चंद्र नवम भाव में पूर्णिमा के हों तो कवि भट्ट नारायण के अनुसार जातक धार्मिक व पुण्यवान होता है। उसके सुख, यौवन और धन की पूर्णता से समाज मे अति भाग्यवान होने का गौरव प्राप्त करता है। कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष के उतार चढ़ाव के कारणवश ऐसे व्येक्ति का भाग्य और उत्साह चंद्रकला के समान कभी कम या वृद्धि को प्राप्त करता है। क्षीण और बलहीन चंद्र से उक्त फलों का विपरीत फल प्रदान करता है परिणाम स्वरूप डरपोक, दुर्बलचित्त और दरिद्र होता है। शुभ चंद्र द्वारा अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में धार्मिक कृत कर्मों द्वारा पुण्यवान बनता है। जातक शारिरिक रूप से स्वस्थ, सुखी, अत्यंत धर्मनिष्ठ तथा चन्द्रमा के समान पराक्रमी, माता पिता की सेवा करनेवाला, उत्तम पु्त्र संतान प्राप्त करने वाला, सत्कर्म में धन खर्च करनेवाला, स्नानदान, पूजा, यज्ञकर्ता, साधुसंतों का आश्रयदाता, ऐश्वर्यवान, धनी, स्त्री द्वारा सुखी, श्रेष्ठ कर्म करने वाला, धर्मात्मा, स्नानप्रिय, जलाशय, भवनआदि का निर्माण करनेवाला, साहसी, आदरणीय, प्रवास-प्रिय, तीर्थ या देश-विदेश भ्रमणकारी, भाग्यवान तथा भ्रमण द्वारा भाग्य लाभ और व्यापार से लाभ होता है।
क्षीण अथवा नीचस्थ चन्द्र हो तो धर्म कर्म से हीन अधार्मिक धनहीन, गुण-हीन, मूर्ख, नास्तिक तथा अशुभ चंद्र के अस्थिरता व चंचलता के कारण उसका भाग्य स्थिर नही हो पाता और परिणाम स्वरुप हर दिशा से भाग्यहीन होता है। शुभ राशि, उच्च या स्वक्षेत्रगत, शुभ वर्गगत या शुभ नवांशगत चंद्र पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक महाभाग्यवान होता है इसके परिणामस्वरूप जातक भाई बहिन द्वारा सुखी तथा पराक्रम की वृद्धि से लाभान्वित होता है। दुर्बल चंद्र की स्थिति से बुद्धि के विकास में अस्थिरता तथा पूर्वजन्म के कृत कर्मो से दुर्भाग्य का निर्माण करता है। भाई बहिन से दुःख या विवाद या सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते। भ्रमण द्वारा क्षति या दुर्भाग्य को जन्म देनेवाला तथा सर्वप्रकार से पराक्रम नाश करने वाला होता हैं। धर्मकर्म हीन होकर रहना उसका भाग्य बन जाता हैं ।
चंद्र विभिन्न भावों में-
चंद्र के अन्य विशेष उपाय -
सफेद मोती या चांदी धारण करना (धनु लग्न वालों) को छोड़कर। शिव आराधना व पूजा करें। शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि के संध्या के समय शिव की आराधना करने से आशुतोष शंकर की कृपा अवश्य होती हैं। चारपाई के पायों में चांदी की कील लगाना। कीकर के वृक्ष में दूध या पानी डालना। माता, नानी, दादी, सास, विधवा स्त्री की सेवा करना। घर की छत पर चौरस टंकी लगवाना। चांदी के बर्तन में दूध पीएं या पानी पिएं। चलते पानी में स्नान करें। घर में जेट पम्प लगवाना। पहाड़ की सैर करना। बर्षा का पानी चावल, ठोस चांदी घर पर रखें। सफेद रंग की चीजों का दान करें। चंद्र दोष से बचने के श्री कृष्ण, महादेव, कमला माता और चंद्र देव की पूजा अर्चना अवश्य करें। शरद पूर्णिमा के दिन घर पर कर्पूर, सफेद मिश्री युक्त चावल की खीर बनाकर एक रजत पत्र (चांदी की थाली)में रखकर घर के छत पर पूर्ण चंद्र दिखने पर अर्पित करें इसे रातभर पूर्णिमा की चाँदनी के नीचे रखें तथा सुबह परिवार के सभी सदस्यों में बाट दें और खुद भी थोड़ा खा लें। हर पूर्णिमा के रात को चंद्र को 10 /15 मिनट बिना पलक झपकाएं देखें। मन को असीम शांति का अनुभव होगा और मानसिक विकार से मुक्ति मिलेगी। चंद्र देव के प्रियफूल रात को खिलनेवाली सफेद कुमुद हैं इसके अलावा सफेद शंखपुष्पी भी चंद्र देव का अत्यधिक प्रिय फुल माना जाता हैं। इनके न मिलने पर किसी दूसरे सफेद फूलों से पूजा कर सकते हैं। चंद्र देव को अर्पित पुष्प या फूल लाल रंग वाले नहीं होने चाहिए। जन्म कुंडली में शनि -चंद्र योग हो या चंद्र अशुभ हो तो ब्रम्हमुहूर्त में स्नान और शाम होने पहले भी स्नान करते रहना चाहिये। शुक्ल त्रयोदशी के शाम के समय शिव पूजा करते रहें। जल और सफेद गाय के कच्चे दूध, चावल, दूध से बनी सफेद मिठाई ,गंगा जल या शुद्ध जल महादेव को अर्पित करें तो देवादिदेव महादेव के कृपा का पात्र बन जाता हैं और प्रबल मानसिक शांति मिलती हैं। जन्मदात्री माता के नियमित सेवा से चंद्र शुभ फलदायी बन जातें हैं। मनको शांत रखने की हमेशा कोशिश करते रहें।
चंद्र अशुभ कब होता हैं ?
घर के सुख में कमी लाने। माता या विधवा स्त्री से झगड़ा करना, दूध में पानी मिलाने से, सीढ़ियों के नीचे पानी का साधन रखना या कुआ आदि। पहाड़ की यात्रा में नुकशान हो जाए। घर में धर्मस्थान बनाया हो। श्राद्ध न करने से। घर में ईश्वर की मूर्ति रखकर घंटी बजाकर पूजा करने से। मानसिक रोग और संतानसुख में कमी। घर की छत पर गोल टंकी बनी हो। गुर्दे के रोग इत्यादि। मानसिक अशांति व चिन्ता की वृद्धि होने पर।
वेदों में चंद्र का दान-
रजत पत्र में चावल, कर्पूर, मुक्ता, शुक्ल वस्त्र (शवेत वस्त्र), चांदी, सफ़ेद गाभी (वृष) आभाव होने पर सवा रुपये, घृत परिपूर्ण कुम्भ, स्वेतवस्त्र सहित भोज्य (भोजन) तथा दक्षिणा इत्यादि सभी वस्तुओं को मंत्र द्वारा दान करें। चंद्र मंत्र - ॐ ऐं क्लिं सोमाय, देवी कमला, अधिदेवता उमा, प्रत्यधिदेवता जल, अत्रि गोत्र, वैश्य, समुद्र, द्विभुज, हस्तप्रमाण, अग्निकोण में अर्धचंद्र आकृति, श्वेतवर्ण, दशाश्वोपरी, श्वेत पद्मस्थ, श्री कृष्ण अवतार। पुष्पादि श्वेतवर्ण, स्फटिक मूर्ति, धुप सरलकाष्ठ, बलि घृत मिश्रित खीर, समिध पलाश, दक्षिणा शंख।
चंद्र के विषय में -
चंद्र सम्पूर्ण ब्रम्हांड का मातृ स्वरुप ग्रह है। इन्हे सौम्य और शीतल ग्रह कहा गया है। इनका वार सोमवार है। यह वृष राशि में उच्च तथा वृश्चिक राशि इनका नीच स्थान है। रोहिणी, हस्ता तथा श्रवणा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, सूर्य, मंगल इनके मित्र ग्रह है।
अन्य सभी ग्रह-
👉 सूर्य सभी घरों में
👉 चंद्र सभी घरों में
👉 मंगल सभी घरों में
👉 बुध सभी घरों में
👉 बृहस्पति सभी घरों में
👉 शुक्र सभी घरों में
👉 शनि सभी घरों में
👉 राहु सभी घरों में
👉 केतु सभी घरों में
👉 युरेनस सभी घरों में
👉 नेप्च्यून सभी घरों में
👉 प्लूटो सभी घरों में
👉 सूर्य सभी घरों में
👉 चंद्र सभी घरों में
👉 मंगल सभी घरों में
👉 बुध सभी घरों में
👉 बृहस्पति सभी घरों में
👉 शुक्र सभी घरों में
👉 शनि सभी घरों में
👉 राहु सभी घरों में
👉 केतु सभी घरों में
👉 युरेनस सभी घरों में
👉 नेप्च्यून सभी घरों में
👉 प्लूटो सभी घरों में