वेदाङ्ग ज्योतिष में सभी प्राणिजनों के पूर्व एवं अगले जन्म के बारे में व्यक्त किया गया है जिसमे लग्न से पहला त्रिकोण जो की पंचम भाव है उसे अगले जन्म तथा लग्न से आखिरी त्रिकोण जो कि नवम भाव है वो पूर्वजन्म को दर्शाता है । जन्म कुंडली में यदि पंचमेश वर्ग बल में बलियान या उन्नत अवस्था में हो तो जीव का जन्म किसी उन्नत देश या राज्य में होता है । यदि पंचमेश स्वक्षेत्री, मित्रगृह या समगृह में हों तो जन्मस्थान अपने स्वदेश या स्वराज्य यानी भारतवर्ष में था ऐसा समझना चाहिए। पंचमेश की भिन्नता पर स्थान में परिवर्तन अवश्य होता है । पंचमेश ग्रह बृहस्पति हो या पंचम स्थान बृहस्पति दृष्ट हों तो जन्म भारत भूमि यानी सम्पूर्ण आर्यवर्त में हुआ था ऐसा समझना चाहिये, यदि मंगल हों तो ऊँची जगह या पहाड़ इत्यादि स्थान, चंद्र हों तो या दृष्ट हों तो किसी जलाशय तथा शुक्र हों तो पवित्र नदियों वाले स्थान में, सूर्य हों तो बीहड़ या जंगलों में, बुध हों तो सभी हरीभरी जनबहुल स्थान में, शनि, राहु से विदेश या वर्तमान स्वदेश से दूर जन्म हुआ था ऐसा समझना चाहिए । पंचमेश या नवमेश यदि स्थिर राशि या स्थिर नवांश में हों एवं पृष्ठोदय राशि तथा अधोमुख नक्षत्र में पापयुक्त हों तो पूर्व जन्म में पेड़- पौधे, वृक्ष, गुल्म, लताओं के रूप में हुआ था या होगा , शिरोदय राशि व नवांश तथा उर्धमुख नक्षत्र में शुभ हों तो पूर्व या अगले जन्म में आत्मा का जन्म किसी पशु या जन्तु के रूप में होता है । पंचमेश या नवमेश यदि उच्च राशि गत होकर वर्गबल में बलवान हो या लग्नेश का मित्र हो तो पूर्व या अगला जन्म मनुष्य रूप में ही हुआ था या होगा ऐसा कहा गया है
तथा सटीक रूप से किस योनि में जन्म हुआ है इसका पता पंचमेश या नवमेश के स्थित द्रेक्कान पति से निर्यण होता है । यदि पंचमेश या नवमेश एक ही राशि में हों और मित्र हों तो पूर्व या अगला जन्म उसी स्थान पर तथा दोनों ग्रह ही समान रूप से बलवान हों तो उसी जाती में हुआ था या होगा ऐसा माना गया है। मृत्य के पश्चात स्वर्ग लाभ होगा या नही होगा इसका पता द्वादश भाव पति से संबंध युक्त ग्रह अनुसार होता है । द्वादश भाव पति यदि शुक्र युक्त या शुक्र के नवांश में हो तो स्वर्गलोक, सूर्य या चंद्र के नवांश में हों तो कैलाशलोक या शिवलोक, बुध के नवांश में हों तो विष्णुलोक या वैकुंठलोक, मंगल के नवांश में हों तो मृत्यु के पश्चात आत्मा पुनः पृथ्वीलोक में ही जन्म लेगा। शनि के नवांश में हों तो नरक में, बृहस्पति के नवांश में हों तो आत्मा ब्रम्हालोक में प्रवेश करती है ऐसा कहा गया है । द्वादश भाव में दूषित रवि, मंगल से कुछ काल नरक में रहकर पुनः नवांश अनुसार उसी लोक को प्राप्त करता है। द्वादश स्थान का संबंध किसी एक जन्म में आबद्ध नहीं होता अपितु अनेक जन्म के मृत्य के पश्चात मोक्ष होगा या नहीं इस बात को भी दर्शाता है । विभिन्न शास्त्रकारों के अनुसार द्वादश भाव राशि शिरोदय राशि तथा द्वादश पति यदि उर्धमुख नक्षत्र में हो तो स्वर्गलाभ तथा पृष्ठोदय राशि और अधोमुख नक्षत्र में हो तो आत्मा की गति और गमन नरक में ही होता है ऐसा कहा गया है । द्वादश भाव पति स्वयं शुभ ग्रह और शुभग्रह के राशि में हों तथा बलवान होकर स्वक्षेत्री या उच्च हों तो जीवन का अन्तिमकाल चिंतामुक्त और कष्टों से रहित होकर मृत्यु को प्राप्त करता है तथा इसके विपरीत अवस्था में हों तो अशुभ फलों की प्राप्ति होती है ।