शिवलिंग प्रतिष्ठा कैसे और कब करें
कब करें देव प्रतिष्ठा ?
नारायणश्च युवतौ घटके विधाता।।
देव्यो द्विमृत्तं भवनेषु नि वेशंनीयाः।
क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहै निलिखलाश्चः देवाः।।
कन्या लग्न में कृष्ण की, कुंभ लग्न में ब्रह्मा की, द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की स्थापना करनी चाहिए। चार लग्नों में योगिनियों की और स्थिर लग्नों में सर्व देवताओं की स्थापना करना शुभ है। मिथुन लग्न में विष्णु, महादेव तथा सूर्य की स्थापना करनी चाहिए।
लिंग स्थापन तु कत्र्तव्यं शिशिरादावृतुत्रये।
प्रावृषि स्थापित लिंग भवेद् वरयोगदम्।
हैमंते ज्ञानदं चैव शिशिरे सर्वभूतिदम्।
लक्ष्मीप्रदं वसंते च ग्रीष्मे च लिंगसयारोपणंमतम्।।
यतीनां सर्वकाले च लिंगसयारोपणंमतम्।।
श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्याउयनेमुक्ति मिच्छताम्।।
दक्षिणे तु मुमुक्षूणां मलमासे न सा द्वयोः।।
माघ, फाल्गुन-वैशाख-ज्येष्ठाषाढेषु पंचसु।
प्रतिष्ठा शुभदाप्रोक्ता सर्वसिद्धिः प्रजायते।।
श्रावणे च नभस्ये च लिंग स्थापनमुत्तमम्।
देव्याः माघाश्विने मासेअव्युत्तमा सर्वकामदा।।
वैशाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़, श्रावण, माघ, फाल्गुन महीनों में महादेव जी की प्रतिष्ठा हर प्रकार से सिद्धि देने वाला माना जाता है। ऋतुओं की दृष्टि से हेमंत ऋतु में महादेव यानी शिव लिंग की प्रतिष्ठा से यजमान और भक्तों को विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है। शिशिर में शुभ, किंतु बसंत ऋतु में शिव मंदिर की प्रतिष्ठा विशेष धनदायक साबित होती है, जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह प्रतिष्ठा शांति, शीतलता और विजयप्रदाता कही गयी है। इस प्रकार भगवती जगदम्बा की प्रतिष्ठा माघ एवं अश्विन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाली उत्तम कही गयी है।
हेमाद्रिधृत पुराण के अनुसार
विष्णु प्रतिष्ठा माघे न भवति।। माघे कर्तुः विनाशः स्यात।। फाल्गुने शुभदा सिता।।
देव प्रतिष्ठा मुहूर्तः
सर्व देवताओं की प्रतिष्ठा चैत्र, फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ मास में करना शुभ है।
श्राविणे स्थापयेल्लिंग आश्विनै जगदंबिकाम। मार्गशीर्ष हरि चैव, सर्वान् पौषेअपि केचन्।।
मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार-
अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त्र, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती एवं मार्गशीर्ष में सभी देवताओं की, खास कर देवी की, प्रतिष्ठा शुभ है।
वशिष्ठ संहिता के अनुसार-
जिस देव की जो तिथि हो, उस दिन उस देव की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। शुक्ल पक्ष की तृतीया, पंचमी, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी एवं चतुर्दशी दैवी कार्य के लिए शुभ माना है। शुक्ल पक्ष में और कृष्ण पक्ष की दसवीं तक प्रतिष्ठा शुभ रहती है। इसी प्रकार रवि और मंगल, शनिवार को छोड़ कर, अन्य दिनों में देव प्रतिष्ठा शुभ माने गये है।
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