Laxmi Aarti ( हिन्दी में )

Kaushik sharma
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समुद्रगर्भ से उत्पन्न मां लक्ष्मीजी श्रीविष्णु के अर्धांगिनी के रूप में लक्ष्मी उपासकों के घरों में नित्य पूजित है। मां लक्ष्मी कि पूजा के विशेष दिनों में गुरूवार, शुक्रवार, कोजागारी पूर्णिमा, धन तेरस और दीपावली के दिनों एवं गृह लक्ष्मी के रूप में नित्य पूजा प्रातः और संध्या में भी किया जाता है।


                               लक्ष्मी जी कि आरती


लक्ष्मी जी कि आरती वंदना विशेषकर संध्याकाल में प्राचीन समय से नित्य किया जाता है। प्रत्येक नर और नारी श्रृंगार करके भक्ति से विभोर होकर माता की आरती किया करते हैं।
आप भी माता लक्ष्मीजी की आरती नित्य स्वयं कर सकते है। श्री लक्ष्मी की इस आरती में, माता लक्ष्मी की महिमा का वर्णन किया गया है। आरती की शुरुआत में माता लक्ष्मी को जयकारे लगाकर उनका स्वागत किया जाता है। फिर, माता लक्ष्मी के विभिन्न रूपों और गुणों का वर्णन किया जाता है। माता लक्ष्मी को धन, सुख, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माना जाता है। आरती की अंत में, माता लक्ष्मी से भक्तों के पापों को दूर करने और उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान करने की प्रार्थना की जाती है।






आरती की विधि:


सबसे पहले, आरती की थाली में शुद्ध घी या तेल में कपूर जलाएं फिर, दोनों हाथों से आरती की थाली लेकर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के सामने जाएं। आरती की थाली को चार बार माता लक्ष्मी के चरणों में घुमाएं। फिर, दो बार नाभि के सम्मुख और एक बार मुख के समक्ष घुमाएं। फिर, आरती की थाली को सात बार माता लक्ष्मी के पूरे शरीर पर घुमाएं। अंत में, आरती की थाली को अपने ऊपर और परिवार के सदस्यों पर घुमाएं। आरती के बाद, माता लक्ष्मी से प्रार्थना करें और उन्हें प्रसाद अर्पित करें।


श्री लक्ष्मी आरती-


ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत हरि विष्णु धाता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।
जोकोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।



श्री लक्ष्मी चालीसा-

दोहा
मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥ टेक॥

सोरठा
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥
जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥
तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥
ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥

त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥
जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥
ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।
पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥
बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥


करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥
भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥
बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥
रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥

दोहा
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर।


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