सूर्य द्वितीय भाव में (Sun in second house)

Kaushik sharma
सूर्य द्वितीय भाव में


द्वितीय भाव में अशुभ सूर्य हो तो धन, वाहन, संतान से अशांति और मित्र एवं कुटुम्ब जनों से सदभाव का नाश करता है। पारिवारिक जीवन में लड़की हो तो पति और लड़का हो पत्नी का उसके मातापिता से विरोध बना रहता है। श्री यज्ञेश्वर द्वारा १८५१ में रचित "कुंडली कल्पतरु" के अनुसार द्वितीय भाव में सूर्य हो तो जातक का मुखमंडल सुंदर और तिल चिन्ह युक्त होता हैं, बुध युक्त हो अस्थिर धन और पति या स्त्री के कारण दुखी, पाप युक्त सूर्य से आत्मीय कुटुम्ब जनों से संबंध का नाश, शनि या राहु युक्त हो सम्पूर्ण धन का नाश होता है। रवि केंद्र या त्रिकोण भाव के स्वामी होकर शुभ राशि में या उच्च राशि में गुरु या चंद्र से युक्त या दृष्ट होने पर विशेष धनलाभ होता हैं । इसके अलावा जातक कृश-शरीर, लाल नेत्रों वाला, स्त्री तथा सन्तान से हीन, कुटुम्बियों का विरोधी, क्रोधी, बुद्धि-हीन, गाय-भैस-बकरी आदि पशुओं का सुख प्राप्त करते वाला, लोहे तथा ताँबे के व्यवसाय द्वारा कमाने वाला, रोगी, दुबर्ल स्मरण शक्ति वाला, धनी तथा भाग्यवान होता है। उसके द्वारा द्रव्यलाभ के लिए किये जाने वाले अनेक उद्योग निष्फल होते हैं, परन्तु उसका घन अच्छे कामों में ही खर्च होता है। ऐसा व्यक्ति राज्य द्वारा धन लाभ पाने वाला, पुत्रवान्, अधीक खर्चीला, उदार, शत्रु को जीतने वाला तथा अनुकूल करने वाला, मुख-नेत्र रोगी, ऋण ग्रस्त, कुटुम्बत था स्त्री से सदैव कष्ट पाने वाला, अशक्त-प्रकृति की पत्नी वाला, तीन स्वर से बोलने वाला, रोगी, हठी, दृढ़-प्रतिज्ञ, राजभीरु, वाहन के सुख से रहित तथा राजकोप से कष्ट पाने वाला होता है। शनि दृष्टि या युक्त हो तो निर्धन एवं अस्थिर धनी तथा शुभ हों तो विद्या द्वारा मान एवं प्रतिष्ठा पाने वाला होता है। जातक को यात्रायें अधिक करनी पड़ती है। 

लालकिताब में सूर्य प्रथम भाव का फल-

लालकिताब में जब सूर्य दूसरे भाव में होता है तो जातक के स्वयं के प्रयास के बल से समाज और परिवार में प्रतिष्ठित होता हैं परन्तु उसका रोजगार किसी एक रास्ते से ही होता है। बलवान सूर्य वाला जातक सर्वदा सत्य बोलने वाला होता है। जातक परोपकार या मदद न करे तो सूर्य अशुभ और प्रभावहीन हो जाता हैं। जन्म कुंडली में सातवें घर में कोई दूसरा गृह न हो तो जल्दी विवाह सम्बन्ध बनाना शुभ होता है। जातक की पत्नी के कारण परिवार व सम्बधियों से विवाद होता है। जातक अपने दम पर सभी प्रकार की सुख, संपत्ति, वाहन आदि की प्राप्ति करने वाला होता हैं। जातक यदि पत्नी के विवाद आदि से दूर रहे तो शुभ होता है। सूर्य बलवान हो तो धार्मिक कार्य में अगुवा या मुखिया बनता है तथा खुद की उन्नति के साथ साथ दूसरों की करने वाला होता हैं। धर्म कर्म और मंदिर या धर्मशाला इत्यादि का निर्माण करता हैं। अष्टम स्थान में कोई गृह न होने पर द्वितीय भाव से सम्बंधित वस्तुओं से लाभान्वित होता हैं। अष्टम स्थान में केतु होने पर ईमानदार तथा नवम भाव में केतु होने पर तकनिकी विषय का ज्ञानी होता हैं। छठे स्थान में यदि चंद्र होगा तो सूर्य का शुभ फल प्राप्त होगा। पहले घर में मंगल तथा तीसरे भाव में चंद्र हो तो जातक दरिद्र, अलसी तथा धनहीन होता हैं।

लालकिताब में द्वितीय भाव के सूर्य का उपाय-

चावल, चांदी, दूध या अन्य किसी चीज का दान न लें। किसी से भी गेहू, बाजरा इत्यादि न लें। किसी मंदिर या धार्मिक स्थल में बादाम,अखरोट, नारियल और नारियल तेल का दान करते रहें। अपने पैतृक घर में जल स्रोत या पानी के नल का निर्माण कराएं। स्त्री ऋण के उपाय करें।


सूर्य के अन्य विशेष उपाय -

सूर्य को प्रतिदिन लाल चंदन लगाकर जल अर्पित कर प्रणाम करें। तांबे या माणिक्य धारण करें। ( मकर लग्न वालों ) को छोड़कर। वैशाख मास के दूसरे रविवार से लगातार 43 दिन नित्य स्नानोपरांत रक्त चंदन आदि का तिलक लगाकर पूर्वमुखी बैठकर होकर "आदित्य हृदय" स्त्रोत्र का पाठ करें।घर का आंगन खुला रखना और पूर्व दिशा में दरवाजा होना। हरिवंश पुराण तथा रामचरित मानस की कथा करें या खुद पाठ करें। गेहूं, लाल चंदन, गन्ने का गुड़,ताम्बा, गुलाबी वस्त्र आदि का दान करें। लाल मुह वाले बंदर को रोटी में गन्ने का गुड़ रखकर को खिलाएं। घर के पूर्वी दिशा में खुला आंगन होने से। रवि पुष्यामृत योग में एक विल्व वृक्ष स्थिर लग्न में घर के वायुकोण के उत्तरी दिशा में रोपण करें और नित्य जल दान आदि से नियमित देख भाल करें। सदा सत्य का सहारा लें। मिथ्यावादी बनने से बचें। सूर्य दोष सेे सदैव बचे रहने के लिए ईमानदार होना और सात्विक होना जरूरी होता हैं क्योंकि सूर्य एक सात्विक ग्रह हैं। श्री राम, देवी मातंगी और सूर्यदेव की पूजा अर्चना हमेशा करते रहें। स्वात्विक आहार करें। मद्य, मांस आदि का त्याग करें।


सूर्य कब अशुभ होता है ?

सरकारी कार्यों में बाधा या विद्रोह उत्पन्न होना या खुद ही राजद्रोही होना। ब्लैक मार्केटर या स्मगलर होना, टैक्स की चोरी करना, शराबी-कबाबी होना, गरम स्वभाव का होना, झूठ बोलना या वादे का कच्चा होना, रक्त चाप का रोगी, नास्तिक होने से, मुकदमे में हारने से, मुफ्त माल पर नज़र रखना, आँखों के रोगों से परेशान, दक्षिण दिशा का मकान होने से, कुंडली में सूर्य से संबंधित पितृ दोष या कोई और दोष होने से । इन दोषों को कम करने के लिए सूर्य के इन उपायों को सहारा लें। इस ऊपर वर्णित कारणों के अलावा सूर्य के अशुभ होने के और भी कई सारे कारण हो सकते हैं जिसके लिए जन्म कुंडली आवश्यक होती हैं। जिनव्येक्तियों के जन्म कुंडली नही हैं वो भी इन उपायों का सहारा लेकर सूर्य दोष को प्रशमित कर सकतें हैं । निष्ठा और पवित्रता के साथ इन उपायों को रविवार के दिन करें।

वेदों में सूर्य का दान -

माणिक्य ( आभाव में एक रुपए ), गोधूम, सवत्स धेनु, कुसुम्भ रंजीत वस्त्र, गुड़, स्वर्ण, ताम्र, रक्तचंदन,रक्तपद्म, सवस्त्र भोज्य, दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। सूर्य का वैदिक मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय। जपसंख्या ६०००, देवी मातंगी, अधिदेवता शिव, प्रत्याधि देवता वन्हि, कश्यप गोत्र, क्षत्रिय,कॉलिंग, द्वादशांगूल, द्विभुज, मंडल मध्यवर्ती, वर्तुलाकृति, रक्तवर्ण, ताम्रमूर्ति, सप्ताश्वारुढ़, श्री रामचंद्र अवतार, पुष्पादि जवाकुसुम एवं रक्तवर्ण पुष्प, धुप गुगुल, बलि गुड़ मिश्रित अन्न, समिध श्वेतार्क, दक्षिणा आदि।


सूर्य के विषय में -

सूर्य सभी ग्रहो के स्वामी तथा संपूर्ण ब्रम्हांड के कर्ता है। इन्हे क्रूर और निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार रविवार हैं। यह मेष राशि में उच्च तथा तुला राशि इनका नीच स्थान है। कृतिका, उत्तरफाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, चंद्र और मंगल इनके मित्र ग्रह है।





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