ब्रम्हवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के अनुसार एक बार भगवान शिव और शंखचूड़ नामक दैत्य के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान महादेव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध करके उसकी अस्थियों को समुद्र में फेंक दिया तथा कालान्तर में यही अस्थियां शंख के रूप में उभरी।
समुद्र मंथन के दौरान जिन चौदह वस्तुएं निकली उनमे शंख भी शामिल था। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन में जिस शंख की प्राप्ति हुई थी वह आज भी बांका जिला अंतर्गत बौंसी प्रखंड में स्थित मंदराचल पर्वत पर शंखकुण्ड में विद्यमान है। अनुमानित इस शंख का वजन 35 से 40 मन आंका गया है।
समय समय पर इस कुण्ड के जल को सुखाकर इसमें मौजूद शंख की पूजा एवं आरती की जाती है। अंग्रेजी में कोंच, बंगाली में शाक, तेलगु में शंखमु, मलयालम में शंखों आदि नाम से पुकारा जाने वाले शंख को नवनिधियों में एक निधि माना गया है। बाजार में मिलने वाले शंखों में मुख्यतः दो प्रकार के शंख पाया जाता है। दक्षिणावर्त एवं वामावर्त।
जिसका मुँह दक्षिण दिशा की और खुलता है उसे दक्षिणावर्त तथा जिसका मुँह बायीं और खुलता है उसे वामावर्त शंख कहा गया है। वामावर्ती शंख सर्वसुलभ शंख माना गया तथा दक्षिणवर्ती शंख को दुर्लभ। साधारणतः शंख स्वेत रंग का होता है परंतु मादा शंख जिसे शंखिनी कहा जाता है, का रंग श्याम वर्ण का होता है तथा सतह खुरदरी होता है।
आयुर्वेदिक अनुसंधान में शंख के कई औषधीय प्रयोग में लाया जाता है। शंख को जल का साथ घिसकर आंखों में लगाने से सभी प्रकार के नेत्र विकार आदि दूर होते है तथा इसे चेहरे पे लगाने पर मुंहासे ठीक हो जातें है। शंख भस्म का उचित मात्रा में सेवन करने से शूल, पित्त, कफ, रक्त आदि शारीरिक विकार दूर होते है। आयुर्वेद में रातभर शंख में रखे जल का सेवन नित्य करने का नियम बताया गया है।
असली शंख की यही पहचान होती है की इसके छिद्र को कान के पास लाने पर उसमें समुद्री लहरों जैसी आवाजें साफ सुनाई पड़ती है। कहा जाता है कि असली शंख में पानी भरकर छिद्र को नीचे की और कर देने पर भी पानी नही गिरता। है। प्राचीनकाल से बच्चों के गले में छोटे छोटे शंखों की माला पहनाने से उन्हें उन्हें नज़र नही लगती और बच्चे शीघ्र से बोलने लगते है। शंख के विषय में एक लोकोक्ति आज भी प्रचलित है कि "शंख बाजे, बलाय भागे।"
पुराणों में अनुसार शंख में भगवान श्री हरि की आज्ञा से तीनों लोकों का तीर्थ निवास करते है तथा शंख का नित्य दर्शन एवं पूजा के समय इसकी ध्वनि के श्रवण से देवगण अति प्रसन्न होते है। संस्कृत में शंख को समुद्रज, कम्बु, सुनाढ़ एवं पवन ध्वनि के नाम से भी जाना जाता है।
शंख कब खरीदें ?
ज्योतिष में शंख को चंद्र ग्रह का प्रतिनिधि माना गया है। चंद्र ग्रह का प्रिय मास श्रवण मास माना गया है। इस के कारण शंख यदि श्रवण मास के शुक्ल पक्ष के सोमवार को यदि पूर्णिमा हो तो सर्वाधिक श्रेष्ठ होता है। नही तो श्रवण शुक्ला पूर्णिमा के सबसे नजदीक पड़ने वाले सोमवार के रात को चंद्र के होराकाल में खरीदकर इसको व्यवहार में लाने पर चंद्र ग्रह के शुभ प्रभाव से धन, सुख और शांति का प्रभाव उस स्थान में व्याप्त हो जाता है।
इसके अलावा शनि, मंगल और शुक्रवार को छोड़कर शुक्लपक्ष के सोमवार और बृहस्पतिवार को शंख खरीदा जाना शुभ होता है। ज्योतिष में चंद्र धन,शांति,गीत, सुख एवं भ्रमण आदि का सूचक माना गया है। घर में सुख और शांति लाने की बात चले और शंख न हो तो ये अशुभ ही माना जायेगा। आप भी अगर सुख शांति की तलाश में है तो शंख को किसी शुभ मुहूर्त में घर में लाकर घर में सुख, धन और शांति के वातावरण के निर्माण में प्रयास करने से बिल्कुल भी न चुकें।
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