मंगल पंचम भाव अशुभ मे हो तो जातक स्त्री, पुत्र व बन्धु द्वारा असुखी होता है। ऐसा व्येक्ति की पाचन शक्ति या जठरग्नि बलवान, चंचल प्रकृति का एवं कफ आदि का रोग होता है। उसका मन सर्वदा पाप में आसक्त रहता है। ज्योतिष मत अनुसार पंचमस्थ मंगल से अपुत्रक योग होता है तथा दैवीय कृपा द्वारा पुत्र जन्म होने पर भी उस पुत्र के असमय काल द्वारा अकाल मृत्यु को प्राप्त करने का भय बना रहता है। मंगल स्वक्षेत्र, उच्च या मित्रक्षेत्र, गुरु दृष्ट होने पर अशुभ फलों में कुछ कमी अवश्य लाता है परंतु पूर्ण रूप से शुभ फलों की प्राप्ति नही होती। नीचस्थ, शत्रु क्षेत्र या शत्रु दृष्ट पंचम भावस्थ मंगल जातक को दुःख प्रदान करता है तथा संतान द्वारा नियत शोकलाभ को प्राप्त करता है। संतानों से उसे संतुष्टि नही होती। जातक स्वंय क्रूर बुद्धि वाला होता है। जातक बुद्धिहीन,धनहीन,चंचल,सुखहीन,पापकर्मी, मन ही मन जलने वाला, अधिक भोजन करने वाला, कपटी छली व्यसनी,उदर-रोगी एवं कफ-वायु-रोगी होता है। मंगल हमेशा बृहस्पति युक्त, दृष्ट होने पर किंचित शुभफल प्रदान करता है। अपनी गर्भस्थ अथवा उत्पन्न हुई संतान को भी नष्ट कर देता है अर्थात् पत्नी का गर्भपात होता है। मंगल गुरु युक्त होने पर ऐसो आराम की जिंदगी बिताने वाला, सुखी तथा वित्तवान होता है।
मंगल विभिन्न भाव में -
मंगल अशुभ कब होता है ?
घर में गड्ढे ज्यादा होना या पानी का गड्ढों में ज्यादा रहना। स्वाभाव क्रोधी होना। कुटुम्ब, भाई, बहन से झगड़ा विवाद आदि करना, रक्त या नाभि सम्बन्धी बीमारी होने पर। बड़े भाई और भाभी का अनादर करने पर, वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े होने पर, किसी निसंतान व्यक्ति से लिए गए जमीन पर रहने पर या निसंतान व्यक्ति से सम्बन्ध रखने पर। ऐय्याशी या जुआ आदि खेलने पर। घर पर कोई अग्निकांड होने पर, संतान पर कोई संकट आने पर या संतानों से कलह में लिप्त होने पर। घर के दक्षिण दिशा में दरवाजे या खिड़किया होने पर। कोर्ट केस या मुक़दमे में धन की हानि होने पर। बेमानी करने पर, किसी का खून करने पर, गुंडों जैसा आचरण करने पर। रक्तपात करने पर। खून की बीमारी अदि होने पर। प्रतिहिंसा परायण होने पर, निर्मम होने पर, तुरंत प्रतिक्रियावादी या तार्किक होने पर।
वेदों में मंगल का दान -
लाल मूंगा, गोधूम, मसूर की दाल, लाल या अरुणवर्ण वृष, (आभाव में सवा एक रूपए), गन्ने का गुड़, स्वर्ण, रक्तवस्त्र, लालकनेर का पुष्प, ताम्बा, सवस्त्र भोज्य सहित मंत्रो उच्चारण कर दान करें। मंगल मंत्र -ॐ हूं श्रीं मंगलाय। जपसंख्या-८०००, देवीबगलामुखी, अधिदेवता स्कन्द, प्रत्यधिदेवता क्षिति, भरद्वाज गोत्र, क्षत्रिय, आवंत, चतुर्भुज,चतुरंगुल, दक्षिण दिशा, त्रिकोण आकृति, मेष वाहन, नृसिंह अवतार, पुष्पादि रक्तवर्ण, रक्तचंदन की मूर्ति, कुमकुम, धुप देवदारु, बलि खिचड़ी, समिध खदिर काष्ठ, दक्षिणा सवा रुपये सहित दान करें।
मंगल के विषय में -
मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। इन्हें ज्योतिष में क्रूर ग्रह माना जाता हैं। इनका वार मंगलवार है। इसके नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा हैं। बृहस्पति, चंद्र और सूर्य इनके मित्र ग्रह हैं।