बृहस्पति प्रथम भाव में हों तो पारिवारिक, सामाजिक तथा लोकहित में किये गए कर्मों के कारण अपने नगर व ग्राम में ख्याति को प्राप्त कर लोकप्रिय बनता है तथा ऐसा जातक ज्ञानी या पंडित स्वरुप आचरणकरनेवाला स्वाभिमानी, कांतिमान एवं स्वस्थ शरीर वाला होता है। ऐसा जातक धार्मिक तथा पाप करने से डरने वाला तथा धर्मभीरु होता। जातक परिवार में दूसरों की ख़ुशी के लिए अपना सर्वस्य धन व्यय करने पर खुद धन की कमी महसूस करता है।
ऐसे जातकों को भविष्य के लिए धन संग्रह कर रखना शुभ रहता है। ऐसे जातक के मन में ईश्वर एवं धार्मिक चिंताए प्रभावित करती है तथा जीवन मे आगे चलकर धर्म और ज्ञान द्वारा मोक्ष के मार्ग का अभिलाषी होता है। प्रायः गौरवर्ण, तेजस्वी, कृतज्ञ, दानी, पवित्र या शुचि परायण एवं न्यायनीतिज्ञ होता है। जातक श्रेष्ठ कार्य में धन खर्च करने वाला तथा उत्तम गति को पाने वाला होता है। गुरु मीन राशि में हो तो विद्या व्यसनी, कुल में श्रेष्ठ, उदार तथा लोभ रहित होता है। कर्कट राशि में हो तो बहुभोजी, मेष, सिंह अथवा धनु राशि का हो धैर्यवान, मित्रसुखी और स्वाभिमानी, मकर, कन्या अथवा वृष राशि का हो तो अत्यंत स्वार्थी व गर्वित होता है। मीन, वृश्चिक तथा कर्क का हो खर्चीले तथा आनंदी स्वाभाव का होता है। गुरु शत्रुगृही, पापयुक्त या नीचस्थ हो तो नीच कर्म करने वाला, कुटुंब वियोगी, दम्भी तथा दुखी होता है। गुरु राहु-शनि युक्त हो तो जातक कृश शरीर एवं जलीय राशि में हो तो स्थूल शरीर वाला होता है। लग्नस्थ गुरु प्रायः धन, संतान, विद्या तथा ज्ञान की प्राप्ति कराने वाला, धार्मिक जीवन जीने वाला तथा भाग्य की वृद्धि करने वाला होता है। ह्रदय में पाप कर्म की प्रेरणा आने पर भी धर्मभीरु होने से किंचित ही पाप कार्य करने वाला तथा उम्र बढ़ने पर परिपक्क बुद्धि वाला, आगमज्ञान द्वारा भविष्य को जान लेने वाला तथा उत्तम परामर्श दाता होता है।
बृहस्पति विभिन्न भावों में-
पुखराज व सोना पहनें (वृष और सिंह लग्न को छोड़कर)। नाक का पानी खुश्क करके काम शुरु करें। पीपल के वृक्ष को जल दें। माता-पिता दादा या अन्य बुजर्गो व्यक्तियों की सेवा या प्रणाम करे। हरि पूजन करें। चांदी की कटोरी में केसर या हल्दी घोल कर माथेपर तिलक लगाए, लावारिस लाश को कफन दें। धर्म में विशवास रखें धर्म स्थान में जाए। घर के अंदर धर्म स्थान न रखें बाहर ईशान दिशा में मंदिर बनाकर रखें। धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा धन अपने कार्यों के लिए खर्च न करें। पीले रंग की चीजो का दान करें। किसी से झूठा वायदा न करें। जूठा भोजन न खाए न ही खिलाए मुफ्त माल से परहेज करे। घर के ईशान कोण को हमेशा पवित्र रखें वहा घर का मंदिर बनाएं। धर्म कर्म करें, रोजाना चंदन तिलक आदि सहित घर पर पूजा अर्चना करें। पूजा पाठ करें। साधु, गुरु, वैष्णवों से संबंध जोड़ें, एक गुरु से दीक्षा अवश्य लें। श्री हरि या श्री विष्णु की उपासना करें।
बृहस्पति अशुभ कब होता है ?
यदि किसी बुजुर्ग या माता-पिता, गुरु, ब्राम्हण, कुल पुरोहित से झगड़ा करें। अपने माता पिता का अनादर करे व उनकी सेवा में कमी। सोने की वस्तुयें गुम हो जाना। नाक से लगातार पानी बहता रहें।पीपल,आम,कटहल और पीले फूल वाले पेड़ पौधे काटने से। दूसरों को आशीर्वाद की जगह बददुआ देने से । दूसरे की निंदा करने से और बददुआ लेने से। धार्मिक स्थान की मर्यादा भंग करने से। ईश्वर की नित्य पूजा अर्चना धर्म समझकर न करने से। बुद्धिहीनता तथा पारदर्शिता में कमी होने से। कर्ज़दार होने से। दादा जी से झगड़ा या दूरव्यवहार करने से। आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु न होने से। इसके अलावा और कई दोषों की वजह से बृहस्पति अशुभ फल देते हैं। गुरु दोष से बचने के लिए वामन द्वादशी के दिन गुरु गायत्री 108 बार करके नाम और गोत्र सहित मंदिर में रखी नारायण शालिग्राम पर चढादें। संसार का मोह न करते हुए एक गुरु से दीक्षा लें और प्रति वर्ष गुरु के जन्म दिन तथा गुरु पूर्णिमा के दिन उन्हें पीले वस्त्र, पीले उपवस्त्र, पीले पुष्प की माला, गरुड़ पुराण सहित दान करें और उनके चरण स्पर्श करें और आशीर्वाद लें। नास्तिकता को छोड़कर, मद्य मांस आदि खाना त्यागकर, सदाचारी बनकर, माथे पर केशर और हल्दी का तिलक लगाकर प्रतिदिन घर में सुबह शाम पूजा अर्चना नियमित करने पर गुरु की कृपा का भागी अवश्य बन जाता हैं।
वेदों में बृहस्पति का दान -
चीनी, हरिद्रा (हल्दी), दारुहरिद्रा, पितवर्ण घोड़ा (आभाव में पिली कौड़ी या ६ रु २५ पैसे ), पीतधान्य, पीतवस्त्र, पुष्परागमणि (आभाव में १ रूपया), नमक, स्वर्ण तथा स्ववस्त्र भोज्य व दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र - ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये। जपसंख्या १९०००, देवी तारा, अधिदेवता ब्रम्हा, प्रत्यधिदेवता इंद्र, अंगिरस गोत्र, सैन्धव, चतुर्भुज, द्विज, षरांगुल, उत्तरदिशा में पीतवर्ण पद्माकृति, स्वर्णमूर्ति, पद्मोपरिस्थ, वामन अवतार, पुष्पादि पीतवर्ण, चन्दन, गंधक, अगुरु, धुप, दशांग, बलि दधिमिश्रित अन्न, समिध अश्वथ, पीतवस्त्र युग्म (दो पिले वस्त्र) दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें।
बृहस्पति के विषय में -
बृहस्पति सभी देवताओं के गुरु है। इन्हें सौम्य और शुभ ग्रह माना गया है। इनका वार गुरुवार है। ये कर्कट राशि में उच्च और मकर राशि इनका नीच स्थान है। पुर्नवसु, विशाखा और पूर्वभाद्रपद इनके तीन नक्षत्र है। चंद्र, सूर्य तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।