प्रस्तुत गोचर फल लग्न से न होकर राशि अनुसार दिया गया है। पाठक गण द्रुतगामी ग्रह जैसे सूर्य,चंद्र, बुध, शुक्र, मंगल आदि का गोचर चंद्र राशि से देखें तथा मंदगामी ग्रह शनि, राहु, केतु का गोचर लग्न से देखना अधिक उचित होगा। गोचर कालचक्र की घटनाओं का एक आईना है जिसे जानकर शुभ-अशुभ घटनाओं का आंकलन लगाकर वर्तमान समय को समझने का प्रयास करें।
Gochar fal -चंद्र राशि अनुसार गोचर फल।
सूर्य का गोचर फल-
सूर्य जन्म राशि में हों तो स्थाननाश, द्वितीय में भय, तृतीय में ऐश्वर्य, चतुर्थ में मानहानि, पंचम में दीनता, छठे में शत्रुहानि, सप्तम में धनहानि, अष्टम में पीड़ा, नवम में शारीरिक सौन्दर्य में कमी, दशम में कर्मलाभ, एकादश में धन का लाभ, द्वादश में वित्त का नाश एवं विपत्ति का कारक होता है।
चंद्र का गोचर फल-
चंद्र जन्मराशि में हों तो धनलाभ, द्वितीय में शुभ हो मनोकामना पूर्ति अशुभ हो तो मन की इच्छा के विपरीत फल एवं वित्त का नाश, तृतीय में वस्तु का लाभ, चतुर्थ में बलवान हों तो मानसिक शांति तथा बलहीन होने पर क्लेश होता है।, पंचम में कार्य की हानि, छठे में धन का लाभ, सप्तम में स्त्रीलाभ या मानसिक शांति, अष्टम में मृत्युतुल्य, नवम में राजभय या भ्रमण, दशम में महासुख, एकादश में धन का लाभ एवं द्वादश में रोग एवं धननाश होता है।
मंगल का गोचर-
मंगल जन्मराशि में हों तो शत्रुभय, द्वितीय में धन का नाश, तृतीय में धन का लाभ, चतुर्थ में शत्रुओं से भय, पंचम में प्राणभय, छठे में वित्त का लाभ, सप्तम में शोक, अष्टम में अस्त्रभय, नवम में कार्य की हानि, दशम में शुभ, एकादश में भूमि या स्थान लाभ, द्वादश में रोग एवं धन का नाश होता है।
बुध का गोचर-
बुध जन्मराशि में हों तो बन्धन, द्वितीय में धन का लाभ, तृतीय में शत्रुभय, चतुर्थ में धन का लाभ, पंचम में रोग, छठे में स्थान लाभ, सप्तम में शारीरिक रोग, अष्टम में धनलाभ, नवम में पीड़ा, दशम में शुभ, एकादश में धनलाभ तथा द्वादश में धननाश होता है।
बृहस्पति का गोचर-
बृहस्पति जन्मराशि में हों तो भय, द्वितीय में धनलाभ, तृतीय में शारिरिक व्याधि, चतुर्थ में धन का नाश, पंचम में शुभ, छठे में अशुभ, सप्तम में सम्मान, अष्टम में धननाश, नवम में धन की वृद्धि, दशम में प्रेम में असफल, एकादश में धनधान्य का लाभ, द्वादश में मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा का फल देता है।
शुक्र का गोचर-
शुक्र जन्मराशि में हों तो शत्रुनाश, द्वितीय में धनलाभ, तृतीय में शुभ, चतुर्थ में धनलाभ, पंचम में संतान या प्रेम में सफल, छठे में शत्रुभय, सप्तम में शोक, अष्टम में धनलाभ, नवम में वस्त्रलाभ, दशम में अशुभ, एकादश में धनलाभ, द्वादश में धन का आगमन होता है।
शनि का गोचर-
शनि जन्मराशि में हों तो वित्तनाश एवं चिन्ता, द्वितीय में क्लेश, तृतीय में शत्रुनाश, चतुर्थ में शत्रु वृद्धि, पंचम संतान सुख का नाश, छठे में धन का लाभ, सप्तम में अनिष्ट, अष्टम में शारीरिक पीड़ा, नवम में धन का नाश, दशम में मानसिक भय, एकादश में वित्त का लाभ तथा द्वादश में अनर्थ का कारक होता है।
राहु का गोचर-
राहु जन्मराशि में, द्वितीय में, चतुर्थ में, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम तथा द्वादश भाव में होने पर कार्य की हानि, धन का नाश, रोग एवं विपत्तियों का कारक होता है एवं इन भावों के अतिरिक्त अन्य भावों में होने पर शुभफल प्रदान करते है।
केतु का गोचर-
केतु जन्मराशि से तृतीय, छठे, दशम एवं एकादश में होने पर धन, मान-सन्मान अनेक सुखों की प्राप्ति तथा इन भावों के अतिरिक्त अन्य भावों में होने पर अशुभफल प्रदान करता है।