वेद में चन्द्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है। इसी कारण अगर जन्मकुंडली में चंद्रमा की स्थिति प्रतिकूल हो या अशुभ स्थिति में हो तो उसे मन और मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां, मानसिक चिन्ता की वृद्धि करता है। केमद्रुम योग चंद्र ग्रह के अशुभ प्रभावों के कारण बनता है। इस योग के कारण व्यक्ति मानसिक रूप विक्षिप्त या मानसिक बीमारी से पीड़ित होता है तथा ही व्यक्ति को हमेशा, असुरक्षा या अज्ञात रूप से भयभीत रहता है। प्राचीन समय से ज्योतिष के कई विद्वानों द्वारा केमद्रुम योग को दुर्भाग्य का सूचक माना गया है। यह योग मूलतः धन हीनता, रोज़गार विहीन, आय में कमी या आय न होना, धनहीनता के कारणवश अपूर्ण एवं दीर्घकाल से रुके परे अभिलाषित कार्य के पूर्ण न होने एवं पारवारिक अन्य कारणों की वजह से मानसिक रूप से शांति विहीन होता है। अज्ञात भय और चिन्ता सताती है। हर तरह के उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है जो साधारण से कहीं ज्यादा महसूस होता है कार्य की प्रगति या जागतिक कार्य के अपूर्ण अभिलाषा से मन की अशांति बढ़ती है तथा दूसरों पर निर्भर या स्वयं आत्मनिर्भर नहीं हो पाते। व्यक्ति को आर्थिक परेशानियां बनी रहती हैं। ऐसे जातक स्वयं को श्रेष्ठ और बुद्धिमान समझने पर भी वास्तव में ये कम बुद्धि के लोग होते हैं। वे चिड़चिड़े और शक्की स्वभाव के होते हैं। इन्हें पारिवारिक सुख नहीं मिलता और संतान से कष्ट होता है। लेकिन वे दीर्घजीवी होते हैं।
ज्योतिष में केमद्रुम योग पूर्ण रूप से स्पष्ट हो और विशेष अशुभ हो तथा शुभ ग्रहों का प्रभाव इस योग पर न तो इस अशुभ योग इस योग को इस प्रकार से व्यक्त किया है -
“केमद्रुमे भवति पुत्र कलत्र हीनो
देशान्तरे ब्रजती दुःखसमाभितप्तः.
ज्ञाति प्रमोद निरतो मुखरो कुचैलो
नीचः भवति सदा भीतियुतश्चिरायु ”
यानी केमद्रुम योग जातक पुत्र कलत्र से हीन इधर उधर भटकने वाला, दुख से अति पीड़ित, बुद्धि और खुशी से हीन, मलिन वस्त्र धारण करने वाला, नीच और कम उम्र वाला होता है।
कैसे बनता है केमद्रुम योग-
जन्मकुण्डली चंद्रमा किसी भी भाव में अकेला बैठा हो यानी उसके आगे या पीछे के भाव में कोई ग्रह न हो और चंद्र ग्रह के ऊपर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो ऐसे में केमद्रुम योग का निर्माण होता है। लेकिन इस योग के बनने पर छाया ग्रह राहु और केतु को में नहीं गिना जाता है। ऐसी स्थिति में यह देखना जरूरी हो जाता है कि चंद्रमा किस राशि में स्थित है और उसके अंश क्या हैं। ये योग कितना अशुभ होगा इसकी गणना कुंडली में स्थित चंद्रमा तथा उस पर पड़े शुभ अशुभ प्रभाव के आधार पर की जाती है।
केमद्रुम योग भंग कब होता है ?
परंतु जब कुछ योग या परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं तो केमद्रुम योग को तोड़ा या निष्क्रिय किया जा सकता है।
1. यदि सभी ग्रह चंद्रमा पर दृष्टि डालते हैं, तो इस दोष के दुष्प्रभाव निष्क्रिय हो जाते हैं।
2. यदि चंद्रमा शुभ स्थान (केंद्र या त्रिकोण) में हो और बुध, बृहस्पति और शुक्र अन्य स्थानों पर एक साथ हों तो केमद्रुम दोष टूट जाता है।
3. यदि दसवें भाव में उच्च का चंद्रमा केमद्रुम दोष उत्पन्न करने के बावजूद बृहस्पति से दृष्ट हो तो भी यह दोष भंग हो जाता है।
4. चंद्रमा केंद्र में स्थित होकर केमद्रुम योग बना रहा हो और सातवें घर से बलि बृहस्पति द्वारा देखा जा रहा हो, यह दोष भी नष्ट हो जाता है।
5. यदि किसी की जन्मकुण्डली में अन्य राजयोगों के साथ-साथ केमद्रुम दोष भी हो तो यह दोष उन सभी राजयोगों के शुभ प्रभावों को नष्ट कर देता है। इसलिए यदि कोई इस दोष के साथ पैदा हुआ है, तो इसे समाप्त करके इसके बुरे प्रभावों से बचा जा सकता है।
6. इस योग में कम से कम चंद्रमा उच्च राशिगत, केंद्र या त्रिकोण गत या पक्ष बल (शुक्लपक्ष) से बलि या बृहस्पति द्वारा दृष्ट होने पर कुछ हद तक राहत अवश्य मिलती है।
केमद्रुम योग होने पर उपाय-
सफेद मोती या चांदी धारण करना (धनु लग्न वालों) को छोड़कर। शिव आराधना व पूजा करें। शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि के संध्या के समय शिव की आराधना करने से आशुतोष शंकर की कृपा अवश्य होती हैं। चारपाई के पायों में चांदी की कील लगाना। कीकर के वृक्ष में दूध या पानी डालना। माता, नानी, दादी, सास, विधवा स्त्री की सेवा करना। घर की छत पर चौरस टंकी लगवाना। चांदी के बर्तन में दूध पीएं या पानी पिएं। चलते पानी में स्नान करें। घर में जेट पम्प लगवाना। पहाड़ की सैर करना। बर्षा का पानी चावल, ठोस चांदी घर पर रखें । सफेद रंग की चीजों का दान करें। चंद्र दोष से बचने के श्री कृष्ण, महादेव, कमला माता और चंद्र देव की पूजा अर्चना अवश्य करें। शरद पूर्णिमा के दिन घर पर कर्पूर, सफेद मिश्री युक्त चावल की खीर बनाकर एक रजतपत्र (चांदी की थाली)में रखकर घर के छत पर पूर्ण चंद्र दिखने पर अर्पित करें इसे रातभर पूर्णिमा की चाँदनी के नीचे रखें तथा सुबह परिवार के सभी सदस्यों में बाट दें और खुद भी थोड़ा खा लें। हर पूर्णिमा के रात को चंद्र को 10 /15 मिनट बिना पलक झपकाएं देखें। मन को असीम शांति का अनुभव होगा और मानसिक विकार से मुक्ति मिलेगी। चंद्र देव के प्रियफूल रात को खिलनेवाली सफेद कुमुद हैं इसके अलावा सफेद शंखपुष्पी भी चंद्र देव का अत्यधिक प्रिय फुल माना जाता हैं। इनके न मिलने पर किसी दूसरे सफेद फूलों से पूजा कर सकते हैं। चंद्र देव को अर्पित पुष्प या फूल लाल रंग वाले नहीं होने चाहिए। जन्म कुंडली में शनि -चंद्र योग हो या चंद्र अशुभ हो तो ब्रम्हमुहूर्त में स्नान और शाम होने पहले भी स्नान करते रहना चाहिये। शुक्ल त्रयोदशी के शाम के समय शिव पूजा करते रहें। जल और सफेद गाय के कच्चे दूध, चावल, दूध से बनी सफेद मिठाई ,गंगा जल या शुद्ध जल महादेव को अर्पित करें तो देवादिदेव महादेव के कृपा का पात्र बन जाता हैं और प्रबल मानसिक शांति मिलती हैं। जन्मदात्री माता के नियमित सेवा से चंद्र शुभ फलदायी बन जातें हैं। मनको शांत रखने की हमेशा कोशिश करते रहें।
वेदों में चंद्र का दान-
रजत पत्र में चावल, कर्पूर, मुक्ता, शुक्ल वस्त्र (शवेत वस्त्र), चांदी, सफ़ेद गाभी (वृष) आभाव होने पर सवा रुपये, घृत परिपूर्ण कुम्भ, स्वेतवस्त्र सहित भोज्य (भोजन) तथा दक्षिणा इत्यादि सभी वस्तुओं को मंत्र द्वारा दान करें। चंद्र मंत्र- ॐ ऐं क्लिं सोमाय, देवी कमला, अधिदेवता उमा, प्रत्यधिदेवता जल, अत्रि गोत्र, वैश्य, समुद्र, द्विभुज, हस्तप्रमाण, अग्निकोण में अर्धचंद्र आकृति, श्वेतवर्ण, दशाश्वोपरी, श्वेत पद्मस्थ, श्री कृष्ण अवतार। पुष्पादि श्वेतवर्ण, स्फटिक मूर्ति, धुप सरलकाष्ठ, बलि घृत मिश्रित खीर, समिध पलाश, दक्षिणा शंख।
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