मंगल अष्टम भाव में हो तो बुद्धि का अंधापन, दुर्भाग्य ही प्रदान करता है स्वजन बुरे या भले जो भी हों जातक दूसरों के सामने स्वजनों की निंदा अवश्य करता है और इस तरह वह स्वजन निन्दूक हो जाता है। अष्टम भाव में अगर मंगल हो तो ज्योतिषीय सूत्र अनुसार कुंडली में उपस्थित शुभ ग्रह या नवग्रहगण शुभ फल देने में असमर्थ होते है। "चमत्कार चिंतामणि" के अनुसार क्या ऐसे जातक अपने दोस्तों या परिजनों से मैत्रीपूर्ण सदव्यवहार करने पर भी क्या वे लोग जातक से शत्रुवत व्यवहार नही करते? ऐसा जातक का यत्न से किसी की कार्य के आरंभ करने पर भी नाना प्रकार के घटना या उपसर्ग के उपस्थित होकर विघ्न उत्पन्न करता है। अष्टम भावगत मंगल केवल बृहस्पति युत या दृष्ट होने पर ही अशुभ घटनाओं के साथ कुछ शुभ फल भी प्राप्त होता है। मंगल के क्रूर स्वभाव केवल बृहस्पति ही नियंत्रित कर पाने में समर्थ होते है।
जातक अप्रिय बोलने वाला, चिन्तातुर, रक्त-विकार- रोगी स्वयं सम्मान देने पर भी बदले में भित्रों से शत्रुता पाने वाला ,कार्य के अनुकूल उद्योग करने पर भी विपरीत फल पाने वाला स्त्री-सुख से हीन, खर्चीला, चोर , शस्त्र तथा अग्नि से भय पाने वाला व्यसनी, कठोरभाषी, क्रूर, उन्मत्त व्यसनी, ईष्ष्यालु चित्त वाला पर-निन्दूक होता है। मङ्गल शुभ ग्रह युक्त हो तो जातक निरोगी तथा दीर्घायु होता है। स्वग्रही हो तो भी दीर्घायु होती है। पाप ग्रह युक्त हो तो क्षय, वात रोग अथ वा मूत्ररोग से पीड़ित रहता है। यदि मङ्गले उच्च का हो तो जातक सुख भोगकर मृत्यु पाता है। क्षीण मङ्गल हो तो जातक को बवासीर, गुप्तरोग, रक्तस्राव का रोग हो जाता है। अष्टमस्थ शुभ मङ्गल वाले जातक को विवाह होने के बाद लाभ होता है, परन्तु बचत में शून्य रहता है। यदि मगल नीच का अथवा शत्रुक्षेत्री हो तो जातक की मृत्यु किसी दुर्घटना में होती है।
मंगल विभिन्न भाव में -
मंगल के विशेष उपाय-
मूंगा धारण करें या ताम्बा धारण करें ( कन्या और मिथुन लग्न को छोड़कर )। नीम का वृक्ष लगाएं अगर घर में लागतें हैं तो घर के वायुकोण ( north west ) दिशा में ही लगाएं किसी दूसरे दिशा में नहीं। भाई भाभी की सेवा करें कहना मानें , गायत्री का पाठ करें। बताशे धर्म स्थान में दे दें या रेवड़ियां( गुड़-तिल ) जल प्रवाह करें। मीठा भोजन करें, मसूर की दाल रात को सिरहाने रखकर भंगी को दे दें। हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी को सिंदूर और लाल रंग का चोला चढ़ाएं। चांदी का बेजोड़ कड़ा तांबे की कील लगाकर पहने। लाल रंग की चीजों का दान करे, निःसंतान, काले गंजे व्येक्तियों से दूर रहें। खाने के बाद मेहमानों को मीठा खिलाना ( सौंफ और मिश्री ), बेकार जंग लगे चाकू, हथियार घर में ना रखें। अशुभ मंगल के लिए संभव हो तो नृसिंह देव, माता बगलामुखी, हनुमान जी, कार्तिकेय और मंगल देव की पूजा अर्चना करते रहना चाहिए जिससे मंगल ग्रह के कुपित फल से बचें रहें।
मंगल अशुभ कब होता है ?
घर में गड्ढे ज्यादा होना या पानी का गड्ढों में ज्यादा रहना। स्वाभाव क्रोधी होना। कुटुम्ब, भाई, बहन से झगड़ा विवाद आदि करना, रक्त या नाभि सम्बन्धी बीमारी होने पर। बड़े भाई और भाभी का अनादर करने पर, वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े होने पर, किसी निसंतान व्यक्ति से लिए गए जमीन पर रहने पर या निसंतान व्यक्ति से सम्बन्ध रखने पर। ऐय्याशी या जुआ आदि खेलने पर। घर पर कोई अग्निकांड होने पर, संतान पर कोई संकट आने पर या संतानों से कलह में लिप्त होने पर। घर के दक्षिण दिशा में दरवाजे या खिड़किया होने पर। कोर्ट केस या मुक़दमे में धन की हानि होने पर। बेमानी करने पर, किसी का खून करने पर, गुंडों जैसा आचरण करने पर, रक्तपात करने पर, खून की बीमारी अदि होने पर, प्रतिहिंसा परायण होने पर, निर्मम होने पर, तुरंत प्रतिक्रियावादी या तार्किक होने पर।
वेदों में मंगल का दान -
लाल मूंगा, गोधूम, मसूर की दाल, लाल या अरुणवर्ण वृष, (आभाव में सवा एक रूपए), गन्ने का गुड़, स्वर्ण, रक्तवस्त्र, लालकनेर का पुष्प, ताम्बा, सवस्त्र भोज्य सहित मंत्रो उच्चारण कर दान करें। मंगल मंत्र - ॐ हूं श्रीं मंगलाय। जपसंख्या- ८०००, देवी बगलामुखी, अधिदेवता स्कन्द, प्रत्यधिदेवता क्षिति, भरद्वाज गोत्र, क्षत्रिय, आवंत, चतुर्भुज,चतुरंगुल, दक्षिण दिशा, त्रिकोण आकृति, मेष वाहन, नृसिंह अवतार, पुष्पादि रक्तवर्ण, रक्तचंदन की मूर्ति, कुमकुम, धुप देवदारु, बलि खिचड़ी, समिध खदिर काष्ठ, दक्षिणा सवा रुपये सहित दान करें।
मंगल के विषय में -
मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। इन्हें ज्योतिष में क्रूर ग्रह माना जाता हैं। इनका वार मंगलवार है। इसके नक्षत्र मृगशिरा,चित्रा और धनिष्ठा हैं। बृहस्पति, चंद्र और सूर्य इनके मित्र ग्रह हैं।
अन्य सभी ग्रह-