द्वितीय भावगत अशुभ मंगल से जातक निर्दय, धन की कमी से असंतुस्ट, आत्मीय परिजनों से असंतुष्ट, गरीबी का मारा होता है। तेज़ आवाज के साथ तार्किक, समालोचक एवं प्रतिउत्तर देने में माहिर होने के कारणवश तर्क और विवादादि में सभी को परास्त करने वाला होता है परंतु इस कारणवश विवाद आदि भी जन्म लेता है। मंगल यदि गुरु युक्त या दृष्ट हों तो पर्याप्त धन का लाभ एवं परिजनों से सुख प्राप्त होता है। चमत्कार चिंतामणि के अनुसार जिस तरह बंदर के गले में मोती की माला होने पर भी बंदर के लिए निरर्थक होता है उसी तरह इसके जमीन जायदाद के भोग सुख में विलंब से जमीन रहते हुए भी कई वर्षों तक मकान या घर नही बन पाता। नेत्र एवं दन्त रोगी, व्यभिचारी, गरम खाने को भी तुरंत खा जाने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति बुद्धि हीन, धन-हीन, सबका विरोधी, कटुभाषी, अपव्ययी, क्रोधी, कुभोजी, जुए-सट्टे का शौकीन तथा स्त्री एवं भाइयों से कलह करने वाला होता है। शत्रु या पापयुक्त अथवा दृष्ट मङ्गल नेत्र-रोगी बनाता है। षष्ठेश युक्त हो तो नेत्र रोग अथवा आँख में फुली होती है। द्वितीय भाव में 'मङ्गल' निष्फल अर्थात् प्रभावहीन माना जाता है । यदि इसी भाव में चन्द्रमा भी साथ हो तो वह भी निष्फल हो जाता है। जन्म से धन का अभाव तथा अपर्याप्त धन से चिंतित रहता है। धन का नाश होना इनके लिए शुभ नही होता। जातक तार्किक एवं बुलंद आवाज का धनी तथा एक अच्छा वाचक आवश्य होता है। उससे तर्क करके कोई जीत नही पाता। मंगल राहु और शनि युक्त दृष्ट होने पर अशुभ बोलचाल वाला, गाली गलौज वाला होता है तथा बचपन से दरिद्रता उसका भाग्य बन जाता है। इस भाव में मंगल गुरू बृहस्पति से युक्त-दृष्ट या गुरू की राशि तथा गुरू के नक्षत्र में हों तो ही शुभ फल आशा बनती है।
मंगल अशुभ कब होता है ?
घर में गड्ढे ज्यादा होना या पानी का गड्ढों में ज्यादा रहना। स्वाभाव क्रोधी होना। कुटुम्ब, भाई, बहन से झगड़ा विवाद आदि करना, रक्त या नाभि सम्बन्धी बीमारी होने पर। बड़े भाई और भाभी का अनादर करने पर, वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े होने पर, किसी निसंतान व्यक्ति से लिए गए जमीन पर रहने पर या निसंतान व्यक्ति से सम्बन्ध रखने पर। ऐय्याशी या जुआ आदि खेलने पर। घर पर कोई अग्निकांड होने पर, संतान पर कोई संकट आने पर या संतानों से कलह में लिप्त होने पर। घर के दक्षिण दिशा में दरवाजे या खिड़किया होने पर। कोर्ट केस या मुक़दमे में धन की हानि होने पर। बेमानी करने पर, किसी का खून करने पर, गुंडों जैसा आचरण करने पर। रक्तपात करने पर। खून की बीमारी अदि होने पर। प्रतिहिंसा परायण होने पर, निर्मम होने पर, तुरंत प्रतिक्रियावादी या तार्किक होने पर।
मंगल के विषय में -
मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। इन्हें ज्योतिष में क्रूर गृह माना जाता हैं। इनका वार मंगलवार है। इसके नक्षत्र मृगशिरा,चित्रा और धनिष्ठा हैं। बृहस्पति, चंद्र और सूर्य इनके मित्र गृह हैं। होता है। शत्रु या पापयुक्त अथवा दृष्ट मङ्गल नेत्र-रोगी बनाता है। षष्ठेश युक्त हो तो नेत्र रोग अथवा आँख में फुली होती है। द्वितीय भाव में 'मङ्गल' निष्फल अर्थात् प्रभावहीन माना जाता है। यदि इसी भाव में चन्द्रमा भी साथ हो तो वह भी निष्फल हो जाता है। जन्म से धन का अभाव तथा अपर्याप्त धन से चिंतित रहता है। धन का नाश होना इनके लिए शुभ नही होता।
मंगल के विशेष उपाय-
मूंगा धारण करें या ताम्बा धारण करें ( कन्या और मिथुन लग्न को छोड़कर )। नीम का वृक्ष लगाएं अगर घर में लागतें हैं तो घर के वायुकोण ( north west ) दिशा में ही लगाएं किसी दूसरे दिशा में नहीं। भाई भाभी की सेवा करें कहना मानें , गायत्री का पाठ करें। बताशे धर्म स्थान में दे दें या रेवड़ियां( गुड़-तिल ) जल प्रवाह करें। मीठा भोजन करें, मसूर की दाल रात को सिरहाने रखकर भंगी को दे दें। हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी को सिंदूर और लाल रंग का चोला चढ़ाएं। चांदी का बेजोड़ कड़ा तांबे की कील लगाकर पहने। लाल रंग की चीजों का दान करे, निःसंतान , काले गंजे व्येक्तियों से दूर रहें। खाने के बाद मेहमानों को मीठा खिलाना ( सौंफ और मिश्री )। बेकार जंग लगे चाकू, हथियार घर में ना रखें। अशुभ मंगल के लिए संभव हो तो नृसिंह देव, माता बगलामुखी , हनुमान जी, कार्तिकेय और मंगल देव की पूजा अर्चना करते रहना चाहिए जिससे मंगल ग्रह के कुपित फल से बचें रहें।
मंगल अशुभ कब होता है ?
घर में गड्ढे ज्यादा होना या पानी का गड्ढों में ज्यादा रहना। स्वाभाव क्रोधी होना। कुटुम्ब, भाई, बहन से झगड़ा विवाद आदि करना, रक्त या नाभि सम्बन्धी बीमारी होने पर। बड़े भाई और भाभी का अनादर करने पर, वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े होने पर, किसी निसंतान व्यक्ति से लिए गए जमीन पर रहने पर या निसंतान व्यक्ति से सम्बन्ध रखने पर। ऐय्याशी या जुआ आदि खेलने पर। घर पर कोई अग्निकांड होने पर, संतान पर कोई संकट आने पर या संतानों से कलह में लिप्त होने पर। घर के दक्षिण दिशा में दरवाजे या खिड़किया होने पर। कोर्ट केस या मुक़दमे में धन की हानि होने पर। बेमानी करने पर, किसी का खून करने पर, गुंडों जैसा आचरण करने पर। रक्तपात करने पर। खून की बीमारी अदि होने पर। प्रतिहिंसा परायण होने पर, निर्मम होने पर, तुरंत प्रतिक्रियावादी या तार्किक होने पर।
वेदों में मंगल का दान -
लाल मूंगा, गोधूम, मसूर की दाल, लाल या अरुणवर्ण वृष, ( आभाव में सवा एक रूपए ), गन्ने का गुड़, स्वर्ण, रक्तवस्त्र, लालकनेर का पुष्प, ताम्बा, सवस्त्र भोज्य सहित मंत्रो उच्चारण कर दान करें। मंगल मंत्र - ॐ हूं श्रीं मंगलाय। जपसंख्या- ८०००, देवी बगलामुखी, अधिदेवता स्कन्द, प्रत्यधिदेवता क्षिति, भरद्वाज गोत्र, क्षत्रिय, आवंत, चतुर्भुज,चतुरंगुल, दक्षिण दिशा, त्रिकोण आकृति, मेष वाहन, नृसिंह अवतार, पुष्पादि रक्तवर्ण, रक्तचंदन की मूर्ति, कुमकुम, धुप देवदारु, बलि खिचड़ी, समिध खदिर काष्ठ, दक्षिणा सवा रुपये सहित दान करें।
मंगल के विषय में -
मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। इन्हें ज्योतिष में क्रूर ग्रह माना जाता हैं। इनका वार मंगलवार है। इसके नक्षत्र मृगशिरा,चित्रा और धनिष्ठा हैं। बृहस्पति, चंद्र और सूर्य इनके मित्र ग्रह हैं।
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