Coral bead
गुंजा एक प्रकार का बीज है जो सफेद एवं लाल रंग के होते हैं और इन पर एक काले रंग का छोटा सा बिन्दू होता है। इसकी बेल होती है जो भारत में सर्वत्र जंगली वृक्षों या झाड़ियों पर लपटी हुई पायी जाती है। गुंजा जो कि एक बीज है, घुघंची, गोमती, रत्ती आदि नामों से भी जानेजाते हैं। पुराने जमाने में इन बीजों का उपयोग आज भी सोना तोलने के लिये रत्ती के रूप किया जाता है।
रक्तगुंजा का तंत्र प्रयोग-
रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो तथा शुक्र तथा मंगलगोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो, किंवा कृष्ण चतुर्दशी तिथि को स्वाति नक्षत्र पड़ने पर अथवा पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो तब इनमें से किसी भी स्थिति अर्धरात्रि में जाकर निमंत्रणपूर्वक लाल गुंजा की जड़ उखाड़ लावें। घर में आकर उसे दूध से स्नान कराके उसका धूप दीप से पूजन करें। उस जड़ के घर में रहने से सर्प आदि का भय नहीं रहता।
अलौकिक शक्ति के दर्शन के लिए प्रयोग-
देवी देवताओं और भूत प्रेतादि अलौकिक, पारभौतिक शक्तियां हैं जड़ विज्ञान इनके अस्तित्व का उपहास करता है, परन्तु धर्म, संस्कृति, अध्यात्म और मनोविज्ञान के ज्ञाता इस तथ्य को स्वीकार करते है कि संसार में कुछ गुप्त, अलौकिक, रहस्यमयी, शक्तियां अवश्य है, जो यदाकदा प्रकट होकर, अपने अस्तित्व का साक्ष्य देते हुए, मानव-समाज को, बुद्धिवादियों को दिग्भ्रमित, करती रहती हैं। अस्तु, प्राचीन तन्त्र ग्रन्थों में उल्लेख है कि यदि रविपुष्य योग में अथवा मंगलवार के दिन गुंजामूलशुद्ध मधु में घिसकर, वह लेप आँखों में अंजन की भाँति लगायें, तो गुप्त शक्तियों के दर्शन होते हैं। ये शक्तियों सात्त्विक कम, तामसिक
अधिक होती हैं, अतः दुर्बल हृदय और भीरु प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए यह प्रयोग वर्जित है।
ज्ञान वृद्धि के लिए प्रयोग-
बकरी के दूध में गुंजा मूल को घिसकर हथेलियों पर रगड़ें, लेप करें तथा कुछ समय तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि तीव्र हो जाती है और वह जटिल दुरूह विषयों को भी सरलता से समझ लेता है। मेधा, चिन्तन शक्ति, धारणा और विवेक तथा स्मृति की प्रखरता के लए यह प्रयोग उत्तम होता हैं।
गुप्त धन दर्शन हेतु-
अंकोल के तेल में गुंजा की जड़ को घिसकर आंखों में काजल की भांति लगाये। यह प्रयोग रवि या मंगलवार को अथवा 'रविपुष्य' जैसे क किसी शुभ योग में ही करना चाहिए। यह अंजन दिव्य दृष्टिदायक होता है और इसके प्रयोग से व्यक्ति को पृथ्वी में गढ़ा हुआ, आस-पास का धन दिखायी देता है।
रक्तगुंजा का तिलक-
इस जड़ को घिसकर जो माथे पर तिलक लागता है सभी उसके वश में होते है। सार्वजनिक जीवन में उसकी लोकप्रियता बढ़ती है। लोग उसकी बात मानने लगते है। यदि उपर्युक्त विधि से गृहित जड़ को काजल के साथ घिसकर आँखों में अंजन करें तो साधक यदि लोगों को गाली देता है और फटकारता है तब भी वे उसे छोड़कर कहीं नहीं जाते। इसकी जड़ को बेल के पत्ते तथा अकौआ के रस में घिसकर माथे पर तिलक करें, तो इसे देखकर भूत-प्रेत भाग जाते हैं। केवल बेलपत्री के रस में जड़ को घिसकर आँजने से उसे भूतकाल में बीती घटनाएँ याद हो जाती हैं। गाय के दूध में उक्त जड़ को पीसकर शरीर में लेपन करने वाले साधक के साथ भूत-प्रेत-पिशाच, यक्ष तथा योगिनीगण मैत्री कर लेते हैं और उसे छोड़कर नहीं जाते।
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