एकादशी न करने पर शूकर योनि की प्राप्ति
भवन्ति प्राणिनस्ते वै तस्यामन्नस्य भक्षणे ।
ग्रामसूकरतां यान्ति दरिद्रयं च प्रयान्ति वै ।।
राजबद्धा द्विजश्रेष्ठ ! तस्यमन्नस्य भक्षणो।
संसारे यानि पापानि ताकि विप्र हरेदिने ।।
भुक्तिमाश्रित्य तिष्ठन्ति जलभक्षणमाज्ञया ।
कुर्वता सर्वपापानि नरकात्निष्कृतिर्भवेत् ।।
न निष्कृतिर्भवेन्तृणां भुञ्जतां च हरेदिने ।
नरा यावन्ति चान्नानि भुञ्जते च हरेदिने ।।
प्रत्यन्नं च ब्रह्महत्या कोटिजं वृजिनं भवेत् ।
पुनर्वच्मि पुनर्वाचिम श्र यतां श्र यता नराः ।।
न भोक्तव्यं न भोक्तव्यं न भोक्तव्यं हरेदिने ।
गङ्गदिषु च तीर्थपु स्नात्वा यत्फलमाप्यते ।।
-पद्म पुराण
एकादशी तिथि के दिन अन्न के भक्षण करने से प्राणियों का अनेक रोगों की उत्पत्ति हो जाया करती है । ऐसे अन्न खाने वाले प्राणी ग्राम शूकर की योनि में जन्म ग्रहण किया करते हैं और उनको दरिद्र जीवन भी बिताना पड़ता है । हे द्विजश्रेष्ठ ! एकादशी में अन्न के भक्षण करने से राजा के द्वारा बद्ध हो जाया करते हैं । है विप्र ! हरि के दिन में अन्न के भक्षण करने से संसार में जितने भी महा पातक हुआ करते हैं वे सभी उनको लगा करते हैं । केवल जलमात्र की भुक्ति करके जो मनुष्य रहा करते हैं उनकी नरक से सब पापों को करते हुए निष्कृति हो जाया करती है । जो भगवान् श्री हरि के दिन में अर्थात् एकादशी के दिन भोजन किया करते हैं उनकी नरकों से निष्कति नहीं होती है । जितना भी अन्न हरि के दिन में खाया करते हैं उतने ही दिन तक उनका नरक में निवास होता है। प्रत्येक अन्न के दाने से ब्रह्महत्या के करोड़ पाप उत्पन्न होने वाला महापाप उनको होता है । मैं इस तथ्य को पुनः पुनः बतलाता हूँ । हे मनुष्यो ! इस को भली भाँति अप लोग श्रवण कर लेवें और अच्छी तरह सुन लेवे । हरि के दिन में अर्थात् एकादशी तिथि के व्रतोपवास के दिन नहीं खाना चाहिए। इसका ऐसा ही पुण्य होता है जो कि गंगा आदि तीर्थों में स्नान करने से होता है।
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