बृहस्पति एकादश भाव में उच्च या मित्रादि क्षेत्रगत होने पर जातक धनोपार्जन में समर्थवान, उत्तम मित्र तथा श्रेष्ठजनों से लाभान्वित, चतुर बुद्धि संपन्न होता है। वैदिक अपवाद अनुसार जातक की बुद्धि बृहस्पति के सामान होती है।कुंडली में विद्या स्थान शुभ होने पर उच्च शिक्षित होते है। पुत्र जन्म के बाद भाग्योदय पाने वाले तथा वैभवपूर्ण रहन-सहन वाले होते है। समाज के धनि व्यक्तियों के संपर्क से धन संपन्न होकर पिता के उत्तरद्वायित्व को निभाने वाले होते है। दूसरों को परामर्श दान में ये माहिर तथा आगमज्ञान द्वारा भविष्य को जानकर अपना कार्य संपादन करते है। संतानों के आज्ञाकारी होने पर इन्हें संतानों से सुखों की अनुभूति होती है। समाज के विद्वान व्यक्तियों से इन्हें जीवन में विपुल सन्मान की प्राप्ति होती है। गुरु अशुभ होने पर व्यापर में घाटा, भाग्यहीन, कर्जदार, संतानों से दुखी तथा बुद्धिहीन, मुर्ख तथा आलसी प्रविर्ति के होते है। धनहीनता या धनाभाव के कारण मज़बूरी में दूसरों को ठगने का काम करना इनका नसीब बन जाता है। गुरु मिथुन, कन्या या धनु राशि में हों तो धार्मिक प्रवृत्ति के, कर्कट या मकर राशि में होने पर साहसी तथा कुम्भ, वृष और सिंह राशि के होने पर गर्विस्ट स्वाभाव वाले होते है। दुर्बल बृहस्पति से उक्त सभी विषयों के फलों में कमी लाकर यद्-किंचित लाभ द्वारा ही जीवन निर्वाह करना पड़ता है।
बृहस्पति विभिन्न भावों में-
बृहस्पति के विशेष उपाय-
पुखराज व सोना पहनें (वृष और सिंह लग्न को छोड़कर) नाक का पानी खुश्क करके काम शुरु करें। पीपल के वृक्ष को जल दें। माता-पिता दादा या अन्य बुजर्गो व्यक्तियों की सेवा याप्रणाम करे। हरि पूजन करें। चांदी की कटोरी में केसर या हल्दी घोल कर माथेपर तिलक लगाए ,लावारिस लाश को कफन दें। धर्म में विशवास रखें धर्म स्थान में जाए। घर में धर्म स्थान न रखें। धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा धन अपने कार्योंके लिए खर्च न करें। पीले रंग की चीजो का दान करें। किसी से झूठा वायदा न करें। जूठा भोजन न खाए न ही खिलाए मुफ्त माल से परहेज करे। घर के ईशान कोण को हमेशा पवित्र रखें वहा घर का मंदिर बनाएं। धर्म कर्म करें ,रोजाना चंदन तिलक आदि सहित घर पर पूजा अर्चना करें। पूजा पाठ करें। साधु, गुरु, वैष्णवों से संबंध जोड़ें, एक गुरु बनाएं। श्री हरि या श्री विष्णु की उपासना करें।
बृहस्पति अशुभ कब होता है ?
यदि किसी बुजुर्ग या माता - पिता, गुरु, ब्राम्हण, कुल पुरोहित से झगड़ा करें। अपने माता पिता का अनादर करे व उनकी सेवा में कमी । सोने की वस्तुयें गुम हो जाए। नाक से लगातार पानी बहता रहें।पीपल,आम,कटहल और पीले फूल वाले पेड़ पौधे काटने से। दूसरों को आशीर्वाद की जगह बददुआ देने से। दूसरे की निंदा करने से और बददुआ लेने से। धार्मिक स्थान की मर्यादा भंग करने से। ईश्वर की नित्य पूजा अर्चना धर्म समझकर न करने से। बुद्धिहीनता तथा पारदर्शिता में कमी होने से। कर्ज़दार होने से। दादा जी से झगड़ा या दूरव्यवहार करने से। आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु न होने से। इसके अलावा और कई दोषों की वजह से बृहस्पति अशुभ फल देते हैं। गुरु दोष से बचने के लिए वामन द्वादशी के दिन गुरु गायत्री 108 बार करके नाम और गोत्र सहित मंदिर में रखी नारायण शालिग्राम पर चढादें। संसार का मोह न करते हुए एक गुरु से दीक्षा लें और प्रति वर्ष गुरु के जन्म दिन तथा गुरु पूर्णिमा के दिन उन्हें पीले वस्त्र, पीले उपवस्त्र, पीले पुष्प की माला, गरुड़ पुराण सहित दान करें और उनके चरण स्पर्श करें और आशीर्वाद लें। नास्तिकता को छोड़कर, मद्य मांस आदि खाना त्यागकर, सदाचारी बनकर , माथे पर केशर और हल्दी का तिलक लगाकर प्रतिदिन घर में सुबह शाम पूजा अर्चना नियमित करने पर गुरु की कृपा का भागी अवश्य बन जाता हैं।
अन्य सभी ग्रह-
वेदों में बृहस्पति का दान -
चीनी, हरिद्रा ( हल्दी ), दारुहरिद्रा, पितवर्ण घोड़ा ( आभाव में पिली कौड़ी या ६ रु २५ पैसे ), पीतधान्य, पीतवस्त्र, पुष्परागमणि ( आभाव में १ रूपया ), नमक, स्वर्ण तथा स्ववस्त्र भोज्य व दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र -ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये। जपसंख्या १९०००, देवी तारा, अधिदेवता ब्रम्हा, प्रत्यधिदेवता इंद्र, अंगिरस गोत्र, सैन्धव, चतुर्भुज, द्विज, षरांगुल, उत्तरदिशा में पीतवर्ण पद्माकृति, स्वर्णमूर्ति, पद्मोपरिस्थ, वामन अवतार, पुष्पादि पीतवर्ण, चन्दन, गंधक, अगुरु, धुप, दशांग, बलि दधिमिश्रित अन्न, समिध अश्वथ, पीतवस्त्र युग्म ( दो पिले वस्त्र ) दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें।
बृहस्पति के विषय में -
बृहस्पति सभी देवताओं के गुरु है। इन्हें सौम्य और शुभ ग्रह माना गया है। इनका वार गुरुवार है। ये कर्कट राशि में उच्च और मकर राशि इनका नीच स्थान है। पुर्नवसु, विशाखा और पूर्वभाद्रपद इनके तीन नक्षत्र है। चंद्र, सूर्य तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।