शनि-चंद्र युति विभिन्न भाव में (विष योग)
Moon Saturn conjunction in all houses
शनि-चंद्र युति विभिन्न भाव में किस प्रकार फल देता है उससे पहले हमे इस योग से अवगत होना जरुरी है। ज्योतिष के नियमानुसार चंद्र किसी को भी अपना शत्रु नही मानते तथा उनकी दृष्टि में सभी सामान है परंतु शनि चंद्र को अपना शत्रु समझते है क्योंकि चंद्र सुख का कारक और अशुभ शनि दुःख का कारक होता है। दुःख का शत्रु सुख है और इसी वजह से जन्मकुंडली में शनि-चंद्र योग का होना अशुभ माना जाता है। जन्मकुंडली में चंद्र या लग्न से किसी भी भाव में शुभ ग्रहों से युक्तहीन या दृष्टि विहीन यह योग दुर्बल होने पर विवाह आदि में अड़चन या विलंब होता है तथा मानसिक कई चिंताओं से उसे पूर्ण रूप से मन-मस्तिष्क को शांति नहीं मिलती। इसके अलावा चंद्र शनि के नक्षत्र में या शनि दृष्ट होने पर तथा एक दूसरे के राशि में स्थित होने पर भी विवाह में बाधा तथा मानसिक अशांति को प्राप्त करता है।
यह योग विशेष अशुभ होने पर मनुष्य को उन्माद एवं पागल भी बना देता है इसलिए इस योग में जन्मे सभी जातकों को किसी भी विषय में ज्यादा चिंतित रहने से उनके मन और स्वस्थ पर बुरा प्रभाव प्रभाव पड़ता है। शनि-चंद्र योग विहीन जातक को ज्यादा चिंता नहीं सताती जिस तरह इस योग वालों को सताती है। इस योग में जन्मे सभी जातकों को अकारण एवं अतिरिक्त चिंतित रहने के कारणवश उन्माद अवस्था तक ले जाता है तथा जातक विषादग्रस्त और भयभीत होकर जीवन जीता है जो जातक के लिए मंगलकारी नही होता। इस योग वाले जातक को हमेशा अतिरिक्त चिंताओं से दूर तथा शांत रहकर ही अपना जीवन निर्वाह करना चाहिए। यह मानकर चलना चाहिए कि चिंता चिता के समान है जो व्येक्ति को उन्माद बनाकर पागल तक कर सकता है इसलिए चिंता रहित होकर मन को शांत रखना ही इनके अशांत मन-मस्तिष्क को संतुलित रख सकता है और परिणामस्वरूप शनि-चंद्र योग (विष योग) में इन सभी उपायों द्वारा इस योग के पूर्ण रूपेण अशुभ फल न पाकर मन के स्थितिशीलता को शान्त रखने में मदद अवश्य करता हैं। यह बात कटु सत्य और जग जाहिर हैं कि शनि-चंद्र योग से मानसिक शांति न के बराबर ही होता हैं। ऐसा कहें कि घर-परिवार की विषम परिस्थितियों के चलते मानसिक अशांति का विष जातक के शुकून को छीनकर दिल-दिमाग को बेचैन कर देता है। वो समय समय पर हँसता और गाता तो हैं लेकिन वो सामयिक हैं क्योंकि कुछ देर बाद उसकी मनिसिक चिंता वाली स्थिति पुनः बन जाती हैं और इस तरह यह योग विष योग बन जाता हैं।
विभिन्न भावों में शनि+चंद्र योग का फल-
लग्नस्थ दुर्बल शनि-चंद्र योग से चिंताओं से घिरा होकर विक्षिप्त चित्तवाला होता है। द्वितीय भाव में स्थित हों तो धन और कुटुम्ब के विषय मे अशुभ फलों का कारक होता है। डीसेंट्री आदि रोग का कारक होता है। तृतीय भावस्थ हो तो पराक्रम में कमी एवं भाई या बहन से दुख का फल लाभ होता है और भयभीत होकर जीता है। चतुर्थ भाव मे हों तो मानसिक रोगी, घर, जमीन-जायदाद, स्थावर सम्पत्ति,वाहन आदि के सुख से विहीन, जातक के स्वयं के तथा माता के मानसिक शांति की कमी तथा मित्र सुख हीन होता है। पंचम भाव में स्थित हों तो पेट से संबंधित बीमारी होने का भय रहता है।
स्त्री जातकों के लिए संतान प्राप्ति की बाधाएं उत्पन्न होती है। छठे भाव मे स्थित होने पर शत्रु का भय तथा गुल्म रोग से पीड़ित होता है। सप्तम भाव में स्थित होने पर विवाह में विलंब और व्यवसाय सुख में बाधा रहती है।नवम भाव में स्थित हो तो बाल्यरिष्टि, मानसिक रोग या गंभीर रोग का शिकार होता है। दशम भाव में यह योग नौकरी के क्षेत्र में बाधा एवं अनेक कष्टों के उपरांत भी सफलता में बाधा बनी रहती है। एकादश भावस्थ हों तो संतान के विषय में सुखहीन तथा लाभ की आशा रहने पर भी उपयुक्त लाभ नही होता। द्वादश भाव में स्थित हों तो व्यय में अत्यंत वॄद्धि करवाता है। अचानक कोई दुर्घटना का शिकार बनता है तथा मानसिक चिन्ता से ग्रसित होता है।
शनि-चंद्र योग के उपाय-
सफेद मोती या चांदी धारण करना (धनु लग्न वालों) को छोड़कर। शिव आराधना व पूजा करें। शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि के संध्या के समय शिव की आराधना करने से आशुतोष शंकर की कृपा अवश्य होती हैं। चारपाई के पायों में चांदी की कील लगाना। कीकर के वृक्ष में दूध या पानी डालना। माता, नानी, दादी, सास, विधवा स्त्री की सेवा करना। चांदी के बर्तन में दूध पीएं या पानी पिएं। चलते पानी में स्नान करें। घर में जेट पम्प लगवाना। पहाड़ की सैर करना। बर्षा का पानी चावल, ठोस चांदी घर पर रखें। सफेद रंग की चीजों का दान करें। चंद्र दोष से बचने के श्री कृष्ण, महादेव, कमला माता और चंद्र देव की पूजा अर्चना अवश्य करें। शरद पूर्णिमा के दिन घर पर कर्पूर, सफेद मिश्री युक्त चावल की खीर बनाकर एक रजत पत्र (चांदी की थाली) में रखकर घर के छत पर पूर्ण चंद्र दिखने पर अर्पित करें इसे रातभर पूर्णिमा की चाँदनी के नीचे रखें तथा सुबह परिवार के सभी सदस्यों में बाट दें और खुद भी थोड़ा खा लें। हर पूर्णिमा के रात को चंद्र को 10 /15 मिनट बिना पलक झपकाएं देखें। मन को असीम शांति का अनुभव होगा और मानसिक विकार से मुक्ति मिलेगी। चंद्र देव के प्रियफूल श्वेतपद्म तथा रात को खिलनेवाली सफेद कुमुद हैं इसके अलावा सफेद शंखपुष्पी भी चंद्र देव का अत्यधिक प्रिय फुल माना जाता हैं। इनके न मिलने पर किसी दूसरे सफेद फूलों से पूजा कर सकते हैं। चंद्र देव को अर्पित पुष्प या फूल लाल रंग वाले नहीं होने चाहिए। जन्म कुंडली में शनि-चंद्र योग हो या चंद्र अशुभ हो तो ब्रम्हमुहूर्त में स्नान और शाम होने पहले भी स्नान करते रहना चाहिये। शुक्ल त्रयोदशी के शाम के समय शिव पूजा करते रहें। जल और सफेद गाय के कच्चे दूध, चावल, दूध से बनी सफेद मिठाई ,गंगा जल या शुद्ध जल महादेव को अर्पित करें तो देवादिदेव महादेव के कृपा का पात्र बन जाता हैं और प्रबल मानसिक शांति मिलती हैं। जन्मदात्री माता के नियमित सेवा से चंद्र शुभ फलदायी बन जातें हैं। मनको शांत रखने की हमेशा कोशिश करते रहें।
वेदों में चंद्र का दान-
रजत पत्र में चावल, कर्पूर, मुक्ता, शुक्ल वस्त्र (श्वेत वस्त्र), चांदी, सफ़ेद गाभी (वृष) आभाव होने पर सवा रुपये, घृत परिपूर्ण कुम्भ, स्वेतवस्त्र सहित भोज्य (भोजन) तथा दक्षिणा इत्यादि सभी वस्तुओं को मंत्र द्वारा दान करें। चंद्र मंत्र- ॐ ऐं क्लिं सोमाय, देवी कमला, अधिदेवता उमा, प्रत्यधिदेवता जल, अत्रि गोत्र, वैश्य, समुद्र, द्विभुज, हस्तप्रमाण, अग्निकोण में अर्धचंद्र आकृति, श्वेतवर्ण, दशाश्वोपरी, श्वेत पद्मस्थ, श्री कृष्ण अवतार। पुष्पादि श्वेतवर्ण, स्फटिक मूर्ति, धुप सरलकाष्ठ, बलि घृत मिश्रित खीर, समिध पलाश, दक्षिणा शंख।
विष योग के अन्य उपाय-
जिन लोगों की कुंडली में विष योग है उन्हें शनि देव की पूजा करनी चाहिए और प्रत्येक शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे गाय का दूध, शहद, चीनी, गुड़, काले तिल मिश्रित गंगा या जल में मिश्रित करके चढ़ाएं एवं नारियल फोडें। ज्येष्ठ मास में पानी से भरा घड़ा शनि या हनुमान मंदिर में दान करने से लाभ मिलता है। हनुमान जी की पूजा करने से भी विष योग में सहायता मिलती है। शनिवार को कुएं में कच्चा दूध डालने से भी इस योग का प्रभाव दूर होता है। विष योग होने पर चंद्र के अलावा उन्हें अन्य कई उपाय अवश्य करने चाहिए। इन उपायों को करने से इस योग के प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। हनुमान चालीसा का पाठ नित्य मंगलवार से या मंगलवार और शनिवार को करना चाहिए। शनिदेव की पूजा करें और शनि से जुड़ी चीजों का शनिवार को संध्या के समय दान माथे पर केसर का तिलक लगाकर करें। इस योग वाले जातक को रात में दूध नही पीना चाहिए। कालभैरव की पूजा करनी चाहिए। क्रोध और वाणी दोष से बचना चाहिए। प्रति शनिवार को छाया दान करते रहें। इस योग के जातक कभी भी रात में दूध ना पीएं। शनिवार को कुएं में दूध अर्पित करें। अपनी वाणी एवं क्रिया-कर्म को शुद्ध रखें। मांस और मदिरा से दूर रहकर माता या माता समान महिला की सेवा करें। आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य और पश्चिम मुखी मकान में ना रहें।
नोट-
इस योग में सदा सर्वदा चंद्र को बलवान एवं शनि का दान चिरकाल तक समयानुसार करते रहने पर यह योग शिथिल होता है तथा इस योग के होने के बावजूद अशुभ फलों में कमी अवश्य आति है। आप की जन्मकुंडली में अगर ये योग है तो आज ही से इस योग क इने उपायों को अपनाकर अमंगलकारी परिणामों से बचे रह सकते है।
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