शनि सप्तम भाव में योगकारी होकर स्थित हो तो जातक ससुराल पक्ष से सूखी, पत्नी अत्यन्त विश्वासपात्र एवं जातक का विशेष ख्याल रखने वाली तथा दीर्घकाल तक स्थायित्व विवाह का निर्देश करता है। जातक व्यवसाय तथा कानूनी मामलों में सफल एवं शत्रु पर विजय दिलाने वाला होता है। शनि स्वगृही एवं उच्च राशिगत हों तो काम वासना की अधिकता रहती है। शनि अशुभ होने पर विवाह में विलम्ब तथा कुरूप पत्नी वाला होता है। जातक का शरीर दुर्बल, निचकर्मरत, व्यसनी एवं निंदित लोगों से मैत्री करने वाला, स्त्री एवं घरेलू झंझटों से सदैव चिंतित रहने वाला होता है। कवि भट्ट नारायण के अनुसार जातक के पास सुंदर स्त्री, श्रेष्ठ मित्र तथा अधिक धन चिरकाल तक स्थायी नही होता। शनि की अशुभता के कारण जातक सदैव कुमित्रों से घिरा रहने वाला या मित्रों से कपट करके स्वयं हानि उठाने वाला होता है। शनि शुक्र युक्त हों तो परस्त्रीगामी एवं व्यभिचारिणी स्त्री का पति, मंगल युक्त हों तो स्त्री की जननेंद्रिय का चुम्बन करने वाला होता है। ज्योतिष प्रवाद अनुसार सप्तमस्थ शनि निष्फल एवं प्रभावहीन माना गया है तथा चंद्रमा के के साथ हों तो वो भी निष्फल हो जाता है।
शनि विभिन्न भावों में-
शनि के विशेष उपाय-
शनिवार के दिन संध्या के समय मा काली एवं शनि देव की काले तिल के तेल और नीले अपराजिता के पुष्पों पूजा अर्चना करें।सापों के दूध के लिए सपेरे को पैसे दें। काले तिल तेल, काली उड़द की दाल, लोहा, काले कपड़े, काले चमड़े के जूते, काला छाता, तवा, चिमटा शनिवार अंधेरा होने पर संध्या के समय दान दें। भैरव मंदिर में शराब चढ़ाएं। भैसों को काले बैगन से बना हुआ भोजन खिलाएं। मोची, लोहार या किसी नाई की धन द्वारा मदद करें। एरंड के पौधे पर आठ शनिवार आठ कीलें चढ़ाएं। शनिवार को लोहे की कटोरी में आठ शनिवार को तिल के तेल का छायापात्र दान करें। आठवें शनिवार को उस लोहे के पात्र को पेड़ के जड़ के समीप मिट्टी में दबा दें। मादक पदार्थ, शराब, मांस, मछली से परहेज करें । कौवों को काले तिल से बनी चीजें शनिवार को खिलाएं। परिश्रम से जी न चुराएं। आलस्य का त्याग करें। आज का काम कल के लिए न छोड़े। पाप कर्मों से बचे रहें।
शनि आशुभ कब होता है ?
लोहा, चमड़ा आदि का सामान मुफ्त लेने पर। शराब, कबाब, मांस, मछली आदि खाने पर। सापों को मारने पर। किसी मजदूर का हक न देने पर। रात को मकान की नींव खोदने पर। घर के आखिर के अंधेरे कमरे में रोशनी करने पर। आलसी होने पर। सूर्योदय से पूर्व नींद से न जागने पर। कामचोर होकर मेहनत न करने पर। आज का काम कल पर छोड़ने पर। किसी को दुख देने पर। कौवा या काली चींटियों को सताने या मारने पर। कर्महीन होने या कामकाज न करने पर। निकम्मा होने पर। पशु पक्षी एवं जीवों को सताने पर। कटुवादी या कड़वी जबान होने पर। दूसरों से नफरत कर प्रेम न करने पर। कुटिल बुद्धि होने पर। बड़े-बूढ़ों को सताने पर। दुखदायी होने पर।
वेदों में शनि का दान-
काले उड़द की दाल, तिल तेल, नीलम (अभाव में सवा रुपये), काले तिल के दाने, भैंस (अभाव में आठ कौड़ी या सवा रुपया), लोहा, काले वस्त्र एवं काले तिल से बनी भोज्य सामग्री सहित दक्षिणा एवं मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं शानिश्चराय। जपसंख्या- १००००, देवी दक्षिणाकाली, अधिदेवता यमराज, प्रत्यधिदेवता प्रजापति, कश्यप गोत्र, शुद्र, सौराष्ट्र, चतुर्भुज, चतुरंगुल, पश्चिम दिशा, कृष्णवर्ण सर्पाकृति, लोहमूर्ति, गधा वाहन, कूर्म अवतार, चंदन, कस्तूरी, कृष्णवर्ण पुष्प, धूप काला अगरु, समिध शमी, काली गाय (अभाव में सवा रुपया ), बलि भुना हुआ काला चावल और काले तिल।
शनि के विषय में-
शनि को कर्मफल प्रदायी एवं नपुंसक ग्रह की संज्ञा प्राप्त है। शुभ होने पर अत्यंत सुखदायी तथा अशुभ होने पर इन्हें क्रूर एवं दुखदायी ग्रह मना गया माना गया है। इनका वार शनिवार है। उत्तरभाद्रपद, पुष्या, अनुराधा इनके तीन नक्षत्र है। ये तुला राशि मे उच्च और मेष राशि इनका नीच स्थान है। शुक्र और बुध इनके मित्र ग्रह है।