अस्थमा का इलाज कान छिदवाकर

Kaushik sharma
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अस्थमा इलाज कान छिदवाकर 





अस्थमा का इलाज कान छिदवाकर या भेदकर जिसे हम सभी संस्कृत में कर्णवेध कहते है। यह एक प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें कान छिदवाकर अस्थमा की बीमारी का इलाज किया जाता है। भारत के वाराणसी में बीएचयू के चिकित्सा विभाग में कान छिदवाकर होता है इसका इलाज।

सांस की तकलीफ में कई तरह के इलाज से कोई लाभ नहीं हो रहा है तो आप अपना कान छिदवाकर देखें जिससे इस बीमारी में आपको राहत नज़र आएगी. यह दावा हम नही  बल्कि ये दावा करते है वाराणसी बीएचयू के आयुर्वेद फैकल्टी के काय चिकित्सा विभाग।  अस्थमा के इलाज के लिए आयुर्वेद में औषधियों के अलावा कान छिदवाकर भी इलाज की एक प्रक्रिया है।

पहने सोने से बनी एक रिंग-




यहाँ के डॉक्टर्स बताते हैं कि अस्थमा एक बहुत ही आम बीमारी जैसी है जिससे रोगी को बहुत तकलीफ रहती हैं तथा तरह-तरह की दवाओं का इस्तेमाल करने के बाद भी पूर्णरूप से ठीक नहीं हो पाते हैं। आधुनिक युग के चिकित्सा प्रणाली में इस रोग के इलाज के लिए कई तरह की दवाएं और इन्हेलर आदि से इसका इलाज किया जाता है। आयुर्वेद में भी इस रोग का इलाज औषधियों, पंचकर्म आदि के जरिये किया जाता है. इसके अतिरिक्त एक बहुत ही खास चिकित्सा होती है, कर्ण बेधन जिसमें चिकित्सक द्वारा रोगी के कान के बाहरी हिस्से में छिद्र करके उसमें धागा या धातु का छल्ला पहना दिया जाता है, साथ ही उसे कुछ दिनों के लिए खाने पीने का परहेज बताया जाता है. जिससे रोगियों को बहुत लाभ मिलता है तथा उसको दवाओं व तकलीफों से निज़ात भी मिलती है.

श्वास नली या नस का उत्तेजित होना-

यहाँ के डॉक्टर्स बताते है कि शरीर में बहुत सारी नसें होती हैं जो कि फेफड़ों आदि के कार्य को सम्पादित कराने में मदद करती है। कान छिदवाने से एक श्वास नस या नली उत्तेजित होती है जिससे इस रोग में काफी लाभ पहुंचता है। प्राचीन एवं पूर्व के समय में कई जगहों पर इस विधि से दमा के रोगियों का इलाज किया जाता रहा है जिसके द्वारा उन्हें उल्लेखनीय राहत मिली है।बीएचयू में भी इस विधि से दमा के इलाज की व्यवस्था शुरू होने जा रहा है।

आप भी चाहें तो ये विधि अपनाकर दमे की तकलीफ में काफी हदतक आराम ला सकते है। आप चाहे तो वाराणसी न जाकर इसे अपने स्वकीय स्थान में भी करवा सकते है परंतु इसके लिए पूछताछ और गाइडेंस अवश्य लें ताकि कोई गलती न हो। वाराणसी में बीएचयू के चिकित्सा विभाग से इसकी पूर्ण जानकारी लेकर ये काम करें।

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