केतु प्रथम भाव में (Ketu in 1st house)

Kaushik sharma
केतु प्रथम भाव में (Ketu in 1st house)


केतु प्रथम भाव में शुभ हो तो धन की प्राप्ति कराने वाला, संततिवान एवं सुखी होता है। ऐसे जातक नौकरी या व्यापार द्वारा सफलता प्राप्त करने वाले होते है। केतु शुभ राशिगत, उच्च एवं शुभग्रह युक्त-दृष्ट होने पर उत्तम शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इनकी यात्राएं सफल होती है।केतु अशुभ होने पर मति भ्रम युक्त, उद्विग्न चित्त, दुराचारी, रोगों से पीड़ित होकर शारीरिक कष्ट पाने वाला होता है। कवि भट्ट नारायण के अनुसार जातक दुर्जनों से भयभीत रहने वाला तथा भ्राता एवं मित्रों से विवाद करने वाला होता है। जातक निर्दयी, लोभी, कृपण, मिथ्यवादी, शत्रुयुक्त एवं कठोरभाषी होता है। जातक स्त्री-पुत्रादि के चिन्ताओं से चिंतित एवं दुष्टजनों की संगति करने वाला होता है। केतु मेष, कर्कट, सिंह, धनु एवं मीन राशि का हो या बृहस्पति युक्त-दृष्ट होने पर अशुभ फलों में कमी लाकर शुभ फल प्रदान करने वाला होता है। अशुभ होने पर शरीर में वायुविकार उत्पन्न होकर कष्ट देने वाला होता है।

केतु विभिन्न भाव में-


केतु के विशेष उपाय -


लहसुनिया या लपीज़ लजूली पहने या पांच धातु या सप्त धातु का छल्ला पहनें। गणेश जी की पूजा या गणेश चतुर्थी का व्रत करें। पुत्र, भतीजे, भाजें, दोस्ते, पोते और जवाई की सेवा करें। कानो में सोना पहने। तिल (काले-सफेद) दान करें या जल प्रवाह करें। काले सफेद कम्बल धर्म स्थान में या किसी गरीब को दान दें। नीबू, केला इमली (खट्टी चीजें) दान देना या जल प्रवाह करे। दहेज में दो पलंग और सोने की बेजोड़ अंगुठी लें। कुत्ता पालें या कुत्ते के सेवा करे।

केतु अशुभ कैसे होता है ?

तांबे पीतल-चांदी आदि के जेवरात पर सोना का पानी चढ़ा कर पहनने से। किसी के लड़के को गुमराह या अगवाह करना। कुत्ता काट दे या कुत्तों से नफरत या कुत्ते मरवाने से। बीते हुए समय को याद करने से। गुप्तांग में कष्ट या पेशाब के रोग, दमा या शुगर आदि की बीमारी होने से। मामा से झगड़ा हो या आवारा घुमने से। बेफजूल यात्रा करने से नाभि के नीचे की बीमारियां, रीढ़ की हड्डी, पांव, जोड़ों का दर्द, टांग आदि का दर्द हो जाने पर। किसी के पेशाब पर पेशाब करने पर। चूहों को मारने पर। नानाजी का दिल दुखाने पर। अध्यात्म से दूर होने पर।

वेदों में केतु का दान-

लहसुनिया ( अभाव में सवा रुपये ), काले तिल, तिल तेल, काले-सफेद कंबल, मृगमद, खड्ग, सवस्त्र एवं भोज्य सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं केतवे। जपसंख्या-१२०००, देवी-धूमावती, अधिदेवता-चित्रगुप्त, प्रत्यधिदेवता-ब्रम्हा, जैमिनी गोत्र, शुद्र, कौशदीपि, द्विभुज, कांसमूर्ति, वायुकोण में धूम्रवर्ण, चंदन, पद्मकाष्ठ, धूप-मधुमिश्रित दारचीनी, चित्रोदन ( बकरी के दूध में उबले जों के दाने ), बकरे के कान के रक्त से मिश्रित चावल एवं तिल, समिध-कुश तथा दक्षिणा एक बकरे का मूल्य।

केतु के विषय में- 

केतु अशुभ होने पर क्रूर एवं निर्दयी ग्रह कहा गया है। इनका वार गुरुवार है। ये धनु राशि मे उच्च एवं मिथुन राशि इनका नीच स्थान है। अश्विनी, मघा एवं मुला इनके तीन नक्षत्र है। रवि, चंद्र तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top