जन्म करण फल

Kaushik sharma
जन्म करण फल, Janm karan fal



क्या है जन्म करण ?

जन्मकरण का अर्थ कर्म एवं स्वयं के इन्द्रिय धर्म को दर्शाता है। विभिन्न महीने में शुक्ल एवं कृष्णपक्ष भेद से सम्पूर्ण माह तक तिथि अनुसार चक्र की भांति घूमते रहना ही करण का नियमित धर्म है जो एक तिथि के प्रथमार्ध एवं शेषर्ध में बदलते हुए नियत भ्रम्यमान गति लिए हुए होते है जो प्रतिदिन मे दो बार परिवर्तित होती है जैसे कि शुक्ल द्वितीया के पूर्वार्ध को बालव करण एवं उत्तरार्द्ध को कौलव करण इत्यादि।

करण के दो प्रकार-


१-(चरकरण) यानी वो करण जो एक दिन मे आधे दिन रहता है। २-(ध्रुवकरण)- यानी वो करण जो करण महीने में सिर्फ एक बार आता है।

(चरकरण) के सात करण-


१-बवकरण,२-बालव करण,३- कौलव करण,४- तैतिल करण,५- गर करण,६- वणिज करण, ७- विष्टि भद्रा करण।

विभिन्न चरकरण में जन्म के फल-


१-बव करण- बव करण में जन्म लेने पर जातक कृति, सुविवेचक, धीर एवं पांडित्यपूर्ण होता है तथा दरिद्र होने पर भी श्री दयाक लक्ष्मी की कृपा इन पर बनी रहती है।

२-बालव करण- बालव करण में जन्म लेने पर स्वजनों का पालक, कार्यदक्ष, उदार, कुलीन, अच्छे स्वभाव वाला, सेना नायक आदि कर्म करने पर यशस्वी बनता है। 

३-कौलव करण-कौलव करण में जन्म लेने पर स्वाधीनता प्रिय, तेजस्वी, कृतघ्न, विनयी एवं पंडितों का साथी।


४-तैतिल करण- तैतिल करण में जन्म लेने पर गाने-बजाने का शौकीन, कला कुशल, सुवक्ता, गुणी, तेजस्वी, नारी अभिलाषी एवं सुशील होता है।

५-गर करण-अच्छा विचारक, शत्रुनाशकारी, प्रसन्न बदन, हास्य युक्त, गुणी एवं दयालु होता है।

६-वणिज करण- वणिज करण में जन्म लेने पर विज्ञ, कुबेर के आशीर्वाद की प्राप्ति, व्यवसाय द्वारा धनी, गुणी, कृतज्ञ, कोई कोई भ्रष्टाचार से धन कमाने वाला होता है।

७- विष्टि भद्रा करण- इस करण में जन्म लेने पर दरिद्र, भाग्यहीन, लोभी, कुरूप, अशुभ विचारों वाला, मंदबुद्धि एवं कुरूपा पत्नी का पति होता है।

(धुर्वकरण) के चार करण-


१-शकुनि करण,२- चतुष्पाद करण, ३- नागकरण, ४- किन्तुघ्न करण।


विभिन्न ध्रुवकरण में जन्म के फल-


१- शकुनि करण- शकुनि करण में जन्म लेने पर अपने प्रभु का अनिष्टकारी, परधन नाशकारी, प्रवंचक, निष्ठुर एवं शास्त्र आदि धारण करने वाला होता है।

२- चतुष्पाद करण- इस करण में जन्म लेने पर चतुष्पाद जीवों द्वारा लाभ पाने वाला, क्षीण देहि, सदाचार विहीन एवं अल्प वित्तशाली होता है।

३- नाग करण- नाग करण में जन्म लेने पर टेढ़ी जवान वाला, मणि-माणिक्य या गुप्तधन प्रिय, बुरे स्वभाव वाला, मित्रों को संताप देने वाला, शिव सदृश होता है।

४- किन्तुघ्न करण- इस करण में जन्म लेने पर शत्रु मित्र में समदर्शी, धर्म या अधर्म में समदर्शी, पापपुण्य में समदर्शी एवं निंदा का पात्र होता है।














































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