चंद्र छठे भाव में अशुभ हो तो अजीर्ण रोग, निर्मम और आलस्य की वृद्धि करने वाला होता है। क्षीण तथा बली होने के अनुसार फलों की भिन्नता होती है। चंद्र शुभ होने पर जातक प्रभावशाली होता है परंतु शत्रु की वृद्धि भी करता है। शुभ चंद्र से मातृ भक्ति साधारण रूप से शुभ लेकिन बलहीन चंद्र से माता से विरोध आदि का जन्म होता है। जातक प्रतापी, शत्रुओं को प्रभावहीन तथा पराजित करने वाला अशुभ हो तो माता से विमूख, भाई अथवा शत्रुओं से संतप्त रहता है। जातक दुर्बल शरीर वाला, कफ-रोगी, मंदाग्नि रोगी, दुष्टस्वभाव वाला, अपव्ययी, क्रोधी, नेत्र-रोगी इत्यादि अशुभ फलों का लाभ होता है। यदि पूर्ण अथवा शुवल पक्ष का चन्द्रमा हो तो जातक दीर्घायु और क्षीण चंद्र हो तो आलसी, विषयासत्त, कामी, वात-कफ तथा मदाग्नि रोग युक्त एवं अनेक शत्रुओं वाला होता है। बलवान् चन्द्र नोकरी में तरक्की देता है। यदि क्षीण चन्द्रमा हो तो जातक कुरूप, रोग-पीड़ित, दुर्बल शरीर वाला तथा सुख-हीन होता है। चन्द्रमा के साथ राहु या केतु हो तो
धन हीन होता है एवं शत्रु से झगड़ा करने वाला, मिथुन, कन्या, धनु अथवा मीन राशि हो तो कफ विकार होता है। शुभ चंद्रमा निरोग, बलिष्ठ तथा जलाशय का स्वामी बनाता है। चंद्रमा शुक्र युक्त हो तो स्त्री के लिए धन खर्च करने वाला, व्यसनी, बन्धुबर्ग से विरोध रखने वाला, न्याय कार्य में अपयश, वीर्य एवं मूत्र रोगी तथा स्त्री से कष्ट पाने वाला होता है। चंद्रमा के साथ राहु और केतु हो तो जातक को जलोदर या मदाग्नि का रोग अथवा जीवन में जल-भय से होने की दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ता है। ऐसे जातकों को नदी, तालाब और जलाशय में नहाते वक्त विशेष सावधानी जरूरी होती है। बलबान चंद्र से माता से कदापी वैर नही होता तथा विदेश वास आदि प्रसंग में सफलता प्राप्त करता है। शुभ चंद्र से शुभ कर्मो मैं धन का व्यय और अशुभ चंद्र से माता से विवाद, रोग शत्रु आदि वृद्धि और धन का नाश होता है।
चंद्र विभिन्न भावों में-
चंद्र के विशेष उपाय-
सफेद मोती या चांदी धारण करना ( धनु लग्न वालों ) को छोड़कर। शिव आराधना व पूजा करें। शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि के संध्या के समय शिव की आराधना करने से आशुतोष शंकर की कृपा अवश्य होती हैं। चारपाई के पायों में चांदी की कील लगाना। कीकर के वृक्ष में दूध या पानी डालना। माता, नानी, दादी, सास, विधवा स्त्री की सेवा करना। घर की छत पर चौरस टंकी लगवाना। चांदी के बर्तन में दूध पीएं या पानी पिएं। चलते पानी में स्नान करें। घर में जेट पम्प लगवाना। पहाड़ की सैर करना। बर्षा का पानी चावल, ठोस चांदी घर पर रखें। सफेद रंग की चीजों का दान करें। चंद्र दोष से बचने के श्री कृष्ण, महादेव, कमला माता और चंद्र देव की पूजा अर्चना अवश्य करें। शरद पूर्णिमा के दिन घर पर कर्पूर, सफेद मिश्री युक्त चावल की खीर बनाकर एक रजत पत्र (चांदी की थाली)में रखकर घर के छत पर पूर्ण चंद्र दिखने पर अर्पित करें इसे रातभर पूर्णिमा की चाँदनी के नीचे रखें तथा सुबह परिवार के सभी सदस्यों में बाट दें और खुद भी थोड़ा खा लें।
हर पूर्णिमा के रात को चंद्र को 10 /15 मिनट बिना पलक झपकाएं देखें। मन को असीम शांति का अनुभव होगा और मानसिक विकार से मुक्ति मिलेगी। चंद्र देव के प्रियफूल रात को खिलनेवाली सफेद कुमुद हैं इसके अलावा सफेद शंखपुष्पी भी चंद्र देव का अत्यधिक प्रिय फुल माना जाता हैं। इनके न मिलने पर किसी दूसरे सफेद फूलों से पूजा कर सकते हैं। चंद्र देव को अर्पित पुष्प या फूल लाल रंग वाले नहीं होने चाहिए। जन्म कुंडली में शनि-चंद्र योग हो या चंद्र अशुभ हो तो ब्रम्हमुहूर्त में स्नान और शाम होने पहले भी स्नान करते रहना चाहिये। शुक्ल त्रयोदशी के शाम के समय शिव पूजा करते रहें। जल और सफेद गाय के कच्चे दूध, चावल, दूध से बनी सफेद मिठाई ,गंगा जल या शुद्ध जल महादेव को अर्पित करें तो देवादिदेव महादेव के कृपा का पात्र बन जाता हैं और प्रबल मानसिक शांति मिलती हैं। जन्मदात्री माता के नियमित सेवा से चंद्र शुभ फलदायी बन जातें हैं। मनको शांत रखने की हमेशा कोशिश करते रहें ।
चंद्र अशुभ कब होता हैं ?
घर के सुख में कमी लाने। माता या विधवा स्त्री से झगड़ा करना,दूध में पानी मिलाने से, सीढ़ियों के नीचे पानी का साधन रखना या कुआ आदि। पहाड़ की यात्रा में नुकशान हो जाए। घर में धर्मस्थान बनाया हो। श्राद्ध न करने से। घर में ईश्वर की मूर्ति रखकर घंटी बजाकर पूजा करने से। मानसिक रोग और संतानसुख में कमी। घर की छत पर गोल टंकी बनी हो। गुर्दे के रोग इत्यादि। मानसिक अशांति व चिन्ता की वृद्धि होने पर।
वेदों में चंद्र का दान-
रजत पत्र में चावल, कर्पूर, मुक्ता, शुक्ल वस्त्र ( शवेत वस्त्र ), चांदी, सफ़ेद गाभी ( वृष ) आभाव होने पर सवा रुपये, घृत परिपूर्ण कुम्भ, स्वेतवस्त्र सहित भोज्य ( भोजन ) तथा दक्षिणा इत्यादि सभी वस्तुओं को मंत्र द्वारा दान करें। चंद्र मंत्र - ॐ ऐं क्लिं सोमाय, देवी कमला, अधिदेवता उमा , प्रत्यधिदेवता जल, अत्रि गोत्र, वैश्य, समुद्र, द्विभुज, हस्तप्रमाण, अग्निकोण में अर्धचंद्र आकृति, श्वेतवर्ण, दशाश्वोपरी, श्वेत पद्मस्थ, श्री कृष्ण अवतार। पुष्पादि श्वेतवर्ण, स्फटिक मूर्ति, धुप सरलकाष्ठ, बलि घृत मिश्रित खीर, समिध पलाश, दक्षिणा शंख।
चंद्र के विषय में -
चंद्र सम्पूर्ण ब्रम्हांड का मातृ स्वरुप गृह है। इन्हे सौम्य और शीतल ग्रह कहा गया है। इनका वार सोमवार है। यह वृष राशि में उच्च तथा वृश्चिक राशि इनका नीच स्थान है। रोहिणी, हस्ता तथा श्रवणा इनके तीन नक्षत्र है। बृहस्पति, सूर्य, इनके मित्र ग्रह है।
अन्य सभी ग्रह-
👉 सूर्य सभी घरों में
👉 चंद्र सभी घरों में
👉 मंगल सभी घरों में
👉 बुध सभी घरों में
👉 बृहस्पति सभी घरों में
👉 शुक्र सभी घरों में
👉 शनि सभी घरों में
👉 राहु सभी घरों में
👉 केतु सभी घरों में
👉 युरेनस सभी घरों में
👉 नेप्च्यून सभी घरों में
👉 प्लूटो सभी घरों में
👉 सूर्य सभी घरों में
👉 चंद्र सभी घरों में
👉 मंगल सभी घरों में
👉 बुध सभी घरों में
👉 बृहस्पति सभी घरों में
👉 शुक्र सभी घरों में
👉 शनि सभी घरों में
👉 राहु सभी घरों में
👉 केतु सभी घरों में
👉 युरेनस सभी घरों में
👉 नेप्च्यून सभी घरों में
👉 प्लूटो सभी घरों में