राहु अष्टम भाव में शुभ हो तो ससुराल या पत्नी से धनलाभ या किसी भी रूप में धनलाभ करवाता है। शुभ स्थानगत राहु से आयु अच्छी होती है। जातक धनी राजमान्य तथा कीर्तिमान होता है। वृष, कन्या, मिथुन राशिगत होने पर सरकार या विद्वानों से सन्मान की प्राप्ति होती है। अशुभ स्थानगत होने पर अष्टम स्थान में राहु के अशुभ फल ज्यादा मिलते है। ऐसा जातक दूसरों की भर्तसना करने वाला, व्यर्थ बक़वासी, पिता के वैभव और सन्मान का नाश करने वाला, कभी लाभ तो कभी हानि पाने वाला होता है। मित्र एवं कुटुम्बियों द्वारा त्याज्य या परित्यक्त, चौर्य कर्म प्रिय, स्वजनों से दूर रहने वाला एवं जिद्दी प्रकृति का होता है। अष्टमस्थ राहु से गुदा, अंडकोश या प्रमेह रोग होने की संभावना होती है। विशेष अशुभ होने पर अकाल मृत्यु या दुर्घटना से मृत्यु की संभावना होती है। जातक के शत्रुओं के पराक्रम की वृद्धि हेतु भय विद्यमान रहता है। जातक तामसिक भोजन आदि का शौकीन, क्रोध के कारण अपमानित तथा कोर्ट-कैस आदि में असफलता मिलती है। जातक शरीर या बदन दर्द का शिकार होता है।
राहु प्रथम भाव राहु पंचम भाव राहु नवम भाव
अशुभ राहु के उपाय :-
राहु विभिन्न भावों में-
राहु प्रथम भाव राहु पंचम भाव राहु नवम भाव
राहु द्वितीय भाव राहु छठे भाव राहु दशम भाव
राहु तृतीय भाव राहु सप्तम भाव राहु एकादश भाव
राहु चतुर्थ भाव राहु अष्टम भाव राहु द्वादश भाव
सरस्वती माता कि वंदना करे। भंगी को पैसे दें या मदद करें। ननिहाल, ससुराल से अच्छे सम्बन्ध रखें। गंगा स्नान करें। रसोई में बैठकर खाना खाएं। सरसों नीलम तम्बाकु दान दें। जौ, मूली कच्चे कोयले जल में प्रवाह करें। नारियल का दान दे। सिर पर चोटी रखे, जौ बोझ तले दबाएं। खोटे सिक्के या सिक्का (Lead coin) जल प्रवाह करें।
राहु अशुभ कैसे होता है?
बदनीयत से या धोखे से धन कमाना, झूठी गवाही देना, गबन करना या धोखा देना। घर में धुआं करना। बिजली की चोरी करना, बिजली का सामान और स्टील के बर्तन मुफ्त लेना। ननिहाल, ससुराल से झगड़ा करना। तम्बाकु, सिगरेट आदि का इस्तेमाल करना या मुफ्त मांगकर पीना, नाभि के ऊपर की बिमारियां हो।घर के पास गन्दे पानी का जमा होना या गन्दा पानी घर के दरवाजे के नीचे से निकलता हो, बिना छत के घर में दीवार खड़ी हो, दक्षिण दिशा में घर का दरवाजा हो, मुकदमे बाजी करने पर।
वेदों में राहु का दान-
गोमेद रत्न (अभाव में १:२५ सवा रुपये), नीला वस्त्र, काला कम्बल, काले तिल, लोहपात्र में काले तिल का तेल, सवस्त्र भोज्य एवं दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं राहवे। जपसंख्या-१२०००, देवी छिन्नमस्तिका, अधिदेवता-काल, प्रत्यधिदेवता-सर्प, पैठीनमि गोत्र, शुद्र, मलयज, चतुर्भुज, द्वादशांगुल, नैऋत्य कोण में कृष्णवर्ण मकराकृति, सीसे की मूर्ति, सिंहवाहन, वराहावतार, श्वेतचंदन, पुष्पादि कृष्णवर्ण, धूप-दारचीनी, बलि-बकरे का मांस, समिध-दूर्वा आदि।
वेदों में राहु का दान-
गोमेद रत्न (अभाव में १:२५ सवा रुपये), नीला वस्त्र, काला कम्बल, काले तिल, लोहपात्र में काले तिल का तेल, सवस्त्र भोज्य एवं दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं राहवे। जपसंख्या-१२०००, देवी छिन्नमस्तिका, अधिदेवता-काल, प्रत्यधिदेवता-सर्प, पैठीनमि गोत्र, शुद्र, मलयज, चतुर्भुज, द्वादशांगुल, नैऋत्य कोण में कृष्णवर्ण मकराकृति, सीसे की मूर्ति, सिंहवाहन, वराहावतार, श्वेतचंदन, पुष्पादि कृष्णवर्ण, धूप-दारचीनी, बलि-बकरे का मांस, समिध-दूर्वा आदि।
राहु के विषय में-
राहु को तामसिक ग्रह की संज्ञा प्राप्त है। अशुभ होने पर इन्हें क्रूर और निर्दयी कहा गया है। इनका वार शनिवार और बुधवार और अमावस्या है। ये मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि इनका नीच स्थान है। आद्रा, स्वाति तथा शतभिषा इनके तीन नक्षत्र है। शुक्र, शनि और बुध इनके मित्र ग्रह है।
राहु को तामसिक ग्रह की संज्ञा प्राप्त है। अशुभ होने पर इन्हें क्रूर और निर्दयी कहा गया है। इनका वार शनिवार और बुधवार और अमावस्या है। ये मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि इनका नीच स्थान है। आद्रा, स्वाति तथा शतभिषा इनके तीन नक्षत्र है। शुक्र, शनि और बुध इनके मित्र ग्रह है।