चंद्र तृतीय भाव में अशुभ भाव के अधिपति होकर स्थित हों तो दाम्भिक, कंजुष, मित्रजनों का आश्रयदाता एवं जड़बुद्धि संपन्न होता है। "चमत्कार चिंतामणि" के अनुसार पूर्ण चंद्र तृतीय भाव में हो तो जातक स्वकीय क्षमता द्वारा धन अर्जित करता है। विलासी नारीगणों के बीच रहकर भी तपस्वी स्वरूप होता है। शुभ चंद्र से अनुज आदि द्वारा सुखी एवं श्रेष्ठ धार्मिक होता है। जातक को सुरुपा बहिन की प्राप्ति होती है। चंद्र के बलाबल अनुसार उक्त फलों में परिवर्तन होता है। शुभ भाव के अधिपति होकर तिथिबल को प्राप्त शुभ बर्गाधिक्य या शुभ नवांश में होने पर शुभ फलदाता और विपरीत होने पर अशुभ फल की प्राप्ति होती है।
शुभ हो तो जातक स्वपराक्रम से द्रव्योपार्जन करने
वाला सहोदरों से प्रेम पाने वाला, भोगी होते हुए भी तपस्वी तुल्य, धर्म रक्षक, धनी, स्वभावतः सुखी रहने वाला, धार्मिक कार्यों द्वारा उज्ज्वल कीति पाने वाला, छोटे भाई पर प्रेम रखने वाला प्रवासी, विद्वान्, गूढ़-विषयों का ज्ञाता, कुशल-लेखक तथा मनमौजी होता है। ऐसा व्यक्ति दुबले-पतले शरीर वाला, साहसी, स्वस्थ, निर्दयी, बदला लेने की भावना रखने वाला तथा मित्रों को आश्रय देने वाला होता है। चंद्र अत्यधिक अशुभ होने पर कलह, धन-हानि, चोर-भय, पशु-भय अथवा भ्रातृ-नाश के कारण दुःखी होता है। ऐसा जातक विमातायुक्त अथवा किसी अन्य माता का दुग्ध पान करने वाला भी हो सकता है। चन्द्रमा शुभ राशि में हो तो जातक काव्य प्रमी होता है। चन्द्रमा राहु अथवा केतु से युक्त हो तो जातक धनी होता है, परन्तु भाई को कष्ट होता है। चंद्रमा नीच राशि में हो तो जातक कृपण, तकरारी, कान का रोगी परन्तु धर्म में प्रवृत्ति रखने वाला होता है। चंद्रमा शुक्र युक्त हो तो बहिन का सुख मिलता है। यदि चंद्रमा के साथ लग्नेश तथा पष्ठेश का योग हो तो जातक श्वांस रोगी अथवा कण्ठ या पाकस्थली के विकार से ग्रस्त होता है। शुभ चंद्र से भ्रमण द्वारा भाग्य की वृद्धि और लाभ अवश्य होता है।
चंद्र विभिन्न भावों में-
सफेद मोती या चांदी धारण करना ( धनु लग्न वालों ) को छोड़कर। शिव आराधना व पूजा करें। शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि के संध्या के समय शिव की आराधना करने से आशुतोष शंकर की कृपा अवश्य होती हैं। चारपाई के पायों में चांदी की कील लगाना। कीकर के वृक्ष में दूध या पानी डालना। माता, नानी, दादी, सास, विधवा स्त्री की सेवा करना। घर की छत पर चौरस टंकी लगवाना। चांदी के बर्तन में दूध पीएं या पानी पिएं। चलते पानी में स्नान करें। घर में जेट पम्प लगवाना। पहाड़ की सैर करना। बर्षा का पानी चावल, ठोस चांदी घर पर रखें। सफेद रंग की चीजों का दान करें। चंद्र दोष से बचने के श्री कृष्ण, महादेव, कमला माता और चंद्र देव की पूजा अर्चना अवश्य करें। शरद पूर्णिमा के दिन घर पर कर्पूर, सफेद मिश्री युक्त चावल की खीर बनाकर एक रजत पत्र (चांदी की थाली)में रखकर घर के छत पर पूर्ण चंद्र दिखने पर अर्पित करें इसे रातभर पूर्णिमा की चाँदनी के नीचे रखें तथा सुबह परिवार के सभी सदस्यों में बाट दें और खुद भी थोड़ा खा लें। हर पूर्णिमा के रात को चंद्र को 10 /15 मिनट बिना पलक झपकाएं देखें। मन को असीम शांति का अनुभव होगा और मानसिक विकार से मुक्ति मिलेगी।
चंद्र देव के प्रियफूल रात को खिलनेवाली सफेद
कुमुद हैं इसके अलावा सफेद शंखपुष्पी भी चंद्र देव का अत्यधिक प्रिय फुल माना जाता हैं। इनके न मिलने पर किसी दूसरे सफेद फूलों से पूजा कर सकते हैं। चंद्र देव को अर्पित पुष्प या फूल लाल रंग वाले नहीं होने चाहिए। जन्म कुंडली में शनि-चंद्र योग हो या चंद्र अशुभ हो तो ब्रम्हमुहूर्त में स्नान और शाम होने पहले भी स्नान करते रहना चाहिये। शुक्ल त्रयोदशी के शाम के समय शिव पूजा करते रहें। जल और सफेद गाय के कच्चे दूध , चावल , दूध से बनी सफेद मिठाई ,गंगा जल या शुद्ध जल महादेव को अर्पित करें तो देवादिदेव महादेव के कृपा का पात्र बन जाता हैं और प्रबल मानसिक शांति मिलती हैं। जन्मदात्री माता के नियमित सेवा से चंद्र शुभ फलदायी बन जातें हैं। मनको शांत रखने की हमेशा कोशिश करते रहें।
चंद्र अशुभ कब होता हैं ?
घर के सुख में कमी लाने। माता या विधवा स्त्री से झगड़ा करना, दूध में पानी मिलाने से, सीढ़ियों के नीचे पानी का साधन रखना या कुआ आदि। पहाड़ की यात्रा में नुकशान हो जाए। घर में धर्मस्थान बनाया हो। श्राद्ध न करने से। घर में ईश्वर की मूर्ति रखकर घंटी बजाकर पूजा करने से। मानसिक रोग और संतानसुख में कमी। घर की छत पर गोल टंकी बनी हो। गुर्दे के रोग इत्यादि। मानसिक अशांति व चिन्ता की वृद्धि होने पर।
वेदों में चंद्र का दान-
रजत पत्र में चावल, कर्पूर, मुक्ता, शुक्ल वस्त्र (शवेत वस्त्र), चांदी, सफ़ेद गाभी (वृष) आभाव होने पर सवा रुपये, घृत परिपूर्ण कुम्भ, स्वेतवस्त्र सहित भोज्य ( भोजन ) तथा दक्षिणा इत्यादि सभी वस्तुओं को मंत्र द्वारा दान करें। चंद्र मंत्र - ॐ ऐं क्लिं सोमाय, देवी कमला, अधिदेवता उमा, प्रत्यधिदेवता जल, अत्रि गोत्र, वैश्य, समुद्र, द्विभुज, हस्तप्रमाण, अग्निकोण में अर्धचंद्र आकृति, श्वेतवर्ण, दशाश्वोपरी, श्वेत पद्मस्थ, श्री कृष्ण अवतार। पुष्पादि श्वेतवर्ण, स्फटिक मूर्ति, धुप सरलकाष्ठ, बलि घृत मिश्रित खीर, समिध पलाश, दक्षिणा शंख।
चंद्र के विषय में -
चंद्र सम्पूर्ण ब्रम्हांड का मातृ स्वरुप ग्रह है। इन्हे सौम्य और शीतल ग्रह कहा गया है। इनका वार सोमवार है। यह वृष राशि में उच्च तथा वृश्चिक राशि इनका नीच स्थान है। रोहिणी, हस्ता तथा श्रवणा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, सूर्य, मंगल इनके मित्र ग्रह है।
अन्य सभी ग्रह-
👉 सूर्य सभी घरों में
👉 चंद्र सभी घरों में
👉 मंगल सभी घरों में
👉 बुध सभी घरों में
👉 बृहस्पति सभी घरों में
👉 शुक्र सभी घरों में
👉 शनि सभी घरों में
👉 राहु सभी घरों में
👉 केतु सभी घरों में
👉 युरेनस सभी घरों में
👉 नेप्च्यून सभी घरों में
👉 प्लूटो सभी घरों में
अन्य सभी ग्रह-
👉 सूर्य सभी घरों में
👉 चंद्र सभी घरों में
👉 मंगल सभी घरों में
👉 बुध सभी घरों में
👉 बृहस्पति सभी घरों में
👉 शुक्र सभी घरों में
👉 शनि सभी घरों में
👉 राहु सभी घरों में
👉 केतु सभी घरों में
👉 युरेनस सभी घरों में
👉 नेप्च्यून सभी घरों में
👉 प्लूटो सभी घरों में