शनि नवम भाव में योगकारी होकर उच्च, शुभ गृहगत हो तो जातक गृह वाहनादी से सुख सम्पन्न, शास्त्रज्ञ, पुण्यात्मा, वैभव सम्पन्न होने पर भी सन्यासी या सन्यास प्रवृत्ति वाला, सांसारिक भोग वासनाओं से दूर रहने की कामना सहित त्यागी मनोवृत्ति वाला होता है। कोई कोई जातक भाई-बहन, मित्रों या सांसारिक दुखों से दुखी होकर सन्यास ग्रहण करने वाला, पूर्व जन्म के पुण्य प्रताप के कारण मृत्यु के पश्चात वैकुण्ठ को जाने वाला तथा पवित्र आचरण वाला होता है। केतु शुभ और उच्च हों तथा नवमस्थ शनि वक्री हों तो जातक दण्डधारी सन्यासी बनता है तथा पूण्यशैली बनकर धर्म-कर्म का आचरण करते हुए ही मृत्यु को पाने वाला होता है। शनि अशुभ भाव के स्वामी होकर नवम भाव में हों तो जातक धर्म-कर्म हीन, मदमत्त, ढोंगी व लोगों के हृदय को पीड़ा प्रदान करने वाला, पिता के लिए अशुभ, धर्म विरोधी, घर-बाहर सभी से उलझने वाला दुष्कर्मी होता है। विदेश यात्रा इनके लिए दुख एवं असफलताओं का कारक होता है। बाधाओं से परिपूर्ण होकर भाग्य की प्राप्ति के लिए दूसरों से ज्यादा प्रयत्न करने पर भी अल्प भाग्यशाली ही होता है। नवमस्थ शुभ शनि द्वारा अत्यंत भाग्यशाली एवं अशुभ होने पर धर्म-कर्म विहीन होकर दरिद्रता का जीवन प्राप्त करता है।
शनि विभिन्न भावों में-
शनि के विशेष उपाय-
शनिवार के दिन संध्या के समय मा काली एवं शनि देव की काले तिल के तेल और नीले अपराजिता के पुष्पों पूजा अर्चना करें।सापों के दूध के लिए सपेरे को पैसे दें। काले तिल तेल, काली उड़द की दाल, लोहा, काले कपड़े, काले चमड़े के जूते, काला छाता, तवा, चिमटा शनिवार अंधेरा होने पर संध्या के समय दान दें। भैरव मंदिर में शराब चढ़ाएं। भैसों को काले बैगन से बना हुआ भोजन खिलाएं। मोची, लोहार या किसी नाई की धन द्वारा मदद करें। एरंड के पौधे पर आठ शनिवार आठ कीलें चढ़ाएं। शनिवार को लोहे की कटोरी में आठ शनिवार को तिल के तेल का छायापात्र दान करें। आठवें शनिवार को उस लोहे के पात्र को पेड़ के जड़ के समीप मिट्टी में दबा दें। मादक पदार्थ, शराब, मांस, मछली से परहेज करें । कौवों को काले तिल से बनी चीजें शनिवार को खिलाएं। परिश्रम से जी न चुराएं। आलस्य का त्याग करें। आज का काम कल के लिए न छोड़े। पाप कर्मों से बचे रहें।
शनि आशुभ कब होता है ?
लोहा, चमड़ा आदि का सामान मुफ्त लेने पर। शराब, कबाब, मांस, मछली आदि खाने पर। सापों को मारने पर। किसी मजदूर का हक न देने पर। रात को मकान की नींव खोदने पर। घर के आखिर के अंधेरे कमरे में रोशनी करने पर। आलसी होने पर। सूर्योदय से पूर्व नींद से न जागने पर। कामचोर होकर मेहनत न करने पर। आज का काम कल पर छोड़ने पर। किसी को दुख देने पर। कौवा या काली चींटियों को सताने या मारने पर। कर्महीन होने या कामकाज न करने पर। निकम्मा होने पर। पशु पक्षी एवं जीवों को सताने पर। कटुवादी या कड़वी जबान होने पर। दूसरों से नफरत कर प्रेम न करने पर। कुटिल बुद्धि होने पर। बड़े-बूढ़ों को सताने पर। दुखदायी होने पर।
वेदों में शनि का दान-
काले उड़द की दाल, तिल तेल, नीलम (अभाव में सवा रुपये), काले तिल के दाने, भैंस (अभाव में आठ कौड़ी या सवा रुपया), लोहा, काले वस्त्र एवं काले तिल से बनी भोज्य सामग्री सहित दक्षिणा एवं मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं शानिश्चराय। जपसंख्या- १००००, देवी दक्षिणाकाली, अधिदेवता यमराज, प्रत्यधिदेवता प्रजापति, कश्यप गोत्र, शुद्र, सौराष्ट्र, चतुर्भुज, चतुरंगुल, पश्चिम दिशा, कृष्णवर्ण सर्पाकृति, लोहमूर्ति, गधा वाहन, कूर्म अवतार, चंदन, कस्तूरी, कृष्णवर्ण पुष्प, धूप काला अगरु, समिध शमी, काली गाय (अभाव में सवा रुपया), बलि भुना हुआ काला चावल और काले तिल।
शनि के विषय में-
शनि को कर्मफल प्रदायी एवं नपुंसक ग्रह की संज्ञा प्राप्त है। शुभ होने पर अत्यंत सुखदायी तथा अशुभ होने पर इन्हें क्रूर एवं दुखदायी ग्रह मना गया माना गया है। इनका वार शनिवार है। उत्तरभाद्रपद, पुष्या, अनुराधा इनके तीन नक्षत्र है। ये तुला राशि मे उच्च और मेष राशि इनका नीच स्थान है। शुक्र और बुध इनके मित्र ग्रह है।