केतु छठे भाव में (ketu in 6th house)

Kaushik sharma
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केतु छठे भाव में (ketu in 6th house)


केतु छठे भाव में शुभ हों तो जातक व्याधि विहीन, शत्रु विहीन एवं कोर्ट-केस आदि में विजय दिलाने वाला होता है। ऐसा जातक साधुजनों की संगति करने वाला, पशु-धन द्वारा सुख सम्पन्न होता है। विदेश में सफलता पाने वाला एवं वैभवशाली होता है। केतु अशुभ होने पर झगड़ालु, अन्यजनों को तुच्छ समझने वाला, अभिमानी, लोगों को ठगने वाला, बुद्धिहीन होकर भी खुद को सर्वज्ञ समझने वाला होता है। कवि भट्ट नारायण के अनुसार अशुभ केतु से जातक मामा के कुल से अपमानित होता है। जातक के पेट के निचले हिस्से से संबंधित रोग होता है। अशुभ केतु से जातक वाचाल एवं अकारण भटकने वाला होता है। केतु उच्च राशि या मित्र राशिगत होने पर जातक मातृ कुल के लिए शुभ, शत्रु विहीन एवं यशश्वी होता है। ऐसे जातक अनुभूति से पूर्ण एवं गोपनीय शक्ति द्वारा हमेशा शत्रु से बचे रहते है। 

केतु विभिन्न भावों में-

केतु के विशेष उपाय -

लहसुनिया या लपीज़ लजूली पहने या पांच धातु या सप्त धातु का छल्ला पहनें। गणेश जी की पूजा या गणेश चतुर्थी का व्रत करें। पुत्र, भतीजे, भाजें, दोस्ते, पोते और जवाई की सेवा करें। कानो में सोना पहने। तिल (काले-सफेद) दान करें या जल प्रवाह करें। काले सफेद कम्बल धर्म स्थान में या किसी गरीब को दान दें। नीबू, केला इमली (खट्टी चीजें) दान देना या जल प्रवाह करे। दहेज में दो पलंग और सोने की बेजोड़ अंगुठी लें। कुत्ता पालें या कुत्ते के सेवा करे।

केतु अशुभ कैसे होता है ?

तांबे पीतल-चांदी आदि के जेवरात पर सोना का पानी चढ़ा कर पहनने से। किसी के लड़के को गुमराह या अगवाह करना। कुत्ता काट दे या कुत्तों से नफरत या कुत्ते मरवाने से। बीते हुए समय को याद करने से। गुप्तांग में कष्ट या पेशाब के रोग, दमा या शुगर आदि की बीमारी होने से। मामा से झगड़ा हो या आवारा घुमने से। बेफजूल यात्रा करने से नाभि के नीचे की बीमारियां, रीढ़ की हड्डी, पांव, जोड़ों का दर्द, टांग आदि का दर्द हो जाने पर। किसी के पेशाब पर पेशाब करने पर। चूहों को मारने पर। नानाजी का दिल दुखाने पर। अध्यात्म से दूर होने पर।

वेदों में केतु का दान-

लहसुनिया ( अभाव में सवा रुपये ), काले तिल, तिल तेल, काले-सफेद कंबल, मृगमद, खड्ग, सवस्त्र एवं भोज्य सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं केतवे। जपसंख्या-१२०००, देवी-धूमावती, अधिदेवता-चित्रगुप्त, प्रत्यधिदेवता-ब्रम्हा, जैमिनी गोत्र, शुद्र, कौशदीपि, द्विभुज, कांसमूर्ति, वायुकोण में धूम्रवर्ण, चंदन, पद्मकाष्ठ, धूप-मधुमिश्रित दारचीनी, चित्रोदन ( बकरी के दूध में उबले जों के दाने ), बकरे के कान के रक्त से मिश्रित चावल एवं तिल, समिध-कुश तथा दक्षिणा एक बकरे का मूल्य।

केतु के विषय में- 

केतु अशुभ होने पर क्रूर एवं निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार गुरुवार है। ये धनु राशि मे उच्च एवं मिथुन राशि इनका नीच स्थान है। अश्विनी, मघा एवं मुला इनके तीन नक्षत्र है। रवि, चंद्र तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।








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