गुरु पुष्यामृत योग, 2020

Kaushik sharma




गुरु पुष्यामृत योग, 2020

Guru pushyamrita yoga


2020 गुरु पुष्यामृत योग के दिन-(नई दिल्ली अनुसार)



दिनांक                   आरम्भकाल   समाप्तिकाल 


28 May बृहस्पतिवार  05:24:25   07:27:21 तक

31 Dec बृहस्पतिवार   19:48:53   31:13:56 तक

क्यों है पुष्या नक्षत्र इतना महत्वपूर्ण ? 

आईये जानें इस दिन क्या करना विशेष शुभदायी माना गया है?


वेदों में वर्णित पुष्या का अर्थ पोषण है जिसका प्रतीक चिन्ह गाय का थन है। जिसका भीतरी अर्थ है मातृरूपी गाय के थन से अमृतमयी दूध द्वारा सभी का पोषण। शनि के नक्षत्र होने के बावजूद पुष्या नक्षत्र के अधिपति चंद्रदेव है जो कि विश्व शांति और मातृरूपी, ममतापूर्ण प्रेम के सूचक है। पुष्या नक्षत्र को २७ नक्षत्रों में श्रेष्ठ कहा जाता है इसलिए इस नक्षत्र से श्रेष्ठता और प्राचुर्य भाव, श्रेष्ठरूप से पालन-पोषण करने वाला, धन, वैभव से परिपूर्ण एवं हर तरह से सर्वाधिक श्रेष्ठता का सूचक है। वैसे ज्योतिष में शुभ मुहूर्त चयन के अंतर्गत कई ऐसे शुभ मुहूर्तों का विवरण मिलता है जो सर्वार्थसिद्धि योग, नक्षत्रामृत योग, रविपुष्य योग, त्रिपुष्कर योग नाम से जाने जाते है जो कि कर्मानुसार चयन करने पर मनुष्यों के लिए सर्वाधिक हितकारी सिद्ध हुआ है उन्ही में से एक गुरुपुष्यमृत योग को भी माना गया है। जानकारों की मानें तो कुछ विशेष काम वार अनुसार करने पर ही शुभफल की प्राप्ति संभव होती है। पुष्या नक्षत्र कर्कट के ३°२० से १६°४० अंश-कला पर स्थित अंश पर ही देवता, मनुष्य एवं सभी जीवकुल के पारदर्शी ज्ञान से सम्पन्न एक कुशल वक्ता, पूजा, पाठ, अंगिहोत्र के कारक श्री गुरु बृहस्पति के हर्षित होने के कारण निम्नलिखित कर्मसमुह गुरुपुष्यामृत योग में अत्यधिक शुभ होते है। संसार मोह त्यागकर ईश्वर मोह से गुरु से दीक्षा, श्री गुरु सेवा,  गुरु को दान, गुरु से भेंट, मंदिर निर्माण का नींव या मंदिर में देव प्रवेश मुहूर्त, श्री कृष्ण एवं श्री विष्णु मंदिर उद्घाटन, विष्णु मंदिर के बाईं तरफ अथवा घर के उत्तर-पूर्वी हिस्से के उत्तरी दिशा या घर के पूर्वी प्रांगण के बीच में भक्ति देवी श्री तुलसी वृक्ष का रोपण, गंगा या किसी नदी के तट अथवा किसी चतुष्पथ से संलग्न स्थान पर या किसी मंदिर के पश्चिम दिशा के मध्य में अश्वत्थ वृक्ष का रोपण विशेष शुभफलदायी एवं मंगलकारी माना गया है। शुभ कर्म के लिए महत्वपूर्ण दिन होने पर भी इस दिन विवाह करना विशेष अशुभ फलदायी माना गया है। देवता कार्य के लिए शुभदायी इस नक्षत्र में संसार के मोहरूपी विवाह से कोई संबंध न होने पर इस दिन का विवाह पापपूर्ण माना गया है। इस दिन जनसमूह में वक्तृता देना, बच्चों का विद्या आरम्भ, अध्यापक से मिलना, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि को जाना, नौकरी के लिए आवेदन करना, किराने ( grocery ) या अन्य व्यवसाय का प्रारंभ करना, अमलतास, दारुहल्दी, भारंगी, मालती, कमल, केले, हल्दी एवं पिले फूलों का वृक्ष लगाना, देवता एवं ब्राम्हणों का आशीर्वाद लेना या मिलना, जन्मकुंडली से जुड़े प्रश्नों के लिए ज्योतिष आचार्य से मिलना आदि भी शामिल है। इस नक्षत्र से मनुष्य का जो कल्याण होता है वो शब्दों में बयान नही किया जा सकता।

जन्मकुंडली के लग्नानुसार गुरु योगकारी लग्न जैसे कर्कट, वृश्चिक, धनु एवं मीन लग्न वालों के लिए गुरुपुष्यामृत अति विशेष शुभदायी है। गुरु के बारे में ये कहा गया है कि इंसान कितना ही धार्मिक, ईश्वर प्रेमी या साधु प्रवत्ति भी क्यों न हो परंतु गुरु के बिना संसार में रहकर आध्यात्म की और नही बढ़ सकता। गुरु ईश्वर और आराध्य भक्त के बीच के मार्गदर्शक या mentor का काम करते है जिससे भक्त का ईश्वर से सही संबंध स्थापित होता है। इस दिन गरूर पुराण का दान किसी वेदपाठी ब्राम्हण को दो पीले वस्त्र के साथ देना शुभ होता है इसके अलावा बृहस्पति स्वर्ण एवं पुष्पराग आदि के कारक है इसलिए इस दिन पुष्परागमणि एवं स्वर्ण धारण करना भी अत्यंत शुभफलदायी माना गया है। मनुष्य जीवन के अल्पसंख्यक जीवित समयकाल में साधन कठिन ईश्वर के सानिध्य के लिए गुरुपुष्यामृत योग एक महा वरदान रूपी वो नाँव है जो प्रलयकाल में भी मनुष्य को तार देने वाला माना गया
 है। 


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