मंगल सप्तम भाव में हो तो जातक को स्त्री या पुरुष से अशांति लाभ होता है। दुर्बल मंगल सप्तम भाव में हो तो स्त्री या पुरुष की हानि होती है तथा जातक को भिन्न प्रकार की दुर्भावना व दुविधाओं की प्राप्ति हेतु चित्त भ्रमित करता है। शत्रु या विरुद्ध पक्ष के मानसिक या शारीरिक आघात से वह बार बार पराजित होता है। ऐसा जातक वाणिज्य या किसी अन्य कार्य हेतु घर से बाहर जाने पर शीघ्र प्रत्यागमन नही कर पाता और वापस लौटने मे विलंब होता है। उसके कई कामों में विघ्न की उत्पत्ति होती है। शारीरिक, आर्थिक, गार्हस्थ एवं स्त्री-सुख से रहित होकर स्त्री से सम्बंध का नाशक होता है। साझीदारी से उसकी अनबन रहती है। ऐसा व्यक्ति कटुभाषी, धूर्त, मूर्ख, शत्रु-पीड़ित, स्त्री से अनादर पाने वाला, ईष्यालु, घातकी, धन-नाशक, व्यर्थ-चिन्तित रहने वाला, शीघ्र क्रुद्ध हो जाने वाला एवं स्त्री-पक्ष या पुरुष पक्ष से खिन्न तथा दुःखी होता है।
द्विभार्या या द्विपुरुष या उससे से ज्यादा स्त्री पुरुष योग वाला फल देता है। यदि मङ्गल उच्च का अथवा स्वग्रही हो तो जातक धन आदि से सुखी होता है। उसकी एक ही स्त्री होती है, परन्तु वह चंचला अथवा दुष्ट स्वभाव वाली होती है। यदि पापग्रह से युत हो तो कमर मे दर्द आदि रोग की संभावना बनी रहती है। मंगल मेष, वृश्चिक, अथवा मकर राशि का हो तो स्त्री सुख देता है लेकिन स्त्री का या पुरुष का स्वभाव उग्र ही बना रहता है तथा उग्र स्त्री या पुरुष से ही संबंध बनाने का दुर्भाग्य प्राप्त करता है। मंगल शुभ भाव के अधिपति होकर शुभ राशि या वर्गगत होकर गुरु दृष्ट होने पर ही कुछ शुभ फलों की आशा की जा सकती है वरना सप्तमस्थ मंगल के अशुभ फल ही ज्यादा मिलते हैं। अशुभ मंगल जिस किसी भाव में होते है उस भाव से संबंधित विषय में जातक को जीवन भर असंतोष बना रहता है। आदर्श पति या पत्नी उसे नहीं मिल पाती।
मंगल विभिन्न भाव में -
मंगल के विशेष उपाय-
मूंगा धारण करें या ताम्बा धारण करें ( कन्या और मिथुन लग्न को छोड़कर )। नीम का वृक्ष लगाएं अगर घर में लागतें हैं तो घर के वायुकोण ( north west ) दिशा में ही लगाएं किसी दूसरे दिशा में नहीं। भाई भाभी की सेवा करें कहना मानें , गायत्री का पाठ करें। बताशे धर्म स्थान में दे दें या रेवड़ियां( गुड़-तिल ) जल प्रवाह करें। मीठा भोजन करें, मसूर की दाल रात को सिरहाने रखकर भंगी को दे दें। हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी को सिंदूर और लाल रंग का चोला चढ़ाएं। चांदी का बेजोड़ कड़ा तांबे की कील लगाकर पहने। लाल रंग की चीजों का दान करे, निःसंतान, काले गंजे व्येक्तियों से दूर रहें। खाने के बाद मेहमानों को मीठा खिलाना ( सौंफ और मिश्री ) बेकार जंग लगे चाकू , हथियार घर में ना रखें। अशुभ मंगल के लिए संभव हो तो नृसिंह देव, माता बगलामुखी , हनुमान जी, कार्तिकेय और मंगल देव की पूजा अर्चना करते रहना चाहिए जिससे मंगल ग्रह के कुपित फल से बचें रहें।
मंगल अशुभ कब होता है ?
घर में गड्ढे ज्यादा होना या पानी का गड्ढों में ज्यादा रहना। स्वाभाव क्रोधी होना। कुटुम्ब, भाई, बहन से झगड़ा विवाद आदि करना, रक्त या नाभि सम्बन्धी बीमारी होने पर, बड़े भाई और भाभी का अनादर करने पर, वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े होने पर, किसी निसंतान व्यक्ति से लिए गए जमीन पर रहने पर या निसंतान व्यक्ति से सम्बन्ध रखने पर। ऐय्याशी या जुआ आदि खेलने पर। घर पर कोई अग्निकांड होने पर, संतान पर कोई संकट आने पर या संतानों से कलह में लिप्त होने पर। घर के दक्षिण दिशा में दरवाजे या खिड़किया होने पर। कोर्ट केस या मुक़दमे में धन की हानि होने पर। बेमानी करने पर, किसी का खून करने पर, गुंडों जैसा आचरण करने पर। रक्तपात करने पर। खून की बीमारी अदि होने पर। प्रतिहिंसा परायण होने पर, निर्मम होने पर, तुरंत प्रतिक्रियावादी या तार्किक होने पर।
वेदों में मंगल का दान -
लाल मूंगा, गोधूम, मसूर की दाल, लाल या अरुणवर्ण वृष, (आभाव में सवा एक रूपए), गन्ने का गुड़, स्वर्ण, रक्तवस्त्र, लालकनेर का पुष्प, ताम्बा, सवस्त्र भोज्य सहित मंत्रो उच्चारण कर दान करें। मंगल मंत्र - ॐ हूं श्रीं मंगलाय। जपसंख्या- ८०००, देवी बगलामुखी, अधिदेवता स्कन्द, प्रत्यधिदेवता क्षिति, भरद्वाज गोत्र, क्षत्रिय, आवंत, चतुर्भुज,चतुरंगुल, दक्षिण दिशा, त्रिकोण आकृति, मेष वाहन, नृसिंह अवतार, पुष्पादि रक्तवर्ण, रक्तचंदन की मूर्ति, कुमकुम, धुप देवदारु, बलि खिचड़ी, समिध खदिर काष्ठ, दक्षिणा सवा रुपये सहित दान करें।
मंगल के विषय में -
मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। इन्हें ज्योतिष में क्रूर ग्रह माना जाता हैं। इनका वार मंगलवार है। इसके नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा हैं। बृहस्पति, चंद्र और सूर्य इनके मित्र ग्रह हैं।
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