सूर्य द्वादश भाव में अशुभ हो तो आंखों का रोगी, लम्बे अङ्ग तथा कृश शरीर वाला, कुरूप, नेत्र-रोगी, शत्रुजयी, दुष्ट-हृदय, दुर्बुद्धि, कामी, परस्त्री गामी, व्यर्थ-विवादी, अपव्ययी, कथावाचकों का विरोधी, पितृपक्ष चाचा आदि से कष्ट पाने वाला, पक्षी-संहारक, पितृसुख-हीन, द्रव्य-हीन, दरिद्र, संकटग्रस्त, आलसी, परदेश वासी, भित्रद्रोही, पापी, चोर, पतित, दुराचारी, कृपण, प्रवासी, मस्तक- रोगी तथा लोक-विरोधी होता है। सूर्य षष्ठेश से युक्त हो तो कुष्ठ-रोग होने का भय होता है परन्तु यदि वह शुभग्रह से हृष्ट अथवा युक्त हो तो कुष्ठ- रोग नहीं होता। सूर्य निर्बल हो तो राज्याधिकारी से त्रास, कारावास, बंधन, धननाश तथा स्वदेश त्याग आदि का कष्ट भोगना पड़ता है। सूर्य के साथ पाप ग्रह हो तो जातक अपव्ययी, अधिक यात्राएं करने वाला तथा स्त्री सुख से रहित होता हैं। सूर्य शुभ अथवा उच्च का हो बंधु वियोग ,आप्तवर्ग से लाभ, प्रवास, शय्या आदि का सुख मिलता है। प्रतिपक्ष्य के साथ संग्राम में विजयी होता है। ऐसे जातक के लाभ का वस्तु निर्दिष्ट किसी स्थान पर रहता हैं। पिता से वैमनस्यता रहती है। जातक पिता के साथ दीर्घकाल एकसाथ न रह पाने के कारण उनकी सेवा से वंचित रहता है। किसी किसी के पिता घर छोड़कर चले जाते है ओर अंतकाल तक उनसे मुलाकात नही हो पाती है। पिता के लिए हुए ऋण को जातक बखूबी से चुकता करता है। बाल्यावस्था में पिता से अलग होने के कारण पिता का उत्तरदायित्व उसके कन्धे पर आ जाता है और जिंदगी में अत्यंत कष्टों से गुजरते हुए देखा गया है। द्वादश भावस्थ सूर्य से जीवन में पूर्णरूप से सफल नहीं हो पाता तथा ऐसा प्रतीत होता है कि लोग उसे उतना महत्व या गुरुत्व नही देते। सूर्य की उपासना से बाधाएं दूर होती है।
सूर्य विभिन्न भावों में-
सूर्य के विशेष उपाय -
सूर्य को प्रतिदिन लाल चंदन लगाकर जल अर्पित कर प्रणाम करें। तांबे या माणिक्य धारण करें। ( मकर लग्न वालों ) को छोड़कर। वैशाख मास के दूसरे रविवार से लगातार 43 दिन नित्य स्नानोपरांत रक्त चंदन आदि का तिलक लगाकर पूर्वमुखी बैठकर होकर "आदित्य हृदय" स्त्रोत्र का पाठ करें। घर का आंगन खुला रखना और पूर्व दिशा में दरवाजा होना। हरिवंश पुराण तथा रामचरित मानस की कथा करें या खुद पाठ करें। गेहूं, लाल चंदन, गन्ने का गुड़, ताम्बा, गुलाबी वस्त्र आदि का दान करें। लाल मुह वाले बंदर को रोटी में गन्ने का गुड़ रखकर को खिलाएं। घर के पूर्वी दिशा में खुला आंगन होने से। रवि पुष्यामृत योग में एक विल्व वृक्ष स्थिर लग्न में घर के वायुकोण के उत्तरी दिशा में रोपण करें और नित्य जल दान आदि से नियमित देख भाल करें। सदा सत्य का सहारा लें। मिथ्यावादी बनने से बचें। सूर्य दोष सेे सदैव बचे रहने के लिए ईमानदार होना और सात्विक होना जरूरी होता हैं क्योंकि सूर्य एक सात्विक ग्रह हैं। श्री राम, देवी मातंगी और सूर्यदेव की पूजा अर्चना हमेशा करते रहें। स्वात्विक आहार करें, मद्य, मांस आदि का त्याग करें।
सूर्य कब अशुभ होता है ?
सरकारी कार्यों में बाधा या विद्रोह उत्पन्न होना या खुद ही राजद्रोही होना। ब्लैक मार्केटर या स्मगलर होना, टैक्स की चोरी करना, शराबी-कबाबी होना, गरम स्वभाव का होना, झूठ बोलना या वादे का कच्चा होना, रक्त चाप का रोगी, नास्तिक होने से, मुकदमे में हारने से, मुफ्त माल पर नज़र रखना, आँखों के रोगों से परेशान, दक्षिण दिशा का मकान होने से, कुंडली में सूर्य से संबंधित पितृ दोष या कोई और दोष होने से। इन दोषों को कम करने के लिए सूर्य के इन उपायों को सहारा लें। इस ऊपर वर्णित कारणों के अलावा सूर्य के अशुभ होने के और भी कई सारे कारण हो सकते हैं जिसके लिए जन्म कुंडली आवश्यक होती हैं। जिनव्येक्तियों के जन्म कुंडली नही हैं वो भी इन उपायों का सहारा लेकर सूर्य दोष को प्रशमित कर सकतें हैं। निष्ठा और पवित्रता के साथ इन उपायों को रविवार के दिन करें।
वेदों में सूर्य का दान -
माणिक्य ( आभाव में एक रुपए ), गोधूम, सवत्स धेनु, कुसुम्भ रंजीत वस्त्र, गुड़, स्वर्ण, ताम्र, रक्तचंदन,रक्तपद्म, सवस्त्र भोज्य, दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। सूर्य का वैदिक मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय। जपसंख्या ६०००, देवी मातंगी, अधिदेवता शिव, प्रत्याधि देवता वन्हि, कश्यप गोत्र, क्षत्रिय, कॉलिंग, द्वादशांगूल, द्विभुज, मंडल मध्यवर्ती, वर्तुलाकृति, रक्तवर्ण, ताम्रमूर्ति, सप्ताश्वारुढ़, श्री रामचंद्र अवतार, पुष्पादि जवाकुसुम एवं रक्तवर्ण पुष्प, धुप गुगुल, बलि गुड़ मिश्रित अन्न, समिध श्वेतार्क, दक्षिणा आदि।
सूर्य के विषय में -
सूर्य सभी ग्रहो के स्वामी तथा संपूर्ण ब्रम्हांड के कर्ता है। इन्हे क्रूर और निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार रविवार हैं। यह मेष राशि में उच्च तथा तुला राशि इनका नीच स्थान है। कृतिका, उत्तरफाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, चंद्र और मंगल इनके मित्र ग्रह है।