चंद्र प्रथम भाव में शुक्लपक्ष के बलि होकर केंद्र या त्रिकोण पति होकर लग्नस्थ या स्वराशि राशिगत हों तो जातक बहु सम्पदवान एवं धनी होता है। ऐसा व्येक्ति सदानंदमय और चतुर होता है लेकिन इसके विपरीत अशुभ होने पर अधार्मिक, क्षीणदेह, निर्धन, बुद्धिहीन, शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर होता है। ऐसा व्येक्ति हमेशा कुछ न कुछ सोचने लगता है ओर निरंतर ज्यादा सोचने के कारण मानसिक संतुलन खोने का भय रहता है। पूर्णचन्द्र लग्न में हों तो जातक तेजस्वी व अहंकारी एवं क्षीण चंद्र हो तो मन्दवीर्य या पेशाब का रोगी, मलिन और कांति विहीन होता है। गुरु दृष्ट या युक्त चंद्र हमेशा शुभ फलदाता होता है। शनि, राहु, केतु से पीड़ित चंद्र शुभ भावपति होने पर भी अशुभ हो जाते है। अत्यधिक अशुभ चंद्र हो तो बाल्यरिष्टि की संभानवना रहती है। वृष अथवा कर्क राशि पर हो तो जातक रूपवान्, बलवान्, अत्यन्तधनी, स्त्रीविलासी सज्जन, संगीतप्रिय, स्थूलदेही, गम्भीर, भाग्यशाली, झगड़े-झंझट दूर कराने में प्रवीण, शास्त्रज्ञ, दयालू, सुखी, व्यवसायी, भोगी, तेजस्वी, बहु सन्तानयुक्त तथा यशस्वी होता है। यदि मेष राशि पर हो तो उक्त गुणों के साथ डरपोक-स्वभाव का भी होता है। पूर्ण चन्द्र हो तो सुन्दर, आकर्षक, विद्वान्, उदार, स्वस्थ तथा सहानुभूति पूर्ण होता है। क्षीण चन्द्र हो तो नेत्र -रोगी, दरिद्र, नीच तथा गूंगा, बधिर, व्याधियुक्त अथवा उन्माद रोग ग्रस्त हो सकता है । यदि चन्द्रमा नीच अथवा शत्रु-राशि का हो तो अशुभ फलदायक तथा क्षीण चन्द्र कृष्णपक्ष की नवमी से शुक्ल पक्ष की सप्तमी तक हो तो अनिष्ट का कारक होता है। मेष, सिंह अथवा धनुराशि का हो तो जल्दबाज, कमिथुन, कन्या, धनु, कुम्भ अथवा तुला राशि का होतो विद्वान् तथा कर्क-मीन राशि का हो तो लोकप्रिय होता है। वृश्चिक का हो तो रोगी होता है। नीच सिंह, कन्या का हो तो आंखों का रोगी होता है। यदि चन्द्रमा पर शुभग्रह की दृष्टि हो तो जातक बली, धनी, नीरोग परन्तु कपट युक्त वाणी वोलने वाला होता है। लग्नेश निर्बल हो तो रोगी होता है और शुभ दष्ट हो तो स्वस्थ रहता है। शुभ दृष्ट लग्नेश हो तो जातक प्रवासी होता है। अशुभ चंद्र से दूसरों से ईर्ष्या तथा शुभ चंद्र से ममतामयी प्रेम दृष्टिगोचर होता है।
चंद्र विभिन्न भावों में-
चंद्र के अन्य विशेष उपाय -
सफेद मोती या चांदी धारण करना ( धनु लग्न वालों ) को छोड़कर। शिव आराधना व पूजा करें। शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि के संध्या के समय शिव की आराधना करने से आशुतोष शंकर की कृपा अवश्य होती हैं। चारपाई के पायों में चांदी की कील लगाना। कीकर के वृक्ष में दूध या पानी डालना। माता, नानी, दादी, सास, विधवा स्त्री की सेवा करना। घर की छत पर चौरस टंकी लगवाना। चांदी के बर्तन में दूध पीएं या पानी पिएं। चलते पानी में स्नान करें। घर में जेट पम्प लगवाना। पहाड़ की सैर करना। बर्षा का पानी चावल, ठोस चांदी घर पर रखें । सफेद रंग की चीजों का दान करें। चंद्र दोष से बचने के श्री कृष्ण, महादेव, कमला माता और चंद्र देव की पूजा अर्चना अवश्य करें। शरद पूर्णिमा के दिन घर पर कर्पूर, सफेद मिश्री युक्त चावल की खीर बनाकर एक रजत पत्र (चांदी की थाली)में रखकर घर के छत पर पूर्ण चंद्र दिखने पर अर्पित करें इसे रातभर पूर्णिमा की चाँदनी के नीचे रखें तथा सुबह परिवार के सभी सदस्यों में बाट दें और खुद भी थोड़ा खा लें। हर पूर्णिमा के रात को चंद्र को 10 /15 मिनट बिना पलक झपकाएं देखें। मन को असीम शांति का अनुभव होगा और मानसिक विकार से मुक्ति मिलेगी। चंद्र देव के प्रियफूल रात को खिलनेवाली सफेद कुमुद हैं इसके अलावा सफेद शंखपुष्पी भी चंद्र देव का अत्यधिक प्रिय फुल माना जाता हैं। इनके न मिलने पर किसी दूसरे सफेद फूलों से पूजा कर सकते हैं। चंद्र देव को अर्पित पुष्प या फूल लाल रंग वाले नहीं होने चाहिए। जन्म कुंडली में शनि -चंद्र योग हो या चंद्र अशुभ हो तो ब्रम्हमुहूर्त में स्नान और शाम होने पहले भी स्नान करते रहना चाहिये। शुक्ल त्रयोदशी के शाम के समय शिव पूजा करते रहें। जल और सफेद गाय के कच्चे दूध, चावल, दूध से बनी सफेद मिठाई ,गंगा जल या शुद्ध जल महादेव को अर्पित करें तो देवादिदेव महादेव के कृपा का पात्र बन जाता हैं और प्रबल मानसिक शांति मिलती हैं। जन्मदात्री माता के नियमित सेवा से चंद्र शुभ फलदायी बन जातें हैं। मनको शांत रखने की हमेशा कोशिश करते रहें।
चंद्र अशुभ कब होता हैं ?
घर के सुख में कमी लाने। माता या विधवा स्त्री से झगड़ा करना, दूध में पानी मिलाने से, सीढ़ियों के नीचे पानी का साधन रखना या कुआ आदि। पहाड़ की यात्रा में नुकशान हो जाए। घर में धर्मस्थान बनाया हो। श्राद्ध न करने से। घर में ईश्वर की मूर्ति रखकर घंटी बजाकर पूजा करने से। मानसिक रोग और संतानसुख में कमी। घर की छत पर गोल टंकी बनी हो। गुर्दे के रोग इत्यादि। मानसिक अशांति व चिन्ता की वृद्धि होने पर।
वेदों में चंद्र का दान-
रजत पत्र में चावल, कर्पूर, मुक्ता, शुक्ल वस्त्र (शवेत वस्त्र), चांदी, सफ़ेद गाभी (वृष) आभाव होने पर सवा रुपये, घृत परिपूर्ण कुम्भ, स्वेतवस्त्र सहित भोज्य (भोजन) तथा दक्षिणा इत्यादि सभी वस्तुओं को मंत्र द्वारा दान करें। चंद्र मंत्र- ॐ ऐं क्लिं सोमाय, देवी कमला, अधिदेवता उमा, प्रत्यधिदेवता जल, अत्रि गोत्र, वैश्य, समुद्र, द्विभुज, हस्तप्रमाण, अग्निकोण में अर्धचंद्र आकृति, श्वेतवर्ण, दशाश्वोपरी, श्वेत पद्मस्थ, श्री कृष्ण अवतार। पुष्पादि श्वेतवर्ण, स्फटिक मूर्ति, धुप सरलकाष्ठ, बलि घृत मिश्रित खीर, समिध पलाश, दक्षिणा शंख।
चंद्र के विषय में -
चंद्र सम्पूर्ण ब्रम्हांड का मातृ स्वरुप ग्रह है। इन्हे सौम्य और शीतल ग्रह कहा गया है। इनका वार सोमवार है। यह वृष राशि में उच्च तथा वृश्चिक राशि इनका नीच स्थान है। रोहिणी, हस्ता तथा श्रवणा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, सूर्य, मंगल इनके मित्र ग्रह है।
अन्य सभी ग्रह-