Ditiyesh pratham bhav me
द्वितीयेश प्रथम भाव में हो तो जातक यशस्वी, कुटुम्ब से सूखी, सत्कर्मी, उच्च कुल में जन्म लेने वाला, बिना प्रयत्न किए ही कुटुम्ब द्वारा सहयोग पाने वाला, धन संचयी, राजा, राज्य सरकार या सरकारी कर्मों से सन्मानित, सुंदर नेत्रों वाला होता है।अशुभ ग्रह होने पर कृपण एवं स्वार्थी, निष्ठुर तथा परकार्य करने वाला तथा कुटुम्ब की चिंता करने वाला होता है। द्वितीयेश क्रूर ग्रह होने पर या शत्रु ग्रह होने पर उसके ऊपर कुटुम्ब का उत्तरदायित्व आ जाता है। द्वितीयेश तृतीयेश से युक्त होकर लग्न में बैठा हो तो भाई के धन का लाभ होता है। द्वितीयेश जिस भाव के स्वामी से युक्त होकर लग्न में बैठा हो उस भाव के स्वामी द्वारा जातक को धन का लाभ होता है।
द्वितीयेश विभिन्न भावों में-
ज्योतिष के अंतर्गत लग्न सहित बारह भावों के फलों का अनुसंधान निम्नलिखित भाव स्थानों से इस प्रकार पता चलता है ।
१. प्रथम भाव (लग्न)- शारीरिक-सौन्दर्य, वर्ण, अकृति, सिर, मुख, मस्तिष्क, चेष्टा, स्वभाव, मानसिक-स्थिति, विवेक, इच्छा, सोभाग्य, महत्वाकाक्षा, जीवन, आयु, उत्साह, शारीरिक सुख-दुःख, सत्य आचरण, उत्साह, प्रवास, कार्यारम्भ, उद्योग, जन्म-स्थान राजनीति तथा धौखा आदि।
२. द्वितीय भाव -(धन )- धन का संचय अथवा नाश, धन की स्थिति, आजीविका, आभूषण, कोप, रत्न, मणि, रूप,रङ्ग, संचित-पूँजी, लेन-देन, क्रय-विक्रय, नष्ट वस्तु की प्राप्ति, आाममन, उपलब्धि, दान शीलता, कृपणता, दरिद्रता, उद्यम, वश, कुटुम्ब, मित्र लाभ, वाणी, कंठ, गला, वक्तृत्व-शक्ति, दाई आँख, नाक तथा बन्धन आदि।
३. तृतीय भाव (सहज)- भाई, बहिन, नौकर, धाय, गुप्त-शत्रु, मैत्री नाश , पराक्रम, शौर्य, साइस, धेयं, इच्छा, श्रम, सन्तोष, धर्म, उद्योग, शरीर का कम्यन, समीप या दूर की यात्रा, संगीत, योगाभ्यास, देवस्थान, शैया, स्वप्त विद्या, भोजन में रुचि, औषधि, कला, हाथ (दाँया), कान, कंघा, श्वांसकास आदि ।
४. चतुर्थ भाव (सुख)-भूमि, भवन, (मकान या घर), तहखाना, वृक्ष, बाग बरगीचा, गाँव, देश, स्थान कृषि, अचल-सम्पत्ति, पृथ्वी में गढ़ी हुई वस्तु, पूर्वाजित धन, मृत-मनुष्य का धन, मातृ-धन, पितृ-वन, भूमिगत लाभ, ऐश्वर्य, सत्रारी, बाहन, माता, माता का सुख-दुःख, माता का स्वभाव, चिता का सुख, स्वसुर, मित्र, नौकर, निकटस्थ व्यक्ति, विद्या, परिवर्तन, कार्य का परिणाम, उदारता, दया, परोपकार का कार्य, छल-कपट, सब प्रकार, के सुख-दु.ख, मन:स्थिति, अत्तःकरण, हुदय, छाती आदि।
५. पञ्चम भाव ( सुत )-विद्या, बुद्धि स्मरण शक्ति,लेखन-शक्ति, विचार-शक्ति, प्रभाव, ग्रन्थ पाठ -लखन, दत्तक, सन्तान, पुत्र-पुत्री, सन्तान से सुख अथवा दुःख की प्राप्ति, सन्तान का वभव, गुण रूप-रंग आदि, विनय, नीति, होथ का वश, इच्छा, प्रसन्नता, स्नेह, शुभाशुभ, शिल्प, वस्तु-लाभ, लाटरी-सट्टा आदि से आकस्मिक लाभ, जुजा, सट्टा, लाटरी, ईश्वर-भक्ति, मंगल कार्य, आगमन, कुशल -पत्र, व्यावसायिक-यश, पिता की दशा, राजा अथवा राज्य द्वारा धन लाभ, पुत्र-धन, मातृ-धन, धन अनायास धन-प्राप्ति, प्रबन्ध व्यवस्था मादक-पदार्थ, गर्भ, पेट, पीठ, गर्भाशय आदि ।
६. षष्ठ भाव (रिपु) शत्रु, गुप्त-शत्रु, रोग, झगड़े, झंझट,मुकद्दमा, शोक, दुख, क्लेश, दोष, सन्देह, मनस्ताप अपयश, निंदा, लोक-विरोध, हानि, स्वजन-विरोध, अपमान कारक-प्रसङ्ग, चोरी, याचना, ऋण, सन्तोष, मृत्यु, मातृपक्ष ( ननसाल) से सुख-दु.ख, बकरी, पालित पशु, लघु जीव, सेवक, मित्र का मित्र, मामा, मापी, मौसी, ननसाल, उदर, नाभि अतड़ी, पाँव, गुदा-स्थान का रोग आदि।
७. सप्तम भाव (जाया) - पत्नी, पति, प्रेमी का पराक्रम, पति अथवा पत्नी द्वारा सुख या दुख की प्राप्त, आकस्मिक स्त्री-लाभ, विवाह, मैथुन, कामेच्छा, पर-स्त्री गमन, कामादि व्यभिचार,पत्नी अथवा पति का स्वभाव आदि प्रीति, शारीरिक स्वास्थ्य, मृत्यु, देनिक आजीविका, व्यवसाय, नौकरी, साझेदारी से लाभ-हानि, खोये धन का लाभ, अन्यत्र स्थिति, धन उत्कर्ष-अपकर्ष, स्वीकृति, विवाद, मार्ग, लघुयात्रा, प्रपंच, स्थानास्तरण, स्वतन्त्र व्यवसाय, चाची, कमर, मूत्राशय, गुप्ताङ्ग, अण्डाशय, रूप, रङ्ग, गुण आदि।
८. अष्टम भाव (आयु )- आयु, मृत्यु का स्थान, मृत्यु का कारण, मृत्यु का समय, अपयश, अपमृत्यु, आघात, मृत्युतुल्य कष्ट, दुर्घटना, भयंकर कष्ट, सर्पदंश, आत्महत्या,कष्ट, भयंकर संकट, सप-देश, दुष्ट स्थिति, आत्महत्या, शत्रु-भय, भय, शोक, चिन्ता, दुर्नीति, गण्डान्तर कष्ट, मानसिक-चिन्ता, कोटुम्बिक-कलह, व्याधि, झूठ, मिथ्या, फोजदारी, अपशय, जुआ, सट्टा, लाटरी, दरिद्रता, पुरात्तत्व, रिश्वत, लाटरी आदि से आकस्मिक लाभ, नष्ट, धन विवाहित-स्त्री के सम्बन्ध से धन, मकान, जमीन, गाँव, आदि का लाभ, विवाह द्वारा धन-लाभ, पर-स्त्री से धन-लाभ, नष्ट, धन, स्त्री धन का उत्तराधिकार,वसीयतनामे द्वारा धन लाभ, ससुराल का धन, आलस्य, अधः पतन, ऋण, क्लेश की स्थिति, ससुराल पक्ष, कल्पना-तरङ्ग, कोट (किला), शमशान, लिंग, योनि एवं अण्डकोष के रोग आदि ।
९. नवम भाव (धर्म)- भाग्य, भाग्वोदय का समय, धर्म, शील, जप, तप, योग, समाधि, अनुष्ठान, परोपकार, तीर्थंयात्रा, सदाचार, दान,देव-पूजा, पति-धर्म, विश्वास, संन्यास, उदय, उत्कर्ष, वैदिक-सामर्थ्यं,पुण्य-कर्म, गुरु-उपदेश, उदारता, धार्मिकवृत्ति, सामर्थ्य, मन्त्र-सिद्धि, सार्वजनिक-कार्य, समाज-सेवा, गुरु, मन्त्रसिद्धि, दातृत्व-शक्ति, सुख सम्पन्न, स्थिति, परदेश-प्रवास, परदेशवास, प्रवास,दूर की यात्रा, परहितकारी यात्रा, मंगल-यात्रा, समुद्र-यात्रा, राजकीय क्षेत्र से सम्बन्ध स्थापित धन, संचित धन, स्वप्न, मानसिक-वृत्तियाँ, जाँघ, पीठ, पेट, बड़े भाई का सुख-दुःख, बहनोई तथा साला आदि ।
१०. दशम भाव (कर्म)- कर्म, व्यवसाय, उद्यम, नोकरी,जायदाद, आयु, उत्कर्ष, पद-प्राप्ति, विजय, अधिकार, यश-अपयश,सम्मान-अपमान, प्रतिष्ठा, वेभन प्रभुता, ने तृत्व, ऐश्वर्यकाल महत्वपूर्ण कार्यों में यश-अपयश की प्राप्ति, राज्याश्रय राजकीय लाभ, राजसम्मान, सामाजिक क्षेत्र, राज्याश्रयी, उपजीविका, उच्च शिक्षा, महाविद्यालय की परीक्षायें श्रेष्ठ अधिकार की प्राप्ति शास्त्रार्थ में विजय,योगी, खेती, साधन, चोरी का धन या वस्तु, जाती का मुखिया, गुरु, धर्म, सास, पिता का रूप रंग-गुण या पिता का स्वभाव, पिता से संबंध, गुरुजन, भाई-बहन इत्यादि ।
११. एकादश भाव (लाभ)- आमदनी, लाभ, भाग्य, सिद्धि, सम्पत्ती, ऐश्वर्य, रत्न, वस्त्र, अलंकार, वाहन आदि का लाभ एवं सुख कुटुम्बियों का सुख, समाज में श्रेष्ठ स्थान की प्राप्ति, आशा, इच्छा, महत्वाकांक्षा, शान्ति, सत्य, नियम, धारण, तरद्धि, अप्तत्रगं, स्त्री आदि से सुख, धन, तथा मान की प्राप्ति, मांगलिक-कार्य, प्रबल सुख-दुःख, सात्विक स्वभाव, नदीन-योजना, तियम-धारण, ईश्वर या भाग्य का पराक्रम, न्यायाधीश, राजमन्त्री अथवा राजकीय अधिकारी, बन्धु, मित्र, पिता का धन, माता की मृत्यु, पुत्र का शत्रु पुत्रबधु, भाई, जमाता आदि।
१२. द्वादश भाव (व्यय) - व्यय, हानि ऋण, कलह, अपघात, द्रव्य एवं ऐश्वर्य नाश, चोरों द्वारा द्रव्य हानि, सुमाज में अपमान, गुप्त-शत्रु, रिपु-रोग के त्रास, मुकद्दमे में अपयश, मित्र एवं गृह या जमीन-जायदाद का भाग्य, धन का नाश, अनेक प्रकार के दू:ख अच्छे-बुरे कामों में धन का खर्च, शत्रु से हानि, शत्रु-पीड़ा, उद्योग-नाश, सं कट दुर्भाग्य, दान, रोग, सुख- दुःख का परिणाम, बन्धन, कारावास, आत्महत्या,हत्या, व्यसन, दूर की यात्रा, दन-पवेत का भ्रमण, पूर्वाजित सम्पत्ति, पशु, पशु का बन्धन, राजमान, राजदण्ड, दुष्ट-संगति, व्याधि से छुटकारा, अनिष्ट, धोखा, विश्व, बहरी सम्बन्ध, विदेशी संबंध, विदेश में सुख या दुखपूर्वक वास, , चाची, मामी, बाँई आँख, नेत्र-पीड़ा, पाव, पाव में पीड़ा, तथा मोच आदि।
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