केतु सप्तम भाव में (Ketu in 7th house)

Kaushik sharma
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केतु सप्तम भाव में (Ketu in 7th house)


केतु सप्तम भाव में उच्च या शुभ भावगत होने पर विवाह भाग्य अनुकूल एवं पत्नी अच्छे परिवार से होती है। जातक व्यापार एवं विवाहित जीवन में भाग्यशाली, ऐश्वर्य से सम्पन्न होता है। केतु के अशुभ होने पर विवाह से अप्रसन्न, द्विभार्या योग या स्त्री पुत्रादि के रोग आदि में धन का व्येय करने वाला, प्रचंडरूपा स्त्री का पति, चंचल या व्यग्र रहने वाला, केतु के ज्यादा अशुभ होने पर स्त्री को गंडमाला या अन्य असाध्य रोग होता है। जातक विजातीय या नीच जातीय स्त्री से सम्बन्धयुक्त, व्येभिचारी, मूर्खतापूर्ण आचरण करने वाला, पापाचारी एवं स्त्री के लिए पीड़ाकारक होता है। स्त्री जातिका की कुंडली में सप्तमस्थ केतु से गर्भाशय या पेट से सम्बंधित रोग द्वारा कष्ट होता है। केतु जातक को भ्रमणप्रिय बनाता है सप्तमस्थ केतु वृश्चिक, धनु राशिगत या गुरुयुक्त-दृष्ट होने पर अशुभ फलों में कमी लाता है। सप्तमस्थ केतु से कई बार यात्रा की योजना तो बनती है परंतु अंतिम मुहूर्त में स्थगित हो जाता है।

केतु विभिन्न भाव में-

केतु के विशेष उपाय -

लहसुनिया या लपीज़ लजूली पहने या पांच धातु या सप्त धातु का छल्ला पहनें। गणेश जी की पूजा या गणेश चतुर्थी का व्रत करें। पुत्र, भतीजे, भाजें, दोस्ते, पोते और जवाई की सेवा करें। कानो में सोना पहने। तिल (काले-सफेद) दान करें या जल प्रवाह करें। काले सफेद कम्बल धर्म स्थान में या किसी गरीब को दान दें। नीबू, केला इमली (खट्टी चीजें) दान देना या जल प्रवाह करे। दहेज में दो पलंग और सोने की बेजोड़ अंगुठी लें। कुत्ता पालें या कुत्ते के सेवा करे।

केतु अशुभ कैसे होता है ?

तांबे पीतल-चांदी आदि के जेवरात पर सोना का पानी चढ़ा कर पहनने से। किसी के लड़के को गुमराह या अगवाह करना। कुत्ता काट दे या कुत्तों से नफरत या कुत्ते मरवाने से। बीते हुए समय को याद करने से। गुप्तांग में कष्ट या पेशाब के रोग, दमा या शुगर आदि की बीमारी होने से। मामा से झगड़ा हो या आवारा घुमने से। बेफजूल यात्रा करने से नाभि के नीचे की बीमारियां, रीढ़ की हड्डी, पांव, जोड़ों का दर्द, टांग आदि का दर्द हो जाने पर। किसी के पेशाब पर पेशाब करने पर। चूहों को मारने पर। नानाजी का दिल दुखाने पर। अध्यात्म से दूर होने पर।

वेदों में केतु का दान-

लहसुनिया ( अभाव में सवा रुपये ), काले तिल, तिल तेल, काले-सफेद कंबल, मृगमद, खड्ग, सवस्त्र एवं भोज्य सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं केतवे। जपसंख्या-१२०००, देवी-धूमावती, अधिदेवता-चित्रगुप्त, प्रत्यधिदेवता-ब्रम्हा, जैमिनी गोत्र, शुद्र, कौशदीपि, द्विभुज, कांसमूर्ति, वायुकोण में धूम्रवर्ण, चंदन, पद्मकाष्ठ, धूप-मधुमिश्रित दारचीनी, चित्रोदन ( बकरी के दूध में उबले जों के दाने ), बकरे के कान के रक्त से मिश्रित चावल एवं तिल, समिध-कुश तथा दक्षिणा एक बकरे का मूल्य।

केतु के विषय में- 

केतु अशुभ होने पर क्रूर एवं निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार गुरुवार है। ये धनु राशि मे उच्च एवं मिथुन राशि इनका नीच स्थान है। अश्विनी, मघा एवं मुला इनके तीन नक्षत्र है। रवि, चंद्र तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।




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