मंगल चतुर्थ भाव में (mars in fourth house)

Kaushik sharma
मंगल चतुर्थ भाव में


मंगल चतुर्थ भाव में शुभ हों तो जातक को भूमि, भवन, जमीन-जायदाद आदि सभी तरह से शुभ फल प्रदान तो करता है परंतु विवाह आदि के विचार से भौमदोष या मांगलिक दोष इत्यादि से दूषित होता है जिससे स्त्री हानि या स्वामी हानि की संभावना बनी रहती है। दुर्बल या अशुभ अवस्था को प्राप्त मंगल से भूमि या जमीन जायदाद में हानि, मातृपीड़ा, पारिवारिक अशांति एवं अभद्र मित्रों द्वारा क्षति एवं मच्छरों से पूर्ण घर में उसका निवास होता है ऐसा जातक मित्र सुखरहित, लम्बे शरीर तथा कठोर हृदय बाला, सदेव ऋणग्रस्त,  जातक दीन-हीन, बन्धु-विहीन, अल्पमातृ-सुख पाने वाला, मित्र तथा बहिन से कष्ट एवं सर्वदा गृह में कलह का वातावरण बना रहता है। धनु या मीन राशि का मंगल हो तो शुभ तथा परदेश से धन लाभ आदि के अवसर लाता है। मेष, वृश्चिक या मकर राशि का मंगल हो तो भूमि, भवन एवं वाहन का लाभ तथा तुला में उत्तम फल, सिंह या मकर में गुरु आदि शुभ ग्रह से दृष्ट होने पर स्त्री सुख सुख प्राप्त होता है। क्रूरता का कारक ग्रह मंगल चतुर्थ भावस्थ होने से मन क्रूर मानसिकता की और अग्रसर होता है जिससे क्षतिग्रस्त होकर भविष्य में अनुताप का कारण बनता है।

मंगल विभिन्न भाव में -


मंगल के विशेष उपाय-

मूंगा धारण करें या ताम्बा धारण करें ( कन्या और मिथुन लग्न को छोड़कर ) । नीम का वृक्ष लगाएं अगर घर में लागतें हैं तो घर के वायुकोण ( north west ) दिशा में ही लगाएं किसी दूसरे दिशा में नहीं । भाई भाभी की सेवा करें कहना मानें , गायत्री का पाठ करें । बताशे धर्म स्थान में दे दें या रेवड़ियां( गुड़-तिल ) जल प्रवाह करें । मीठा भोजन करें, मसूर की दाल रात को सिरहाने रखकर भंगी को दे दें। हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी को सिंदूर और लाल रंग का चोला चढ़ाएं । चांदी का बेजोड़ कड़ा तांबे की कील लगाकर पहने ।लाल रंग की चीजों का दान करे, निःसंतान , काले गंजे व्येक्तियों से दूर रहें । खाने के बाद मेहमानों को मीठा खिलाना ( सौंफ और मिश्री ) । बेकार जंग लगे चाकू , हथियार घर में ना रखें । अशुभ मंगल के लिए संभव हो तो नृसिंह देव, माता बगलामुखी , हनुमान जी, कार्तिकेय और मंगल देव की पूजा अर्चना करते रहना चाहिए जिससे मंगल ग्रह के कुपित फल से बचें रहें ।

मंगल अशुभ कब होता है ?

घर में गड्ढे ज्यादा होना या पानी का गड्ढों में ज्यादा रहना। स्वाभाव क्रोधी होना। कुटुम्ब, भाई, बहन से झगड़ा विवाद आदि करना, रक्त या नाभि सम्बन्धी बीमारी होने पर।  बड़े भाई और भाभी का अनादर करने पर, वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े होने पर, किसी निसंतान व्यक्ति से लिए गए जमीन पर रहने पर या निसंतान व्यक्ति से सम्बन्ध रखने पर। ऐय्याशी या जुआ आदि खेलने पर। घर पर कोई अग्निकांड होने पर, संतान पर कोई संकट आने पर या संतानों से कलह में लिप्त होने पर।  घर के दक्षिण दिशा में दरवाजे या खिड़किया होने पर। कोर्ट केस या मुक़दमे में धन की हानि होने पर। बेमानी करने पर, किसी का खून करने पर, गुंडों जैसा आचरण करने पर। रक्तपात करने पर। खून की बीमारी अदि होने पर। प्रतिहिंसा परायण होने पर, निर्मम होने पर, तुरंत प्रतिक्रियावादी  या तार्किक होने पर।

वेदों में मंगल का दान -

लाल मूंगा, गोधूम, मसूर की दाल, लाल या अरुणवर्ण वृष, (आभाव में सवा एक रूपए), गन्ने का गुड़, स्वर्ण, रक्तवस्त्र, लालकनेर का पुष्प, ताम्बा, सवस्त्र भोज्य सहित मंत्रो उच्चारण कर दान करें। मंगल मंत्र - ॐ हूं श्रीं मंगलाय।  जपसंख्या - ८०००, देवी बगलामुखी, अधिदेवता स्कन्द, प्रत्यधिदेवता क्षिति, भरद्वाज गोत्र, क्षत्रिय, आवंत, चतुर्भुज,चतुरंगुल, दक्षिण दिशा, त्रिकोण आकृति, मेष वाहन, नृसिंह अवतार, पुष्पादि रक्तवर्ण, रक्तचंदन की मूर्ति, कुमकुम, धुप देवदारु, बलि खिचड़ी, समिध खदिर काष्ठ, दक्षिणा सवा रुपये सहित दान करें। 

मंगल के विषय में -

मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। इन्हें ज्योतिष में क्रूर ग्रह माना जाता हैं। इनका वार मंगलवार है। इसके नक्षत्र मृगशिरा,चित्रा और धनिष्ठा हैं। बृहस्पति, चंद्र और सूर्य इनके मित्र ग्रह  हैं। 






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