शनि एकादश भाव में योगकारी होकर उच्च, स्वराशि या मित्र क्षेत्र में बलवान हों तो जातक भाग्यवान, अत्यन्त धनी, वाहनादि सुख-सम्पन्न, कष्ट रहित, स्थिर मनस्वी, महाभोगी, स्थिर धनी एवं उत्तरार्ध में सुखी जीवन व्येतीत करने वाला होता है। कवि भट्ट नारायण के अनुसार जातक की धन-संपदा तथा आयु में वृद्धि होती है। ऐसे व्येक्ति को कठिन रोग नही होता तथा दुर्बल शरीर होने पर भी बलवान शत्रुओं को नष्ट करने वाला होता है। जातक प्रपंची, मायावी एवं अल्प संततिवान होता है। शनि तुला, मकर अथवा कुम्भ राशि में हों तो जातक लोभी होता है। शनि नीचस्थ एवं दुर्बल होने पर अग्रज हानि या जातक स्वयं प्रथम संतान होता है। विशेष अशुभ होने पर स्त्री वन्ध्या होती है या पत्नी का गर्भनाश होता है तथा कन्या के विधवा होने पर शान्ति विहीन होता है। ऐसे जातक की संताने आलसी प्रवृत्ति की होती है। दूषित शनि के एकादश भाव में होने पर दुष्ट मित्रों की संगति या उनको विश्वास करने पर धन-यश की हानि होती है। जातक लोभी एवं चालबाज़ी द्वारा विपुल धन का लाभ करता है। ज्योतिष प्रवाद अनुसार पंचम भाव में शुभ ग्रह या शुभ ग्रह की दृष्टि न होने पर एकादश भावस्थ शनि को संतान नाशक माना गया है।
शनि विभिन्न भावों में-
शनि के विशेष उपाय-
शनिवार के दिन संध्या के समय मा काली एवं शनि देव की काले तिल के तेल और नीले अपराजिता के पुष्पों पूजा अर्चना करें।सापों के दूध के लिए सपेरे को पैसे दें। काले तिल तेल, काली उड़द की दाल, लोहा, काले कपड़े, काले चमड़े के जूते, काला छाता, तवा, चिमटा शनिवार अंधेरा होने पर संध्या के समय दान दें। भैरव मंदिर में शराब चढ़ाएं। भैसों को काले बैगन से बना हुआ भोजन खिलाएं। मोची, लोहार या किसी नाई की धन द्वारा मदद करें। एरंड के पौधे पर आठ शनिवार आठ कीलें चढ़ाएं। शनिवार को लोहे की कटोरी में आठ शनिवार को तिल के तेल का छायापात्र दान करें। आठवें शनिवार को उस लोहे के पात्र को पेड़ के जड़ के समीप मिट्टी में दबा दें। मादक पदार्थ, शराब, मांस, मछली से परहेज करें । कौवों को काले तिल से बनी चीजें शनिवार को खिलाएं। परिश्रम से जी न चुराएं। आलस्य का त्याग करें। आज का काम कल के लिए न छोड़े। पाप कर्मों से बचे रहें।
शनि आशुभ कब होता है ?
लोहा, चमड़ा आदि का सामान मुफ्त लेने पर। शराब, कबाब, मांस, मछली आदि खाने पर। सापों को मारने पर। किसी मजदूर का हक न देने पर। रात को मकान की नींव खोदने पर। घर के आखिर के अंधेरे कमरे में रोशनी करने पर। आलसी होने पर। सूर्योदय से पूर्व नींद से न जागने पर। कामचोर होकर मेहनत न करने पर। आज का काम कल पर छोड़ने पर। किसी को दुख देने पर। कौवा या काली चींटियों को सताने या मारने पर। कर्महीन होने या कामकाज न करने पर। निकम्मा होने पर। पशु पक्षी एवं जीवों को सताने पर। कटुवादी या कड़वी जबान होने पर। दूसरों से नफरत कर प्रेम न करने पर। कुटिल बुद्धि होने पर। बड़े-बूढ़ों को सताने पर। दुखदायी होने पर।
वेदों में शनि का दान-
काले उड़द की दाल, तिल तेल, नीलम (अभाव में सवा रुपये), काले तिल के दाने, भैंस (अभाव में आठ कौड़ी या सवा रुपया), लोहा, काले वस्त्र एवं काले तिल से बनी भोज्य सामग्री सहित दक्षिणा एवं मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं शानिश्चराय। जपसंख्या- १००००, देवी दक्षिणाकाली, अधिदेवता यमराज, प्रत्यधिदेवता प्रजापति, कश्यप गोत्र, शुद्र, सौराष्ट्र, चतुर्भुज, चतुरंगुल, पश्चिम दिशा, कृष्णवर्ण सर्पाकृति, लोहमूर्ति, गधा वाहन, कूर्म अवतार, चंदन, कस्तूरी, कृष्णवर्ण पुष्प, धूप काला अगरु, समिध शमी, काली गाय (अभाव में सवा रुपया ), बलि भुना हुआ काला चावल और काले तिल।
शनि के विषय में-
शनि को कर्मफल प्रदायी एवं नपुंसक ग्रह की संज्ञा प्राप्त है। शुभ होने पर अत्यंत सुखदायी तथा अशुभ होने पर इन्हें क्रूर एवं दुखदायी ग्रह मना गया माना गया है। इनका वार शनिवार है। उत्तरभाद्रपद, पुष्या, अनुराधा इनके तीन नक्षत्र है। ये तुला राशि मे उच्च और मेष राशि इनका नीच स्थान है। शुक्र और बुध इनके मित्र ग्रह है।