चंद्र द्वितीय भाव में (moon in second house)

Kaushik sharma
चंद्र द्वितीय भाव में


चंद्र द्वितीय भाव में शुभ हो तो जातक रूपवान व स्वास्थ्य सुख से सूखी होता है और उसके कृषि सम्पद में वृद्धि होती है। वो आकर्षणीय और स्त्री विलासी होता है। पूर्ण चंद्र द्वितीय भाव में हो तो धन पुत्र एवं शांति प्रदान करता है लेकिन क्षीण चंद्र होने पर धनहीन, स्वल्पबुद्धि वाला होने के कारण गोपनीय बातों को भी अनर्गल बोलकर उजागर देता है। चंद्र किसी भी अवस्था में होने पर भी बृहस्पति युक्त या दृष्ट होने पर शुभ फलदायी बन जातें हैं । सूर्य से युक्त होने पर सूर्य के किरण जाल से आहत होकर आत्मीय-कुटुम्ब से अशांति को प्राप्त करता है, मंगल युक्त हों तो चर्मरोगी या चक्राधी (ring worm) होता है। बुध युक्त हो तो धन का नाश होता है। शनि युक्त हो तो आत्मीय परिजनों से वियुक्त और राहु या केतु के साथ हों तो अस्थिर चित्त व दरिद्र दोष से पीड़ित होता है। शुभ चंद्र से जातक सुन्दर शरीर वाला, विद्या प्रेमी, बलवान, स्वस्थ, मधुरभाषी, सुखी, स्त्रीविलासी, सबको को प्रसन्नतादायक, स्वकुटुम्ब प्रेमी, मर्मज्ञ, धनसंचयी, कोटुम्बिक-सुख-सम्पन्न, उदार, परदेशवासी, सहिष्णु राज्य द्वारा सम्मानित, हठी, विनीत, तेजस्वी, भाग्यवान्, अल्प-सन्तोषी होता है। द्वितीयस्थ चन्द्रमा तथा मङ्गल अक्सर फलहीन हो जाते हैं। मेष, वृष, तथा मकर राशि में चन्द्र मङ्गल हो तो शुभ फल मिलता है। यदि पूर्णबली पूर्णिमा का चन्द्र हो तो जातक अत्यन्त सुन्दर, बलवान, धनी, विद्वान्, विश्वासी तथा अप्सराओं को भी मोहित करने वाला होता है। यदि चन्द्रमा शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृढ़ हो तो चिकित्सा-शास्त्र में पटू तथा क्षीण चन्द्र हो तो जातक तुतलाकर बालने वाली, धन-हौन, अल्प बुद्धि तथा रूखें व्यवहार वाला होता है। यदि नीच वृश्चिक का हो तो दुःखी, दुबुद्धि, धनहीन तथा स्त्री-वर्ग से धन प्राप्त करने वाला होता है। क्षीण चन्द्रमा पर बुध की दृष्टि हो तो पूर्वाजित सम्पत्ति नष्ट हो जाती है तथा कई प्रकार से धन का अभाव होता है। शुभ चंद्र से मीठी बोली बोलने वाला और अशुभ चंद्र से प्रेमहीन विलाप करने वाला होता है। शुभ चंद्र हों तो सर्वदा धन की वृद्धि की चिंताओं में मग्न रहता है।

चंद्र विभिन्न भावों में-


चंद्र के विशेष उपाय-

सफेद मोती या चांदी धारण करना ( धनु लग्न वालों ) को छोड़कर। शिव आराधना व पूजा करें। शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि के संध्या के समय शिव की आराधना करने से आशुतोष शंकर की कृपा अवश्य होती हैं। चारपाई के पायों में चांदी की कील लगाना। कीकर के वृक्ष में दूध या पानी डालना। माता, नानी, दादी, सास, विधवा स्त्री की सेवा करना। घर की छत पर चौरस टंकी लगवाना। चांदी के बर्तन में दूध पीएं या पानी पिएं। चलते पानी में स्नान करें। घर में जेट पम्प लगवाना। पहाड़ की सैर करना। बर्षा का पानी चावल, ठोस चांदी घर पर रखें। सफेद रंग की चीजों का दान करें। चंद्र दोष से बचने के श्री कृष्ण, महादेव, कमला माता और चंद्र देव की पूजा अर्चना अवश्य करें। शरद पूर्णिमा के दिन घर पर कर्पूर, सफेद मिश्री युक्त चावल की खीर बनाकर एक रजत पत्र (चांदी की थाली) में रखकर घर के छत पर पूर्ण चंद्र दिखने पर अर्पित करें इसे रातभर पूर्णिमा की चाँदनी के नीचे रखें तथा सुबह परिवार के सभी सदस्यों में बाट दें और खुद भी थोड़ा खा लें। हर पूर्णिमा के रात को चंद्र को 10/15 मिनट बिना पलक झपकाएं देखें। मन को असीम शांति का अनुभव होगा और मानसिक विकार से मुक्ति मिलेगी । चंद्र देव के प्रियफूल रात को खिलनेवाली सफेद कुमुद हैं इसके अलावा सफेद शंखपुष्पी भी चंद्र देव का अत्यधिक प्रिय फुल माना जाता हैं। इनके न मिलने पर किसी दूसरे सफेद फूलों से पूजा कर सकते हैं। चंद्र देव को अर्पित पुष्प या फूल लाल रंग वाले नहीं होने चाहिए। जन्म कुंडली में शनि -चंद्र योग हो या चंद्र अशुभ हो तो ब्रम्हमुहूर्त में स्नान और शाम होने पहले भी स्नान करते रहना चाहिये। शुक्ल त्रयोदशी के शाम के समय शिव पूजा करते रहें। जल और सफेद गाय के कच्चे दूध, चावल, दूध से बनी सफेद मिठाई ,गंगा जल या शुद्ध जल महादेव को अर्पित करें तो देवादिदेव महादेव के कृपा का पात्र बन जाता हैं और प्रबल मानसिक शांति मिलती हैं। जन्मदात्री माता के नियमित सेवा से चंद्र शुभ फलदायी बन जातें हैं। मनको शांत रखने की हमेशा कोशिश करते रहें।

चंद्र अशुभ कब होता हैं ?


घर के सुख में कमी लाने। माता या विधवा स्त्री से झगड़ा करना,दूध में पानी मिलाने से, सीढ़ियों के नीचे पानी का साधन रखना या कुआ आदि। पहाड़ की यात्रा में नुकशान हो जाए। घर में धर्मस्थान बनाया हो। श्राद्ध न करने से। घर में ईश्वर की मूर्ति रखकर घंटी बजाकर पूजा करने से। मानसिक रोग और संतानसुख में कमी। घर की छत पर गोल टंकी बनी हो। गुर्दे के रोग इत्यादि। मानसिक अशांति व चिन्ता की वृद्धि होने पर।

 
वेदों में चंद्र का दान-

रजत पत्र में चावल, कर्पूर, मुक्ता, शुक्ल वस्त्र (शवेत वस्त्र), चांदी, सफ़ेद गाभी (वृष) आभाव होने पर सवा रुपये, घृत परिपूर्ण कुम्भ, स्वेतवस्त्र सहित भोज्य (भोजन) तथा दक्षिणा इत्यादि सभी वस्तुओं को मंत्र द्वारा दान करें। चंद्र मंत्र- ॐ ऐं क्लिं सोमाय, देवी कमला, अधिदेवता उमा, प्रत्यधिदेवता जल, अत्रि गोत्र, वैश्य, समुद्र, द्विभुज, हस्तप्रमाण, अग्निकोण में अर्धचंद्र आकृति, श्वेतवर्ण, दशाश्वोपरी, श्वेत पद्मस्थ, श्री कृष्ण अवतार। पुष्पादि श्वेतवर्ण, स्फटिक मूर्ति, धुप सरलकाष्ठ, बलि घृत मिश्रित खीर, समिध पलाश, दक्षिणा शंख। 


चंद्र के विषय में -

चंद्र सम्पूर्ण ब्रम्हांड का मातृ स्वरुप ग्रह है। इन्हे सौम्य और शीतल ग्रह कहा गया है। इनका वार सोमवार है। यह वृष राशि में उच्च तथा वृश्चिक राशि इनका नीच स्थान है। रोहिणी, हस्ता तथा श्रवणा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, सूर्य, मंगल इनके मित्र ग्रह है।



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