जटायु रामायण के एक प्रसिद्ध पात्र हैं। वह एक गिद्ध राज थे जो कि महान धर्मात्मा और न्यायप्रिय थे। जटायु का निवास हिमालय की चोटियों पर था। वह राजा दशरथ के मित्र थे और अक्सर उन्हें सलाह देते थे। सम्पाती इनके भाई थे।
महर्षि कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरुड़ और अरुण। अरुण जी सूर्य के सारथी के रुप में प्रसिद्ध हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मण्डल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लम्बी उड़ान भरने पर सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर जटायु तो बीच से लौट आए, किन्तु सम्पाती उड़ते ही गए।
सूर्य के निकट पहुंचने पर सूर्य के ताप से सम्पाती के पंख जल गए और वे समुद्र तट पर गिरकर चेतना शून्य हो गए। चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्रीसीताजी की खोज करने वाले बन्दरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया।
श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण दंडकारण्य में थे। उन्होंने देखा- कुछ मुनि आकाश से नीचे उतरे। उन तीनों ने मुनियों को प्रणाम किया तथा उनका आतिथ्य किया। वहां पर बैठा हुआ एक गिद्ध उनके चरणोदक में गिर पड़ा। साधुओं ने बताया कि पूर्वकाल में दंडक नामक एक राजा था किसी मुनि के संसर्ग से उसके मन में संन्यासी भाव उदित हुआ। उसके राज्य में एक परिव्राजक था। एक बार वह अंत:पुर में रानी से बातचीत कर रहा था राजा ने उसे देखा तो दुश्चरित्र जानकर उसके दोष से सभी श्रमणों को मरवा डाला।
एक श्रमण बाहर गया हुआ था। लौटने पर समाचार ज्ञात हुआ तो उसके शरीर से ऐसी क्रोधाग्नि निकली कि जिससे समस्त स्थान भस्म हो गया। राजा के नामानुसार इस स्थान का नाम दंडकारगय रखा गया। मुनियों ने उस दिव्य 'गिद्ध' की सुरक्षा का भार सीता और राम को सौंप दिया। उसके पूर्व जन्म के विषय में बताकर उसे धर्मोपदेश भी दिया। रत्नाभ जटाएं हो जाने के कारण वह 'जटायु' नाम से विख्यात हुआ।
जटायु रामायण के एक प्रसिद्ध पात्र हैं। वह एक गिद्ध राज थे जो कि महान धर्मात्मा और न्यायप्रिय थे। जटायु का निवास हिमालय की चोटियों पर था। वह राजा दशरथ के मित्र थे और अक्सर उन्हें सलाह देते थे।
जब रावण सीता का हरण करके लंका ले जा रहा था तो जटायु ने उसे रोकने का प्रयास किया। जटायु ने रावण से सीता को छोड़ देने के लिए कहा, लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं मानी। इसके बाद जटायु ने रावण पर हमला कर दिया। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। अंत में रावण ने जटायु के दोनों पंख काट दिए। जटायु ज़मीन पर गिर पड़े और मरणासन्न हो गए।
जब राम और लक्ष्मण सीता को खोजते हुए जटायु के पास पहुंचे तो उन्होंने उसे घायल अवस्था में पाया। जटायु ने राम और लक्ष्मण को बताया कि रावण ने सीता का हरण किया है और वह उन्हें लंका ले जा रहा है। जटायु ने राम और लक्ष्मण को सीता को बचाने का आग्रह किया।
राम और लक्ष्मण ने जटायु की अंतिम इच्छा पूरी की और सीता को बचाने के लिए लंका की ओर प्रस्थान किया। जटायु ने अपने अंतिम क्षणों में राम और लक्ष्मण को आशीर्वाद दिया और वीरगति को प्राप्त हुए।
जटायु की कथा एक प्रेरणादायी कहानी है। यह हमें यह सिखाती है कि हमें हमेशा धर्म और न्याय के लिए लड़ना चाहिए। जटायु ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर सीता की रक्षा की। वह एक सच्चे योद्धा और धर्मात्मा थे।
जटायु की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
वह एक महान धर्मात्मा और न्यायप्रिय थे।
वह राजा दशरथ के मित्र थे।
उन्होंने रावण से सीता को बचाने का प्रयास किया।
उन्होंने राम और लक्ष्मण को सीता की रक्षा का आग्रह किया।
उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर सीता की रक्षा की।
जटायु की कथा हमें यह सिखाती है कि हमें हमेशा धर्म और न्याय के लिए लड़ना चाहिए। हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए दूसरों की मदद करनी चाहिए चाहे मृत्यु भी क्यों न हो।
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