । बताशे धर्म स्थान में दे दें या रेवड़ियां( गुड़-तिल ) जल प्रवाह करें । मीठा भोजन करें, मसूर की दाल रात को सिरहाने रखकर भंगी को दे दें। हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी को सिंदूर और लाल रंग का चोला चढ़ाएं । चांदी का बेजोड़ कड़ा तांबे की कील लगाकर पहने ।लाल रंग की चीजों का दान करे, निःसंतान , काले गंजे व्येक्तियों से दूर रहें । खाने के बाद मेहमानों को मीठा खिलाना ( सौंफ और मिश्री ) । बेकार जंग लगे चाकू , हथियार घर में ना रखें । अशुभ मंगल के लिए संभव हो तो नृसिंह देव, माता बगलामुखी , हनुमान जी, कार्तिकेय और मंगल देव की पूजा अर्चना करते रहना चाहिए जिससे मंगल ग्रह के कुपित फल से बचें रहें ।
मंगल अशुभ कब होता है ?
घर में गड्ढे ज्यादा होना या पानी का गड्ढों में ज्यादा रहना। स्वाभाव क्रोधी होना। कुटुम्ब, भाई, बहन से झगड़ा विवाद आदि करना, रक्त या नाभि सम्बन्धी बीमारी होने पर। बड़े भाई और भाभी का अनादर करने पर, वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े होने पर, किसी निसंतान व्यक्ति से लिए गए जमीन पर रहने पर या निसंतान व्यक्ति से सम्बन्ध रखने पर। ऐय्याशी या जुआ आदि खेलने पर। घर पर कोई अग्निकांड होने पर, संतान पर कोई संकट आने पर या संतानों से कलह में लिप्त होने पर। घर के दक्षिण दिशा में दरवाजे या खिड़किया होने पर। कोर्ट केस या मुक़दमे में धन की हानि होने पर। बेमानी करने पर, किसी का खून करने पर, गुंडों जैसा आचरण करने पर। रक्तपात करने पर। खून की बीमारी अदि होने पर। प्रतिहिंसा परायण होने पर, निर्मम होने पर, तुरंत प्रतिक्रियावादी या तार्किक होने पर।
वेदों में मंगल का दान -
लाल मूंगा, गोधूम, मसूर की दाल, लाल या अरुणवर्ण वृष, (आभाव में सवा एक रूपए), गन्ने का गुड़, स्वर्ण, रक्तवस्त्र, लालकनेर का पुष्प, ताम्बा, सवस्त्र भोज्य सहित मंत्रो उच्चारण कर दान करें। मंगल मंत्र - ॐ हूं श्रीं मंगलाय। जपसंख्या - ८०००, देवी बगलामुखी, अधिदेवता स्कन्द, प्रत्यधिदेवता क्षिति, भरद्वाज गोत्र, क्षत्रिय, आवंत, चतुर्भुज,चतुरंगुल, दक्षिण दिशा, त्रिकोण आकृति, मेष वाहन, नृसिंह अवतार, पुष्पादि रक्तवर्ण, रक्तचंदन की मूर्ति, कुमकुम, धुप देवदारु, बलि खिचड़ी, समिध खदिर काष्ठ, दक्षिणा सवा रुपये सहित दान करें।
मंगल के विषय में -
मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। इन्हें ज्योतिष में क्रूर ग्रह माना जाता हैं। इनका वार मंगलवार है। इसके नक्षत्र मृगशिरा,चित्रा और धनिष्ठा हैं। बृहस्पति, चंद्र और सूर्य इनके मित्र ग्रह हैं।
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