योगकारी होकर शुभवर्गगत, उच्च और मित्रक्षेत्र में स्थित गुरु द्वारा मनुष्य धर्म और अध्यात्म के विषय में प्रवीण, साधु या साधु न होने पर भी धर्म के पथ पर चलने वाला धर्मात्मा ही होता है। कवि भट्टनारायण के अनुसार जातक कट्टर धार्मिक और ईश्वर प्रेमी, देवभक्ति परायण बनकर अपना जीवन निर्वाह करता है एवं उसके अंतरात्मा में गहन अनुभूति का स्थान होता है। कई जातक पूर्व जन्म कृत शुभ कारणों से धर्म मार्ग में कठोरता लाने के लिए गुरु वरणकर दीक्षा आदि लेकर चिर जीवन के धर्म के पथ को प्रशस्थ कर लेता है तथा गंगा आदि तीर्थ भ्रमण के कई अवसरों से वो मनुष्य पुण्यात्मा में परिवर्तित होता है। इन जातकों का घर चारदिवारी से घिरा रहता है। जातक दान पुण्यशाली, उत्तम परामर्शदाता, प्रखर बुद्धिमान, आगमज्ञानी या पूर्व से ही भविष्य को जान लेने वाला होता है। उम्र होने पर संतानों द्वारा सुखों की प्राप्ति होती है। ये अपनी कभी न चुकने वाली बुद्धि और ज्ञान द्वारा स्वयं के दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में परिवर्तित कर लेते है। कई जातक पुरोहित, मंदिर के धर्माधिकारी, वैष्णव, साधु, ज्योतिषशास्त्री, साहित्यकार, वैज्ञानिक, डॉक्टर भी होते है तथा आदर्श शिक्षक बनकर भी जीवन निर्वाह करते देखा गया है। बाल्यकाल में इन्हें अच्छे शिक्षकों की प्राप्ति होती है। गुरु शनि दृस्ट या राहु-केतु से युक्त होने पर प्रायः अशुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा अत्यंत परिश्रम के बाद भी सफलता इनसे कोसों दूर रहती है। राहु से युत दृस्ट होने पर गुरु चांडाल योग का निर्माण करता है जिससे जातक एक पाखंडी बन बैठता है। गुरु मध्य बलि होने पर धर्मभीरु होता है जिसके चलते पाप का अभिलाषी होने पर भी किंचित ही पाप कर पाता है या पूर्ण पापी नहीं बनता। गुरु मेष, वृष, मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, तथा धनु राशि का हो तो स्थल यात्रायें एवं मीन, कर्क या वृश्चिक का हो तो जल यात्रायें अधिक होती हैं। विशेष अशुभ हों तो दुखी एवं अधर्मी होता है तथा पत्नी, संतान एवं ससुराल आदि से मतभेद बना रहता है। शुभ होने उपर उक्त सभी विषयों में शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं।
बृहस्पति विभिन्न भावों में-
बृहस्पति के विशेष उपाय-
पुखराज व सोना पहनें (वृष और सिंह लग्न को छोड़कर) नाक का पानी खुश्क करके काम शुरु करें। पीपल के वृक्ष को जल दें। माता-पिता दादा या अन्य बुजर्गो व्यक्तियों की सेवा याप्रणाम करे। हरि पूजन करे। चांदी की कटोरी में केसर या हल्दी घोल कर माथेपर तिलक लगाए ,लावारिस लाश को कफन दें। धर्म में विशवास रखें धर्म स्थान में जाए।घर में धर्म स्थान न रखें। धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा धन अपने कार्योंके लिए खर्च न करें । पीले रंग की चीजो का दान करें। किसी से झूठा वायदा न करें। जूठा भोजन न खाए न ही खिलाए मुफ्त माल से परहेज करे। घर के ईशान कोण को हमेशा पवित्र रखें वहा घर का मंदिर बनाएं । धर्म कर्म करें ,रोजाना चंदन तिलक आदि सहित घर पर पूजा अर्चना करें । पूजा पाठ करें । साधु, गुरु, वैष्णवों से संबंध जोड़ें , एक गुरु बनाएं । श्री हरि या श्री विष्णु की उपासना करें ।
बृहस्पति अशुभ कब होता है ?
यदि किसी बुजुर्ग या माता - पिता, गुरु, ब्राम्हण, कुल पुरोहित से झगड़ा करें । अपने माता पिता का अनादर करे व उनकी सेवा में कमी। सोने की वस्तुयें गुम हो जाए। नाक से लगातार पानी बहता रहें।पीपल,आम,कटहल और पीले फूल वाले पेड़ पौधे काटने से। दूसरों को आशीर्वाद की जगह बददुआ देने से। दूसरे की निंदा करने से और बददुआ लेने। धार्मिक स्थान की मर्यादा भंग करने से। ईश्वर की नित्य पूजा अर्चना धर्म समझकर न करने से। बुद्धिहीनता तथा पारदर्शिता में कमी होने से। कर्ज़दार होने से। दादा जी से झगड़ा या दूरव्यवहार करने से। आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु न होने से। इसके अलावा और कई दोषों की वजह से बृहस्पति अशुभ फल देते हैं। गुरु दोष से बचने के लिए वामन द्वादशी के दिन गुरु गायत्री 108 बार करके नाम और गोत्र सहित मंदिर में रखी नारायण शालिग्राम पर चढादें । संसार का मोह न करते हुए एक गुरु से दीक्षा लें और प्रति वर्ष गुरु के जन्म दिन तथा गुरु पूर्णिमा के दिन उन्हें पीले वस्त्र, पीले उपवस्त्र, पीले पुष्प की माला, गरुड़ पुराण सहित दान करें और उनके चरण स्पर्श करें और आशीर्वाद लें । नास्तिकता को छोड़कर, मद्य मांस आदि खाना त्यागकर, सदाचारी बनकर , माथे पर केशर और हल्दी का तिलक लगाकर प्रतिदिन घर में सुबह शाम पूजा अर्चना नियमित करने पर गुरु की कृपा का भागी अवश्य बन जाता हैं।
वेदों में बृहस्पति का दान -
चीनी, हरिद्रा (हल्दी), दारुहरिद्रा, पितवर्ण घोड़ा (आभाव में पिली कौड़ी या ६ रु २५ पैसे ), पीतधान्य, पीतवस्त्र, पुष्परागमणि ( आभाव में १ रूपया ), नमक, स्वर्ण तथा स्ववस्त्र भोज्य व दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र - ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये। जपसंख्या १९०००, देवी तारा, अधिदेवता ब्रम्हा, प्रत्यधिदेवता इंद्र, अंगिरस गोत्र, सैन्धव, चतुर्भुज, द्विज, षरांगुल, उत्तरदिशा में पीतवर्ण पद्माकृति, स्वर्णमूर्ति, पद्मोपरिस्थ, वामन अवतार, पुष्पादि पीतवर्ण, चन्दन, गंधक, अगुरु, धुप, दशांग, बलि दधिमिश्रित अन्न, समिध अश्वथ, पीतवस्त्र युग्म (दो पिले वस्त्र) दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें।
बृहस्पति सभी देवताओं के गुरु है। इन्हें सौम्य और शुभ ग्रह माना गया है। इनका वार गुरुवार है। ये कर्कट राशि में उच्च और मकर राशि इनका नीच स्थान है। पुर्नवसु, विशाखा और पूर्वभाद्रपद इनके तीन नक्षत्र है। चंद्र, सूर्य तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।
वेदों में बृहस्पति का दान -
चीनी, हरिद्रा (हल्दी), दारुहरिद्रा, पितवर्ण घोड़ा (आभाव में पिली कौड़ी या ६ रु २५ पैसे ), पीतधान्य, पीतवस्त्र, पुष्परागमणि ( आभाव में १ रूपया ), नमक, स्वर्ण तथा स्ववस्त्र भोज्य व दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र - ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये। जपसंख्या १९०००, देवी तारा, अधिदेवता ब्रम्हा, प्रत्यधिदेवता इंद्र, अंगिरस गोत्र, सैन्धव, चतुर्भुज, द्विज, षरांगुल, उत्तरदिशा में पीतवर्ण पद्माकृति, स्वर्णमूर्ति, पद्मोपरिस्थ, वामन अवतार, पुष्पादि पीतवर्ण, चन्दन, गंधक, अगुरु, धुप, दशांग, बलि दधिमिश्रित अन्न, समिध अश्वथ, पीतवस्त्र युग्म (दो पिले वस्त्र) दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें।