सूर्य प्रथम भाव में (sun in first house)

Kaushik sharma
सूर्य प्रथम भाव में

सूर्य प्रथम भाव में नीचस्थ, शत्रुगृही अथवा पापग्रह युक्त हो तो अनिष्ट फल घटित होते है। शुभ दृष्ट अथवा शुभ ग्रह युक्त हो तो अनिष्ट फल नही होते। उच्चस्थ सूर्य पर किसी बलवान ग्रह की दृष्टि हो तो जातक विद्वान होता है। कवि भट्टनारायण द्वारा रचित सूर्य प्रथम भाव में हो तो बलिष्ठदेही, कम बालों वाला, किंचित क्रोधी, उत्साह विहीन, आलस्य प्रिय, चंड नीतिज्ञ, कटुवादी व कर्कश, आँखों का रोगी एवं क्षमागुण रहित होता है। जातक लंबे शरीर वाला, विचित्र रूप, दुर्बल, उन्नत नासिका, विशाल ललाट, लाल नेत्रों वाला, नेत्र रोगी, नीच जनों का सेवक, बाल्यावस्था में रोगी, स्त्री, संतान तथा दामादों द्वारा मनस्ताप पाने वाला, घूम फिर कर व्यापार करने में हानि और कभी लाभ उठाने वाला, स्त्री द्वारा अपमानित, प्रारब्धवादी, वात तथा पित्त से पीड़ा पाने वाला, कंठ अथवा गुदा मे तिल युक्त, काम करने मे आलसी, भाइयों का विरोधी, पराक्रमी, घृणारहित, कुशाग्रबुद्धि, साहसी, स्वाभिमानी, निर्दय, क्रोधी, अस्थिर संपत्ति वाला तथा केश रोगी होता है। सूर्य तुला राशि पर हो तो रतौंधी एवं हृदयरोग होता है परंतु जातक ज्ञानी भी होता है। यदि सूर्य उच्चराशि का अथवा स्वक्षेत्री हो तो जातक नेत्ररोगी, सुखी, यशस्वी, शीलवान परंतु लोभी होता है। वृष, कन्या अथवा मकर राशि का हो तो दुराग्रही एवं घमंडी, मिथुन, तुला अथवा कुम्भ राशि का हो तो उदार, शास्त्रप्रिय और न्यायी, धनुराशि का हो तो कुटुम्ब एवं जायदाद का प्रेमी तथा कर्क, वृश्चिक का अथवा मीन राशि का हो तो व्यसनी होता है। सूर्य के स्वराशि सिंह के नवांश में शुभग्रह युक्त अथवा दृष्ट होने पर जातक निरोगी एवं तेजस्वी होता है। 


सूर्य विभिन्न भावों में-
लालकिताब में सूर्य प्रथम भाव का फल-

लालकिताब के अनुसार सूर्य प्रथम भाव में होने पर कमाई का हिस्सा धार्मिक कर्मों में लगाने पर उन्नति करता हैं। जातक चण्डनीतिज्ञ, अपने इरादों का पक्का तथा मजबूत ह्रदय वाला होता है। जातक चिंतनशील और मनशील होता है। जातक परिश्रमी एवं तेजस्वी होता है तथा अपने तेजसंपन्न और आक्रामक स्वाभाव के कारण शत्रुओं को परास्त करने वाला होता है। ऐसा जातक प्रायः मीठे वचन बोलने वाला परन्तु कठोर ह्रदय वाला होता हैं। तुरंत प्रतिक्रिया वादी तथा हाजिर जवाब वाला होता है। ऐसा जातक अपने कठोर मेहनत और परिश्रम द्वारा धन सम्पत्तिवान बनता है। शिक्षा पूर्ण होने पर लेखा जोखा, सम्पादना तथा बही खाता सम्बंधित कार्यों द्वारा भी अपना जीवन निर्वाह करने वाला होता हैं। जातक मांस और मदिरा से परहेज करता है। सप्तम स्थान खाली हो तो जल्दी विवाह करना शुभ होता है। सूर्य शुभ होने पर धार्मिक एवं परोपकारी बनता हैं। जन समाज में लोकप्रसिद्ध होता हैं तथा समय समय पर दरिद्र एवं असहाय मनुष्यों की सेवा करने वाला होता है। जातक का चरित्र अच्छा होता हैं परन्तु दूसरों के कहने में जल्दी प्रभावित नहीं होता। मुख पर तेज विद्यमान रहता है। ऐसे जातक को चौबीस वर्ष के बाद विवाह करने पर शुभ फल प्राप्त करता है। लम्बे कद का सहनशील पर तेजस्वी स्वाभाव वाला होता है। प्रथम संतान लड़का होगा तथा लड़के का जन्म आधी रात के बाद होगा। जातक तेज़ तर्रार और गुस्सैल होगा और इश्कबाज़ी से दूर रहेगा। सूर्य शुभ होने पर सत्ता से सम्बन्ध होने पर लाभ होगा। जातक के ग्यारहवे स्थान में शनि और दूसरे भाव में बलि चंद्र हो तो धन और मन सम्मान की कमी नहीं होती। शुक्र सातवें घर में हो तो पिता का निधन बचपन में होता है। गुस्सैल स्वाभाव के कारण माता व पत्नी को कष्ट का सामना करना पड़ता हैं।

लालकिताब में प्रथम भाव के सूर्य का उपाय -

सदाचार का पालन करते रहें। पानी का नल लगवाना शुभ होगा। घर के पूर्वी हिस्से में खुला आंगन बनायें। पूर्वी दिशा में घर का मुख्य द्वार बनायें। चौबीस वर्ष के बाद विवाह ही करें। घर के अंतिम छोड़ में दायी तरफ एक अँधेरी कोठरी अवश्य रखें। शक्कर जल में डालकर प्रतिदिन सूर्य को चढ़ाएं।

सूर्य के अन्य विशेष उपाय -

सूर्य को प्रतिदिन लाल चंदन लगाकर जल अर्पित कर प्रणाम करें। तांबा या माणिक्य धारण करें। (मकर लग्न वालों) को छोड़कर। वैशाख मास के दूसरे रविवार से लगातार ४३ दिन नित्य स्नानोपरांत रक्त चंदन आदि का तिलक लगाकर पूर्वमुखी बैठकर "आदित्य हृदय" स्त्रोत्र का पाठ करें। घर का आंगन खुला और पूर्व दिशा में दरवाजा रखें। हरिवंश पुराण तथा रामचरित मानस की कथा करें या खुद पाठ करें। गेहूं, लाल चंदन, गन्ने का गुड़, ताम्बा, गुलाबी वस्त्रआदि का दान करें। लाल मुह वाले बंदर को रोटी में गन्ने का गुड़ रखकर को खिलाएं। रविपुष्यामृत योग में एक विल्व वृक्ष स्थिर लग्न में घर के वायुकोण के उत्तरी दिशा में रोपण करें और नित्य जल दान आदि से नियमित देख भाल करें। सदा सत्य का सहारा लें। मिथ्यावादी बनने से बचें। सूर्य दोष सेे सदैव बचे रहने के लिए ईमानदार होना और सात्विक होना जरूरी होता हैं क्योंकि सूर्य एक सात्विक ग्रह हैं। श्री राम, देवी मातंगी और सूर्यदेव की पूजा अर्चना हमेशा करते रहें। स्वात्विक आहार करें। मद्य, मांस, मदिरा का त्याग करें। सूर्य अशुभ हो तो राजनीति से बचें। पिता की देखभाल करें।


सूर्य कब अशुभ होता है ?-

सरकारी कार्यों में बाधा या विद्रोह उत्पन्न होना या खुद ही राजद्रोही होना। ब्लैक मार्केटर या स्मगलर होना, टैक्स की चोरी करना, शराबी-कबाबी होना, गरम स्वभाव का होना, झूठ बोलना या वादे का कच्चा होना, रक्त चाप का रोगी, नास्तिक होने से, मुकदमे में हारने से, मुफ्त माल पर नज़र रखना, आँखों के रोगों से परेशान, दक्षिण दिशा का मकान होने से, कुंडली में सूर्य से संबंधित पितृ दोष या कोई और दोष होने से । इन दोषों को कम करने के लिए सूर्य के इन उपायों को सहारा लें । इस ऊपर वर्णित कारणों के अलावा सूर्य के अशुभ होने के और भी कई सारे कारण हो सकते हैं जिसके लिए जन्म कुंडली आवश्यक होती हैं। जिनव्येक्तियों के जन्म कुंडली नही हैं वो भी इन उपायों का सहारा लेकर सूर्य दोष को प्रशमित कर सकतें हैं । निष्ठा और पवित्रता के साथ इन उपायों को रविवार के दिन करें।

वेदों में सूर्य का दान -

माणिक्य (आभाव में एक रुपए), गोधूम, सवत्स धेनु, कुसुम्भरंजीत वस्त्र, गुड़, स्वर्ण, ताम्र, रक्तचंदन,रक्तपद्म, सवस्त्र भोज्य, दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। सूर्य का वैदिक मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय। जपसंख्या ६००० , देवी मातंगी, अधिदेवता शिव, प्रत्याधि देवता वन्हि, कश्यप गोत्र, क्षत्रिय,कॉलिंग, द्वादशांगूल, द्विभुज, मंडल मध्यवर्ती, वर्तुलाकृति, रक्तवर्ण, ताम्रमूर्ति, सप्ताश्वारुढ़, श्री रामचंद्र अवतार , पुष्पादि जवाकुसुम एवं रक्तवर्ण पुष्प, धुप गुगुल, बलि गुड़ मिश्रित अन्न, समिध श्वेतार्क, दक्षिणा आदि।


सूर्य के विषय में -

सूर्य सभी ग्रहो के स्वामी तथा संपूर्ण ब्रम्हांड के कर्ता है। इन्हे क्रूर और निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार रविवार हैं। यह मेष राशि में उच्च तथा तुला राशि इनका नीच स्थान है। कृतिका, उत्तरफाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, चंद्र और मंगल इनके मित्र ग्रह है।












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