मंगल प्रथम भाव में ( mars in first house )

Kaushik sharma
मंगल प्रथम भाव में


मंगल प्रथम भाव में हों तो बचपन में पाचन समस्या या कफरोग का शिकार होता है। ऐसा जातक जीवन में लोहा, अग्नि या काष्ठ द्वारा भय प्राप्त कर शरीर में खाज-खरोच लगने से पीड़ित तथा दन्त रोगी होता है।जातक सिंह की भांति कर्म करता है परंतु किसी कार्य के पूर्ण होने पर फल लाभ के समय विभिन्न प्रकार की बाधा से उसका मन दुखी होता है। प्रथम भाव स्थित मंगल बृहस्पति दृष्ट हों तो अशुभ फलों में थोड़ी सी कमी लाता है। बृहस्पति के अलावा कोई दूसरा ग्रह इसके अशुभ प्रभाव को कम नही कर पाता अपितु बृहस्पति भिन्न दूसरे ग्रहों से संबंध होने पर अशुभ फलों में वृद्धि होती है। मंगल मूल त्रिकोण, स्वक्षेत्री, उच्च राशि या शुभ वर्ग या शुभ नवांश और बृहस्पति के राशि में शुभ फलदायी होते है। इन सभी के अलावा शनि या राहु युक्त-दृष्ट होने पर जातक का गुंडे जैसा स्वभाव, शुक्र से संबंध होने पर अति कामुक, केतु युक्त होने पर खूंखार, चंद्र युक्त होने पर क्रोधी, बुध से संबंध होने पर कूटनीति परायण तथा सूर्य से युति होने पर क्रोधी और दाम्भिक होता है। अशुभ मंगल से स्त्रीसुख से वंचित, असंतुष्ट, साहसी, उग्र, चपल, महत्वाकांक्षी, यात्री, गुप्त रोगी, चोर प्रकृति वाला, व्यवसाय में हानि उठाने वाला, बड़ी नाभि वाला, राजकोप, द्वारा कारागार अथवा अन्य प्रकार के दण्ड भोगने वाला, अथवा गुदा में रोग वाला, चर्मरोगी, रक्त-विकारी, वात अथवा रक्त अल्पता का रोगी तथा सर में चोट खाने तथा उसके निशान वाला होता है। सूर्य शनि युक्त हो तो जातक मातृ-द्वेषी एवं तामसी होता है। मेष, वृश्चिक अथवा मकर राशि पर हो तो स्त्री का सुख देता है। मकर का मङ्गल हो तो जातक विद्वान् होता है। लग्नस्थ मंगल "मांगलिक दोष" का निर्माण भी करता है जो कि विवाह के लिए हितकारी नही होती तथा ऐसे में विवाह से पूर्व वर-वधु के जन्मकुण्डली मिलान तथा श्रेष्ठ मुहूर्त के बिना विवाह श्रेय नहीं होता।

मंगल विभिन्न भाव में -


मंगल के विशेष उपाय-

मूंगा धारण करें या ताम्बा धारण करें ( कन्या और मिथुन लग्न को छोड़कर। नीम का वृक्ष लगाएं अगर घर में लागतें हैं तो घर के वायुकोण (north west) दिशा में ही लगाएं किसी दूसरे दिशा में नहीं। भाई भाभी की सेवा करें कहना मानें , गायत्री का पाठ करें। बताशे धर्म स्थान में दे दें या रेवड़ियां( गुड़-तिल ) जल प्रवाह करें। मीठा भोजन करें, मसूर की दाल रात को सिरहाने रखकर भंगी को दे दें। हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी को सिंदूर और लाल रंग का चोला चढ़ाएं। चांदी का बेजोड़ कड़ा तांबे की कील लगाकर पहने। लाल रंग की चीजों का दान करे, निःसंतान, काले गंजे व्येक्तियों से दूर रहें । खाने के बाद मेहमानों को मीठा खिलाना ( सौंफ और मिश्री )। बेकार जंग लगे चाकू , हथियार घर में ना रखें। अशुभ मंगल के लिए संभव हो तो नृसिंह देव, माता बगलामुखी, हनुमान जी,कार्तिकेय और मंगल देव की पूजा-अर्चना करते रहना चाहिए जिससे मंगल ग्रह के कुपित फल से बचें रहें।   

मंगल अशुभ कब होता है ?

घर में गड्ढे ज्यादा होना या पानी का गड्ढों में ज्यादा रहना। स्वाभाव क्रोधी होना। कुटुम्ब, भाई, बहन से झगड़ा विवाद आदि करना, रक्त या नाभि सम्बन्धी बीमारी होने पर।  बड़े भाई और भाभी का अनादर करने पर, वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े होने पर, किसी निसंतान व्यक्ति से लिए गए जमीन पर रहने पर या निसंतान व्यक्ति से सम्बन्ध रखने पर। ऐय्याशी या जुआ आदि खेलने पर। घर पर कोई अग्निकांड होने पर, संतान पर कोई संकट आने पर या संतानों से कलह में लिप्त होने पर।  घर के दक्षिण दिशा में दरवाजे या खिड़किया होने पर। कोर्ट केस या मुक़दमे में धन की हानि होने पर। बेमानी करने पर, किसी का खून करने पर, गुंडों जैसा आचरण करने पर। रक्तपात करने पर। खून की बीमारी अदि होने पर। प्रतिहिंसा परायण होने पर, निर्मम होने पर, तुरंत प्रतिक्रियावादी  या तार्किक होने पर।

वेदों में मंगल का दान -

लाल मूंगा, गोधूम, मसूर की दाल, लाल या अरुणवर्ण वृष, (आभाव में सवा एक रूपए), गन्ने का गुड़, स्वर्ण, रक्तवस्त्र, लालकनेर का पुष्प, ताम्बा, सवस्त्र भोज्य सहित मंत्रो उच्चारण कर दान करें। मंगल मंत्र - ॐ हूं श्रीं मंगलाय।  जपसंख्या - ८०००, देवी बगलामुखी, अधिदेवता स्कन्द, प्रत्यधिदेवता क्षिति, भरद्वाज गोत्र, क्षत्रिय, आवंत, चतुर्भुज,चतुरंगुल, दक्षिण दिशा, त्रिकोण आकृति, मेष वाहन, नृसिंह अवतार, पुष्पादि रक्तवर्ण, रक्तचंदन की मूर्ति, कुमकुम, धुप देवदारु, बलि खिचड़ी, समिध खदिर काष्ठ, दक्षिणा सवा रुपये सहित दान करें। 

मंगल के विषय में -

मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। इन्हें ज्योतिष में क्रूर ग्रह माना जाता हैं। इनका वार मंगलवार है। इसके नक्षत्र मृगशिरा,चित्रा और धनिष्ठा हैं। बृहस्पति, चंद्र और सूर्य इनके मित्र ग्रह हैं। 



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