गुरु सप्तम भाव में शुभ स्थानगत हों तो जातक स्वस्थ,चतुर बुद्धि संपन्न, विद्वान और स्वाभिमानी होता है। ऐसा जातक अपने पिता से अधिक श्रेष्ठ पद लाभ करने वाला, अपने कुल में श्रेष्ठ तथा स्त्री अथवा विवाह द्वारा भाग्योदय कराने वाला होता है। जातक की पत्नी धार्मिक, पतिव्रता, गुणी या उच्चकुल से सम्बन्ध रखने वाली होती है। ऐसे जातक जातिकाएँ अपने गुणों के कारण हर जगह प्रसिद्धि पा लेते है। जातक व्यवसाय या कर्म से उन्नति पाने वाला, विनयी, मंत्रणा में कुशली शास्त्र अनुयायी होता है। कवि भट्ट नारायण कृत चमत्कार चिंतामणि के अनुसार जातक सुन्दर गुणयुक्त होता है तथा यौवन काल में स्त्री और कामिनीओं का अभिलाषी होने पर भी सम्भोग आदि कर्म से दूर रहने वाला होता है। जातक सदैव स्वाभिमानी, राजनैतिक और गर्वित स्वाभाव वाला होने पर भी दयावान तथा धार्मिकता का भाव विद्यमान रहता है। बृहस्पति नीचस्थ, पापयुक्त या शत्रुक्षेत्री हों तो जातक परस्त्री से संपर्क रखने रखने वाला तथा अपने स्त्री पर संशय उत्पन्न होने पर वियोग तथा कलह उत्पन्न होता है। गृहस्थ जीवन में अशुभता लाता है। कुम्भ एवं मकर राशि में होने पर अशुभ फलों में वृद्धि होती है। इधर उधर घूमने का शौक पनपता हैं। शुभ होने पर श्रेष्ठ जनों सङ्गति करने वाला, प्रियभाषी और स्वधर्मनिष्ठ होकर जीवन निर्वाह करता हैं।
बृहस्पति विभिन्न भावों में-
बृहस्पति के विशेष उपाय-
पुखराज व सोना पहनें (वृष और सिंह लग्न को छोड़कर), नाक का पानी खुश्क करके काम शुरु करें। पीपल के वृक्ष को जल दें । माता-पिता दादा या अन्य बुजर्गो व्यक्तियों की सेवा याप्रणाम करे। हरि पूजन करें। चांदी की कटोरी में केसर या हल्दी घोल कर माथेपर तिलक लगाए ,लावारिस लाश को कफन दें। धर्म में विशवास रखें धर्म स्थान में जाए। घर में धर्म स्थान न रखें। धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा धन अपने कार्योंके लिए खर्च न करें। पीले रंग की चीजो का दान करें। किसी से झूठा वायदा न करें। जूठा भोजन न खाए न ही खिलाए मुफ्त माल से परहेज करे। घर के ईशान कोण को हमेशा पवित्र रखें वहा घर का मंदिर बनाएं। धर्म कर्म करें,रोजाना चंदन तिलक आदि सहित घर पर पूजा अर्चना करें। पूजा पाठ करें। साधु, गुरु, वैष्णवों से संबंध जोड़ें , एक गुरु बनाएं। श्री हरि या श्री विष्णु की उपासना करें।
बृहस्पति अशुभ कब होता है ?
यदि किसी बुजुर्ग या माता-पिता, गुरु, ब्राम्हण, कुल पुरोहित से झगड़ा करें। अपने माता पिता का अनादर करे व उनकी सेवा में कमी। सोने की वस्तुयें गुम हो जाए। नाक से लगातार पानी बहता रहें।पीपल,आम,कटहल और पीले फूल वाले पेड़ पौधे काटने से। दूसरों को आशीर्वाद की जगह बददुआ देने से। दूसरे की निंदा करने से और बददुआ लेने से। धार्मिक स्थान की मर्यादा भंग करने से। ईश्वर की नित्य पूजा अर्चना धर्म समझकर न करने से। बुद्धिहीनता तथा पारदर्शिता में कमी होने से । कर्ज़दार होने से । दादा जी से झगड़ा या दूरव्यवहार करने से। आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु न होने से। इसके अलावा और कई दोषों की वजह से बृहस्पति अशुभ फल देते हैं। गुरु दोष से बचने के लिए वामन द्वादशी के दिन गुरु गायत्री 108 बार करके नाम और गोत्र सहित मंदिर में रखी नारायण शालिग्राम पर चढादें । संसार का मोह न करते हुए एक गुरु से दीक्षा लें और प्रति वर्ष गुरु के जन्म दिन तथा गुरु पूर्णिमा के दिन उन्हें पीले वस्त्र, पीले उपवस्त्र, पीले पुष्प की माला, गरुड़ पुराण सहित दान करें और उनके चरण स्पर्श करें और आशीर्वाद लें। नास्तिकता को छोड़कर, मद्य मांस आदि खाना त्यागकर, सदाचारी बनकर, माथे पर केशर और हल्दी का तिलक लगाकर प्रतिदिन घर में सुबह शाम पूजा अर्चना नियमित करने पर गुरु की कृपा का भागी अवश्य बन जाता हैं।
वेदों में बृहस्पति का दान -
चीनी, हरिद्रा ( हल्दी ), दारुहरिद्रा, पितवर्ण घोड़ा ( आभाव में पिली कौड़ी या ६ रु २५ पैसे ), पीतधान्य, पीतवस्त्र, पुष्परागमणि ( आभाव में १ रूपया ), नमक, स्वर्ण तथा स्ववस्त्र भोज्य व दक्षिणा सहित मंत्र द्वारा दान करें। मंत्र - ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये। जपसंख्या १९०००, देवी तारा, अधिदेवता ब्रम्हा, प्रत्यधिदेवता इंद्र, अंगिरस गोत्र, सैन्धव, चतुर्भुज, द्विज, षरांगुल, उत्तरदिशा में पीतवर्ण पद्माकृति, स्वर्णमूर्ति, पद्मोपरिस्थ, वामन अवतार, पुष्पादि पीतवर्ण, चन्दन, गंधक, अगुरु, धुप, दशांग, बलि दधिमिश्रित अन्न, समिध अश्वथ, पीतवस्त्र युग्म ( दो पिले वस्त्र ) दक्षिणा सहित दान मंत्र द्वारा दान करें।
बृहस्पति के विषय में -
बृहस्पति सभी देवताओं के गुरु है। इन्हें सौम्य और शुभ ग्रह माना गया है। इनका वार गुरुवार है। ये कर्कट राशि में उच्च और मकर राशि इनका नीच स्थान है। पुर्नवसु, विशाखा और पूर्वभाद्रपद इनके तीन नक्षत्र है। चंद्र, सूर्य तथा मंगल इनके मित्र ग्रह है।