केतु तृतीय भाव में शुभ हो तो जातक धार्मिक, आध्यात्मवादी, धैर्यवान, शास्त्रज्ञान का प्रेमी, गुणवान एवं लोकप्रिय होता है। धर्म-कर्म द्वारा उसके पराक्रम की वृद्धि होती है। जातक भाग्यवान, पराक्रमी तथा ईश्वर की सेवा से नियत पूण्य का भागी होता है। कवि भट्ट नारायण के अनुसार तृतीय भावस्थ केतु से शत्रुओं की हानि होती है। ऐसे जातक के जीवन मे सुख, दुख, धन, आपदा आदि सभी अधिक मात्रा में होती है। इन्हें भाग्यशाली पुत्र संतान की प्राप्ति होती है। केतु अशुभ हों तो परिजनों के कष्टकारक, मानसिक चिंताओं से युक्त एवं हर समय मन मे डर या उद्वेग की भावना बनी रहती है। विशेष अशुभ होने पर जताक उदासीन एवं भाई-बहन से मधुर संबंध विहीन होते है। जातक की भुजाओं में पीड़ा या दर्द का अनुभव होता है। तृतीयस्थ केतु से जन्म स्थान से दूर कई वर्षों तक रहना पड़ता है। शुभ केतु से तीर्थयात्रा, अध्यात्म विद्या में रुचि तथा ईश्वरीय कर्मो द्वारा पराक्रमी होता है। नित्य धार्मिक कर्मो को करता हुआ जीने वाला होता है।
केतु विभिन्न भाव में-
केतु के विशेष उपाय -
लहसुनिया या लपीज़ लजूली पहने या पांच धातु या सप्त धातु का छल्ला पहनें। गणेश जी की पूजा या गणेश चतुर्थी का व्रत करें। पुत्र, भतीजे, भाजें, दोस्ते, पोते और जवाई की सेवा करें। कानो में सोना पहने। तिल (काले-सफेद) दान करें या जल प्रवाह करें। काले सफेद कम्बल धर्म स्थान में या किसी गरीब को दान दें। नीबू, केला इमली (खट्टी चीजें) दान देना या जल प्रवाह करे। दहेज में दो पलंग और सोने की बेजोड़ अंगुठी लें। कुत्ता पालें या कुत्ते के सेवा करे।
केतु अशुभ कैसे होता है ?
तांबे पीतल-चांदी आदि के जेवरात पर सोना का पानी चढ़ा कर पहनने से। किसी के लड़के को गुमराह या अगवाह करना। कुत्ता काट दे या कुत्तों से नफरत या कुत्ते मरवाने से। बीते हुए समय को याद करने से। गुप्तांग में कष्ट या पेशाब के रोग, दमा या शुगर आदि की बीमारी होने से। मामा से झगड़ा हो या आवारा घुमने से। बेफजूल यात्रा करने से नाभि के नीचे की बीमारियां, रीढ़ की हड्डी, पांव, जोड़ों का दर्द, टांग आदि का दर्द हो जाने पर। किसी के पेशाब पर पेशाब करने पर। चूहों को मारने पर। नानाजी का दिल दुखाने पर। अध्यात्म से दूर होने पर।
वेदों में केतु का दान-
लहसुनिया ( अभाव में सवा रुपये ), काले तिल, तिल तेल, काले-सफेद कंबल, मृगमद, खड्ग, सवस्त्र एवं भोज्य सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं केतवे। जपसंख्या-१२०००, देवी-धूमावती, अधिदेवता-चित्रगुप्त, प्रत्यधिदेवता-ब्रम्हा, जैमिनी गोत्र, शुद्र, कौशदीपि, द्विभुज, कांसमूर्ति, वायुकोण में धूम्रवर्ण, चंदन, पद्मकाष्ठ, धूप-मधुमिश्रित दारचीनी, चित्रोदन ( बकरी के दूध में उबले जों के दाने ), बकरे के कान के रक्त से मिश्रित चावल एवं तिल, समिध-कुश तथा दक्षिणा एक बकरे का मूल्य।
केतु के विषय में-
केतु अशुभ होने पर क्रूर एवं निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार गुरुवार है। ये धनु राशि मे उच्च एवं मिथुन राशि इनका नीच स्थान है। अश्विनी, मघा एवं मुला इनके तीन नक्षत्र है। रवि, चंद्र तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।