कार्तिक मास में क्या करें ?

Kaushik sharma
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Kartick maas mein kya karen ?

कार्तिक मास में क्या करें ? 





महर्षि व्यास देवजी से जेमनी मुनि ने यह पूछा था उस समय मुनिवर ने यही कहना आरम्भ किया था-व्यासजी ने कहा था परम शुभ के प्रदान करने वाले कार्तिक मास में जो पुरुष तिलों का तैलऔर मैथुन का त्याग कर देता है वह पुरुष बहुत से जन्मों के किए पापों मुक्त होकर श्री हरि के पद की प्राप्ति किया करता है। जो पुरुष कार्तिक मास में मत्स्यों का आहार और मैथुन का त्याग नहीं किया करते हैं वह प्रत्येक जन्म संमूढ़ निश्चय ही शुकर की योनि में जन्म ग्रहण किया करता है। कात्तिक में तुलसी के दलों से जनार्दन भगवान् का अर्चन करना चाहिए। एक-एक तुलसी के पत्र के समर्पित करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त किया करता है। कात्तिक में (अगस्य) पुष्पों से जो मधुसूदन भगवान् का पूजन किया करता है वह मतुष्य देवों को भी महा दुर्लभ जो मोक्ष होता है उसे श्रीहरि की कृपा से प्राप्त कर लेता है। कात्तिक में जो नरों में परम श्रेष्ठ पुरुष मुनि शाक का अशन (भोजन) करता है वह एक वर्ष भर में किए हुए पापों को एक ही शाक के अथन मात्र से नष्ट कर दिया करता है। श्रीहरि का परम प्रिय ऊर्जमास में जो उसके फल का अशनकरता है वह हे ब्राम्हण ! करोड़ो जन्म के पापों को हरि की कृपा से नष्ट कर देता है।


सुरसं सर्पिशा युक्तं दद्याद्यो हरयेऽपिच ।
सर्व पापैविनिर्मूक्तः सगच्छेद्धरिमन्दिरम् ।
कार्तिके यो नरो दद्यादेकपद्म हरावपि ।
अन्ते विष्णुपदं गच्छेत्सर्वपापविवर्र्जितः ।
प्रातः स्नान नरो योवै कार्तिके श्रीोहरिप्रिये ।
करोति सर्वतीर्थेषु यत्स्नात्वातत्फलंलभेत् ।
कार्तिके यो नरोदद्यात्प्रदीपं नभसि द्विजः ।
विप्रहत्यादिभिः पापैर्मुक्तो गच्छेद्धरे गृहम् ।
मुहर्तमपि य दद्यात्कारतिके प्रोतये हरेः ।
दीपं नभसि विप्रेन्द्र ! तस्मिस्तुष्टः सदाहरिः।
यो दद्याच्च गृहे दीपं कृष्णस्य सघृतं द्विजः ।
कार्तिक चाश्वमेधस्य फलंस्याद्व दिने दिने ।

जो पुरुष सपि (घृत) से युक्त सुरस पदार्थ को हरि की सेवा में समर्पित करता है वह समस्त पापों से विमुक्त होकर श्री हरि के मन्दिर में गमन किया करता है। कार्तिक में जो मनुष्य एक भी पद्म का पुष्प श्री हरि को समर्पित किया करता है बह अन्त में समस्त पापो से छुटकारा पाकर विष्णु के पद की  प्राप्ति किया करता है। भगवान के परमप्रिय कार्त्तिक मास में सूर्योदय से भी पूर्व नित्य स्नान किया करता है वह इतना पुण्य का भागो हो जाता है जैसा कोई सम्पूर्ण तीर्थ स्थानों में स्नान करने वाला हुआ करता है। जो द्विज कार्त्तक में आकाश द्वीप का दान किया करता है वह विप्रहत्या आदि के महान् पातकों से विमुक्त होकर श्रीहरि के मन्दिर में अन्त में प्राप्त हो जाया करता है । हे वि्रेन्द्र ! जो व्यक्ति एक मुहूत्त मात्र (ढ़ाई घड़ी) के लिये भी कार्त्तिक मास में हरि की प्रीति के लिए दीपक का दान किया करता है अर्थात आकाश दीप देता है उससे श्रीहरि भगवान् परम सन्तुष्ट हुआ करते हैं और सदा की प्रसन्न रहते है। जो द्विज घृत का दीप घर में ही श्री कृष्ण भगवान् के लिए दान किया करता है और का्त्तिक मास में ऐसा करे तो प्रतिदिन के अश्वमेघ यज्ञ के फल का भागी होता है। वैसे वैशाख आदि सभी मास महत्वपूर्ण है परन्तु वैदिक काल से ही कार्तिक के महीने को अन्य महीनों से पाप दोष नाश और धर्म-कर्म आदि के सर्वाधिक श्रेष्ठ माना गया है। इस महीने नित्य तुलसी सेवा, तीर्थ या शुद्ध जल का दान, चंदन- गुगुल आदि वृक्षरूपी भगवती तुलसीदेवी की पूजा अर्चना करना आध्यात्म की उन्नति तथा जागतिक धन आदी ऐश्वर्य के लिए सर्वोत्तम होता है। सम्पूर्ण कार्तिक मास के संध्या के समय श्री तुलसी देवी को शुद्ध गाय के धी का दीपक रोजाना जलाएं। संभव हो तुलसी विवाह पर्व भी मनाएं। कार्तिक महीने तुलसी जी दीप के बाद  देवोत्थान एकादशी एवं पूर्णिमा पर तुलसी के इस मंत्र का जाप करके आप हर प्रकार की विपदा, संकट, कष्टों से मुक्ति पाकर चिंतामुक्त हो सकते हैं। स्नानोपरांत पवित्र होकर पीत वस्त्रादि पहनकर तुलसी प्रणाम मंत्र के उच्चारण से पूजा प्रारंभ करें




तुलसी को हिंदू धर्म में देवी के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जिस घर के आंगन में तुलसी होती है वहां कभी अकाल मृत्यु या शोक नहीं होता है। माना जाता है कि तुलसी के प्रतिदिन दर्शन और पूजन करने से पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु जी की पूजा में तुलसी का सर्वाधिक प्रयोग होता है। तुलसी जी की पूजा में निम्न मंत्रों का प्रयोग कर जातक अधिक फल पा सकते हैं।

सर्वोषधि: रसनैव पुरा हमृतमन्यते।
सर्व संतो पराकाय विष्णुमा कृता ।।

जब प्राचीन युग में देव एवं असुरगणों द्वारा समुद्र मंथन किया गया उस वक्त अमृत एवं सर्वोषधि रस सहित सर्व प्राणियों के मंगल हेतु श्री विष्णु ने सर्वगुण समन्वित तुलसी देवी को जन्म दिया। 

विप्रसदृशं पात्रं न दानं सुरभिसमम।
न च गंगासम तीर्थ न पत्र तुलसिसमम।।

पृथ्वी पर जिसप्रकार ब्राम्हण समान उत्तम पात्र नहीं, सुरभि अर्थात गौ दान समान कोई दान नही, गंगा समान तीर्थ नही, उसी प्रकार तुलसीपत्र के समान पवित्र कुछ भी नही। 

अभिन्न पत्रं हरितां हृद्य मंजरिसंयुताम।
क्षीरोदार्णवसंभूतां तुलसी दापयद्वरे।।

क्षीर सागर से उद्भूत हरे वर्ण की तुलसी, पुष्पसहित अछिन्न पत्र वृंदावनचंद्र श्री कृष्ण को प्रदान करने पर, सभी आपदा एवं विपदा से मुक्त हो सकते है।

श्री तुलसी देवी जी को जल दान मंत्र-

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

 श्री तुलसी देवी जी का ध्यान मंत्र

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैःनमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

 इस मंत्र से करें तुलसी का पूजन

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

धन-संपदा, वैभव, सुख, समृद्धि की प्राप्ति के लिए तुलसी नामाष्टक मंत्र का जाप करना चाहिए-

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।

तुलसी के पत्ते तोड़ते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए-

ॐ सुभद्राय नमः

ॐ सुप्रभाय नमः

मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणीनारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।

नोट - शास्त्रों में नारी जाति को तुलसी के पत्ते कदापि नही तोड़ने चाहिये। तथा तुलसी पत्र रविवार और दोनों पक्षों की द्वादशी तिथि को तोड़ना और स्पर्श करना वर्जित है। चैत्र वैशाख या कार्तिक महीने में अगर गुरुपुष्यामृत योग हो अति उत्तम नही तो शुक्लपक्ष के गुरुवार काली तुलसी को बाएं और स्वेत तुलसी को दाहिने रखकर जोड़े में लगाना शुभ होता है। तुलसी के ऊपर छत्र या अन्य उपाय से ढकने के लिए तोरण का निर्माण करवाएं।


कार्तिक के महीने में करें श्री दामोदर की पूजा





     वृंदावन का श्री दामोदर मंदिर 


कार्तिक का महीना अनादि काल से श्रीकृष्ण के दामोदर स्वरूप के पूजा-अर्चना का महीना माना गया है। इस महीने के पूर्णिमा से अघ्रायन के प्रथम चरण में पड़ने वाले पूर्णिमा तक प्रतिदिन ब्रम्ह मुहूर्त में स्नानोपरांत श्री कृष्ण, श्री विष्णु आदि की पूजा-अर्चना तुलसी पत्र, तुलसी काष्ठ चंदन एवं स्वेत चंदन आदि का लेप लगाने से अनन्त पापों के नाश और मंगलकारी होता है । गुरु, वैष्णव और साधुगणों द्वारा दामोदर अष्टकम के पाठ नित्य ब्रम्ह मुहूर्त में मंदिरों में सुनाई पड़ता है। सम्पूर्ण कार्तिक माह के ब्रम्ह मुहूर्त और सायंकाल में श्री दामोदर के निमित्त एक गौ घृत का दीपक जलाते रहना चाहिए। कार्तिक महीने के देवप्रबोधिनी एकादशी तथा कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान अवश्य करें और श्री राधा दामोदर की अर्चना करने पर अनंत पुण्य संचित होता है। इस तरह तुलसी सेवा और दामोदर अष्टकम के पाठ के माध्यम से सम्पूर्ण कार्तिक के महीने में करके अनंत पुण्य के भागी हो सकते है।









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