सूर्य पंचम भाव में (sun in fifth house)

Kaushik sharma

                                        
सूर्य पंचम भाव में


सूर्य पंचम भाव में शुभ हो तो जातक अत्यंत बुद्धिमान, मंत्रशास्त्र का ज्ञाता, महादेव में भक्ति आदि का फल लाभ होता है। अशुभ हो तो अपनी बुद्धि द्वारा दूसरों को ठगने वाला, धर्म कर्म से विमुख, चंचल, क्रोधी, मानहीन, द्रव्य संचयी, युवावस्था में में धनी तथा प्रथम पुत्र के मृत्यु से कष्ट पाने वाला, प्राय: एक ही पुत्र वाला, प्रवासी, नाट्य-प्रेमी, उदार-स्वभावी, कपटी, विलासी, स्वजनों से क्रूर व्यवहार करने वाला सट्टा, रेस लाटरी तथा व्यवसाय से धन कमाने वाला, अधिक कन्या सन्तति वाला, पूत्र के लिए अनिष्टकारक, उद्भ्रान्त चित्तवाला, क्रोधी, असफलतायें पाने वाला, पिता से भय पाने वाला तथा मोटे शरीर वाला होता है। सूर्य स्थिर राशि में हो तो पहली सन्तान की मृत्यु संभव है। चरराशि में हो तो सन्तान-सुख मिलता है। द्विस्वभाव राशि में हो तो सन्तान-हानि होती है। सूर्य गुरु से युक्त अथवा जन्मराशि का हो तो सामान्य सन्तति-सुख होता है। स्त्री जातिका का सूर्य स्वगृही हो तो प्रथम सन्तति की हानि अथवा गर्भपात होता है। पंचमेश बलवान ग्रहों के साथ हो तो पुत्र-सुख मिलता है। पापग्रह के साथ अथवा दृष्ट हो तो कन्या-सन्तति का सूख प्राप्त होता है। युति हो तो भी पुत्र सुख प्राप्त होता है। 

सूर्य विभिन्न भावों में-


लालकिताब में पंचम भाव के सूर्य का उपाय-

जातक का ये घर सूर्य का पक्का घर है। इस वजह से यदि सूर्य शुभ होगा तो जातक की आयु दीर्घ होगी तथा सभी जनों को साथ लेकर चलनेवाला व्यक्ति बनेगा। इसी भाव में बृहस्पति हों तो किसी धनवान व्यक्ति से भले ही मदद न मिले तो किसी साधु या धर्मात्मा से भला होगा और संतान के लिए शुभ होगा। बलहीन सूर्य की स्थिति हो तो बच्चों के लिए अशुभ बनेगा।सूर्य शुभ होने पर समाज व सत्ता तथा बच्चों के लिए शुभ होगा तथा राजनीती में सफल होगा। सूर्य अशुभ हो और गुरु दशम भाव में स्थित हों तो पत्नी की मृत्यु संभव होगा। शनि तीसरे भाव में होगा तो पुत्र पर मृत्यु का संकट मंडराएगा। यदि शनि नवम स्थान या एकादश स्थान में होने पर जातक के लिए शुभ होगा। गुरु नवम भाव में और चंद्र चतुर्थ में होगा तो राजयोग का निर्माण होगा। जातक के जन्म के बाद से परिवार समृद्धि की और बढ़ेगा। गुरु यदि नवें या बारहवें स्थान और मंगल तीसरे भाव में हो तो शुभ फलों का लाभ मिलेगा। गुरु दशम भाव में हों दूसरा विवाह होना संभव होगा।

लाल किताब में पंचम भाव के सूर्य का उपाय-

पुराने रीती रिवाजों का पालन अवश्य करें। लाल मुँह वाले बंदरों को चना गुड़ खिलाएं। जुठ बोलने से परहेज करें तथा अपने वचन का पालन करें। किसी की निंदा से बचें। रसोईघर में पूर्व की और मुँह करके खाना बनायें।

सूर्य के अन्य विशेष उपाय -

सूर्य को प्रतिदिन लाल चंदन लगाकर जल अर्पित कर प्रणाम करें। तांबे या माणिक्य धारण करें। ( मकर लग्न वालों ) को छोड़कर। वैशाख मास के दूसरे रविवार से लगातार 43 दिन नित्य स्नानोपरांत रक्त चंदन आदि का तिलक लगाकर पूर्वमुखी बैठकर "आदित्य हृदय" स्त्रोत्र का पाठ करें।घर का आंगन खुला रखना और पूर्व दिशा में दरवाजा होना। हरिवंश पुराण तथा रामचरित मानस की कथा करें या खुद पाठ करें। गेहूं, लाल चंदन, गन्ने का गुड़,ताम्बा, गुलाबी वस्त्र आदि का दान करें। लाल मुह वाले बंदर को रोटी में गन्ने का गुड़ रखकर को खिलाएं। घर के पूर्वी दिशा में खुला आंगन होने से। रवि पुष्यामृत योग में एक विल्व वृक्ष स्थिर लग्न में घर के वायुकोण के उत्तरी दिशा में रोपण करें और नित्य जल दान आदि से नियमित देख भाल करें। सदा सत्य का सहारा लें। मिथ्यावादी बनने से बचें। सूर्य दोष सेे सदैव बचे रहने के लिए ईमानदार होना और सात्विक होना जरूरी होता हैं क्योंकि सूर्य एक सात्विक ग्रह हैं। श्री राम, देवी मातंगी और सूर्यदेव की पूजा अर्चना हमेशा करते रहें। स्वात्विक आहार करें। मद्य, मांस आदि का त्याग करें।

सूर्य कब अशुभ होता है ?

सरकारी कार्यों में बाधा या विद्रोह उत्पन्न होना या खुद ही राजद्रोही होना। ब्लैक मार्केटर या स्मगलर होना, टैक्स की चोरी करना, शराबी-कबाबी होना, गरम स्वभाव का होना, झूठ बोलना या वादे का कच्चा होना, रक्त चाप का रोगी, नास्तिक होने से, मुकदमे में हारने से, मुफ्त माल पर नज़र रखना, आँखों के रोगों से परेशान, दक्षिण दिशा का मकान होने से, कुंडली में सूर्य से संबंधित पितृ दोष या कोई और दोष होने से। इन दोषों को कम करने के लिए सूर्य के इन उपायों को सहारा लें। इस ऊपर वर्णित कारणों के अलावा सूर्य के अशुभ होने के और भी कई सारे कारण हो सकते हैं जिसके लिए जन्म कुंडली आवश्यक होती हैं। जिनव्येक्तियों के जन्म कुंडली नही हैं वो भी इन उपायों का सहारा लेकर सूर्य दोष को प्रशमित कर सकतें हैं। निष्ठा और पवित्रता के साथ इन उपायों को रविवार के दिन करें।

वेदों में सूर्य का दान-

माणिक्य ( आभाव में एक रुपए ), गोधूम, सवत्स धेनु, कुसुम्भरंजीत वस्त्र, गुड़, स्वर्ण, ताम्र, रक्तचंदन,रक्तपद्म, सवस्त्र भोज्य, दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। सूर्य का वैदिक मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय। जपसंख्या ६०००, देवी मातंगी, अधिदेवता शिव, प्रत्याधि देवता वन्हि, कश्यप गोत्र, क्षत्रिय, कॉलिंग, द्वादशांगूल, द्विभुज, मंडल मध्यवर्ती, वर्तुलाकृति, रक्तवर्ण, ताम्रमूर्ति, सप्ताश्वारुढ़, श्री रामचंद्र अवतार, पुष्पादि जवाकुसुम एवं रक्तवर्ण पुष्प, धुप गुगुल, बलि गुड़ मिश्रित अन्न, समिध श्वेतार्क, दक्षिणा आदि।

सूर्य के विषय में-

सूर्य सभी ग्रहो के स्वामी तथा संपूर्ण ब्रम्हांड के कर्ता है। इन्हे क्रूर और निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार रविवार हैं। यह मेष राशि में उच्च तथा तुला राशि इनका नीच स्थान है। कृतिका, उत्तरफाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, चंद्र और मंगल इनके मित्र गृह है।   


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