केतु द्वादश भाव में (ketu in 12th house)

Kaushik sharma
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केतु द्वादश भाव में (ketu in 12th house)
           
केतु द्वादश भाव में शुभ हों तो जातक सत्कर्मो में धन व्यय करने वाला तथा राजा के समान धन-संपदा का स्वामी बनकर ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीने वाला होता है। ऐसा जातक अपने जीवन के कई वर्ष जन्मभूमि से दूर या विदेश में विजतियों के बीच रहकर अपना भाग्य चमकाने वाला होता है। इन्हें अपने वृद्धावस्था काल में भी संतानों से सुख की कोई कमी नही रहती तथा वाद-विवाद आदि में विजयी होता है। केतु का बृहस्पति या बुध से सम्पर्क युक्त होने पर पूण्यकर्मी तथा सत्कर्मो में धन व्येय करने वाला होता है। ज्योतिष प्रवाद अनुसार केतु द्वादश भाव में शुभ स्थानगत एवं गुरु युक्त-दृष्ट होने पर जातक मृत्यु के पश्चात मोक्ष का अधिकारी होता है। केतु अशुभ होने पर पूर्वार्जित धन को नष्ट करने वाला, मानसिक तौर पर विश्राम विहीन एवं चंचल होता है। ऐसा व्येक्ति मामा के सुख से रहित, नेत्र रोगी, सनकी एवं धूर्त स्वभाव का होता है। केतु चंद्र के साथ होने पर व्यसनी एवं व्येभिचारी होता है। अशुभ केतु से जातक मोक्ष का भागी नही बनता अपितु दुष्ट कर्मों में या अचानक धन नाश होने से चिंताओं को बढ़ाने वाला होता है। शुभ होने पर घर से दूर सफलता तथा अशुभ होने पर असफलता पाने वाला होता है।

केतु विभिन्न भावों में-

  

केतु के विशेष उपाय -

लहसुनिया या लपीज़ लजूली पहने या पांच धातु या सप्त धातु का छल्ला पहनें। गणेश जी की पूजा या गणेश चतुर्थी का व्रत करें। पुत्र, भतीजे, भाजें, दोस्ते, पोते और जवाई की सेवा करें। कानो में सोना पहने। तिल (काले-सफेद) दान करें या जल प्रवाह करें। काले सफेद कम्बल धर्म स्थान में या किसी गरीब को दान दें। नीबू, केला इमली (खट्टी चीजें) दान देना या जल प्रवाह करे। दहेज में दो पलंग और सोने की बेजोड़ अंगुठी लें। कुत्ता पालें या कुत्ते के सेवा करे।

केतु अशुभ कैसे होता है ?

तांबे पीतल-चांदी आदि के जेवरात पर सोना का पानी चढ़ा कर पहनने से। किसी के लड़के को गुमराह या अगवाह करना। कुत्ता काट दे या कुत्तों से नफरत या कुत्ते मरवाने से। बीते हुए समय को याद करने से। गुप्तांग में कष्ट या पेशाब के रोग, दमा या शुगर आदि की बीमारी होने से। मामा से झगड़ा हो या आवारा घुमने से। बेफजूल यात्रा करने से नाभि के नीचे की बीमारियां, रीढ़ की हड्डी, पांव, जोड़ों का दर्द, टांग आदि का दर्द हो जाने पर। किसी के पेशाब पर पेशाब करने पर। चूहों को मारने पर। नानाजी का दिल दुखाने पर। अध्यात्म से दूर होने पर।

वेदों में केतु का दान-

लहसुनिया ( अभाव में सवा रुपये ), काले तिल, तिल तेल, काले-सफेद कंबल, मृगमद, खड्ग, सवस्त्र एवं भोज्य सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं केतवे। जपसंख्या-१२०००, देवी-धूमावती, अधिदेवता-चित्रगुप्त, प्रत्यधिदेवता-ब्रम्हा, जैमिनी गोत्र, शुद्र, कौशदीपि, द्विभुज, कांसमूर्ति, वायुकोण में धूम्रवर्ण, चंदन, पद्मकाष्ठ, धूप-मधुमिश्रित दारचीनी, चित्रोदन ( बकरी के दूध में उबले जों के दाने ), बकरे के कान के रक्त से मिश्रित चावल एवं तिल, समिध-कुश तथा दक्षिणा एक बकरे का मूल्य।

केतु के विषय में- 

केतु अशुभ होने पर क्रूर एवं निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार गुरुवार है। ये धनु राशि मे उच्च एवं मिथुन राशि इनका नीच स्थान है। अश्विनी, मघा एवं मुला इनके तीन नक्षत्र है। रवि, चंद्र तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।




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