अर्थात ज्योतिषशास्त्र द्वारा सभी प्राणियों के शुभ अशुभ ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है। जो मनुष्य इस शास्त्र को जनता है वह परमगति को प्राप्त करता है। जिस शास्त्र के अध्ययन से अंतरिक्ष में स्थित ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, गति या दशाओं के विषय में ज्ञान की प्राप्ति द्वारा पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म का काल ज्ञान संभव होता है उसी को ज्योतिषशास्त्र कहा जाता है।
ज्योतिषशास्त्र प्रकार भेद से द्विभिध है जो की गणित और फलित ज्योतिष के समन्वय से बनता है तथा जीवन में घटित होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं से परिचित होता है ज्योतिषशास्त्र मनुष्य को भाग्यवादी बनाने के लिए प्रेरित नही करता तथा 'जो भाग्य में लिखा है वह होगा ही' ऐसा कहने वाले तथा समझने वाले भी इस शास्त्र के मर्म को नही समझ पाते।
वस्तुतः यह शास्त्र पूर्वजन्मार्जित कर्मफल के आधार पर इस जन्म के फल को प्रकाशित कर भविष्य जीवन को उन्नत करने के लिए पूर्वजन्म के गलतियों को सुधारकर शुभ कर्म करने का प्रेरक है। जैसे कि जन्मकुण्डली की ग्रह स्थितियां ऐसी क्यों है तथा मुझे इस दशा-अन्तर्दशा और वर्तमान ग्रह गोचर द्वारा शुभ या अशुभ फल क्यों मिल रहा है इत्यादि।
ज्योतिषशास्त्र के इसी मर्म के कारण ही विभिन्न युगों से इसको जानने या अवगत होने वालों की संख्या में आज भी कोई कमी नही हुई। वास्तव में ज्योतिष न तो डरा धमकाकर, रत्न-कवच बेचने या यज्ञादि कराने का कोई व्यावसायिक शास्त्र है और न ही भाग्यवादी बनने का अपितु पूर्वजन्मार्जित पापों को सुधारने एवं शुभ-अशुभ घटनाओं से ज्ञात होने से है।
किसी ज्योतिष के पास जाने का मतलब किसी नीम के पेड़ को आम के पेड़ में परिवर्तित करने का नही और न ही पैसे या दक्षिणा के बदले किसी किराने की दुकान से कुछ सामान लेने का बल्कि शुभ समय हो तो शुभ समय या अशुभ हो तो अशुभ समय का ज्ञात करने से है। यही ज्योतिषशास्त्र के निर्माण का परम उद्देश्य है। इस शास्त्र के विषय में गलत धारणाओं के चलते कई वैदिक रीति हीन मनुष्यों द्वारा इसका घोर अपमान किया जाता रहा है। लेकिन वो सावधान रहें क्योंकि-
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