सूर्य सप्तम भाव में (sun in seventh house)

Kaushik sharma
सूर्य सप्तम भाव में


सूर्य सप्तम भाव में हो तो १८५१ के मशहूर कालजयी कवि भट्ट नारायण के अनुसार जातक को श्रीहीन, डरपोक, राज्य, घर या बाहर जातक राजनीति के रोष से पीड़ित होता है। जातक खुद के दायरे को समेट लेता है या किसी से मेल जुल करना पसंद नही करता। अकेले रहना उसे हमेशा पसंद होता है। शादी या विवाह के मौखिक प्रसंग तो आते है लेकिन विवाह का रूप नही ले पाता और इस तरह उसके विवाह में विलंब अवश्य होता है। उसकी स्त्री या पति को क्लेश भोग होता है। सप्तम भावस्थ अस्तगामी सूर्य के प्रखर किरण से विवाह के सुख का प्रकाश नहीं मिल पाता। जातक अपने दैहिक अशुुस्थता और मन में बसे आकांक्षित वस्तु की अप्राप्ति हेतु सर्वदा उद्वेग को भोग करता है। व्यवसाय में स्वल्प लाभ ही हो पाता है।विरुध्धपक्ष के ऊपर ईर्ष्या रहती है एवं इस कारण से उसके निद्रासुख में विघ्न उपस्थित होता है। सूर्य बलवान होकर सप्तम भाव में हों तो ऊपर वर्णित अशुभ फलों में कुछ कमी आती हैं। अशुभ सूर्य से जातक मध्यम कद, दुर्बल शरीर, कपिल वर्णनेत्र तथा पिंगलवर्ण केशों वाला, कुरूप, शरीर-पीड़ा एवं मानसिक चिन्ताओं से पीड़ित, कामी, ठग, स्त्री द्वारा कष्ट पाने वाला, स्त्री द्वारा पराजित, व्यवसाय से अल्प लाभ प्राप्त करने वाला, लोगों से ईष्या रखने के कारण सुख की नींद न सो सकने वाला, क्रोधी, चिरकाल तक स्त्री-वियोग आदि अशुभ फल मिलते है। शुभ सूर्य से जातक निष्कपट, साझेदारी से लाभ पाने वाला अधिक बोलने वाला, यांत्रिक-शक्ति से लाभ उठाने वाला तथा सभा एवं संग्राम में यश पाने वाला होता है। उसका भाग्योदय परदेश में होता है तथा विवाह मध्यम आयु में होता है। अशुभ स्थिति में व्यक्ति राज्य से अपमानित, राजकोपभागी, कुभोजी, चिन्तातुर तथा कुटुम्ब हानि से युक्त भी होता है। शुभ हो तो युवा अवस्था में धन तथा स्त्री-सुख का लाभ होता है। सूर्य बलहीन हो तो विवाह में विघ्न आते हैं। पाप ग्रह से युति या दृष्ट तो स्त्री लोलुप या अनेक स्त्रियों से सम्बंध रखने वाला होता है। 


सूर्य के विशेष उपाय-

सूर्य को प्रतिदिन लाल चंदन लगाकर जल अर्पित कर प्रणाम करें। तांबे या माणिक्य धारण करें। ( मकर लग्न वालों ) को छोड़कर। वैशाख मास के दूसरे रविवार से लगातार 43 दिन नित्य स्नानोपरांत रक्त चंदन आदि का तिलक लगाकर पूर्वमुखी बैठकर होकर "आदित्य हृदय" स्त्रोत्र का पाठ करें। घर का आंगन खुला रखना और पूर्व दिशा में दरवाजा होना। हरिवंश पुराण तथा रामचरित मानस की कथा करें या खुद पाठ करें । गेहूं, लाल चंदन, गन्ने का गुड़,ताम्बा, गुलाबी वस्त्र आदि का दान करें। लाल मुह वाले बंदर को रोटी में गन्ने का गुड़ रखकर को खिलाएं। घर के पूर्वी दिशा में खुला आंगन होने से। रवि पुष्यामृत योग में एक विल्व वृक्ष स्थिर लग्न में घर के वायुकोण के उत्तरी दिशा में रोपण करें और नित्य जल दान आदि से नियमित देख भाल करें। सदा सत्य का सहारा लें। मिथ्यावादी बनने से बचें। सूर्य दोष सेे सदैव बचे रहने के लिए ईमानदार होना और सात्विक होना जरूरी होता हैं क्योंकि सूर्य एक सात्विक ग्रह हैं। श्री राम, देवी मातंगी और सूर्यदेव की पूजा अर्चना हमेशा करते रहें। स्वात्विक आहार करें। मद्य, मांस आदि का त्याग करें।


सूर्य कब अशुभ होता है ?

सरकारी कार्यों में बाधा या विद्रोह उत्पन्न होना या खुद ही राजद्रोही होना। ब्लैक मार्केटर या स्मगलर होना, टैक्स की चोरी करना, शराबी-कबाबी होना, गरम स्वभाव का होना, झूठ बोलना या वादे का कच्चा होना, रक्त चाप का रोगी, नास्तिक होने से, मुकदमे में हारने से, मुफ्त माल पर नज़र रखना, आँखों के रोगों से परेशान, दक्षिण दिशा का मकान होने से, कुंडली में सूर्य से संबंधित पितृ दोष या कोई और दोष होने से। इन दोषों को कम करने के लिए सूर्य के इन उपायों को सहारा लें। इस ऊपर वर्णित कारणों के अलावा सूर्य के अशुभ होने के और भी कई सारे कारण हो सकते हैं जिसके लिए जन्म कुंडली आवश्यक होती हैं। जिनव्येक्तियों के जन्म कुंडली नही हैं वो भी इन उपायों का सहारा लेकर सूर्य दोष को प्रशमित कर सकतें हैं। निष्ठा और पवित्रता के साथ इन उपायों को रविवार के दिन करें।

वेदों में सूर्य का दान-

माणिक्य ( आभाव में एक रुपए ), गोधूम, सवत्स धेनु, कुसुम्भरंजीत वस्त्र, गुड़, स्वर्ण, ताम्र, रक्तचंदन,रक्तपद्म, सवस्त्र भोज्य, दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। सूर्य का वैदिक मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय। जपसंख्या ६०००, देवी मातंगी, अधिदेवता शिव, प्रत्याधि देवता वन्हि, कश्यप गोत्र, क्षत्रिय, कॉलिंग, द्वादशांगूल, द्विभुज, मंडल मध्यवर्ती, वर्तुलाकृति, रक्तवर्ण, ताम्रमूर्ति, सप्ताश्वारुढ़, श्री रामचंद्र अवतार, पुष्पादि जवाकुसुम एवं रक्तवर्ण पुष्प, धुप गुगुल, बलि गुड़ मिश्रित अन्न, समिध श्वेतार्क, दक्षिणा आदि। 

सूर्य के विषय में-

सूर्य सभी ग्रहो के स्वामी तथा संपूर्ण ब्रम्हांड के कर्ता है। इन्हे क्रूर और निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार रविवार हैं। यह मेष राशि में उच्च तथा तुला राशि इनका नीच स्थान है। कृतिका, उत्तरफाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, चंद्र और मंगल इनके मित्र गृह है। 












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