मुर्गा खाने का महापाप
वर्तमान समय की घड़ी प्राचीन वैदिक काल में दिवस और रात्रि के समय का आंकलन करने के लिए उपलब्ध नही हुआ करती थी। समय की उपलब्धि के लिए अनुमान या अन्य यंत्रो का सहारा लिया जाता था।
जिस अन्य तरीके से सूर्योदय का समय ज्ञान अनुकूल था वो था मुर्गे की बांग। प्राचीन समय से ये प्रचलन आज भी कायम है। जो सही भी है। ज्योतिष में सूर्य तेजोमय आत्मकारक ग्रह हैं यानी ब्रम्हांड के प्रत्येक जीवों के आत्मा का कारक। वैसे किसी भी जीवों को मारने पर सूर्य दोष से दूषित होता है और मुर्गा खाने पर विशेष रूप सूर्य का अशुभ फल ही प्राप्त होता है। पृथ्वी में सूर्य का प्रतिनिधित्व करने वाले कई घटक वस्तुएं है जो कि अदरक, लौंग, तेजपत्ता इत्यादि तजोमय वस्तुओं में समाहित है ऐसा माना गया है। उसी सूर्य के तेजोमय गुण से समन्वित मुर्गा जो कि तेज़ का पर्याय है और समय का कारक सूर्य के उदय होने का सूचक उसे बेरहमी से हत्या या काटकर खाने पर सूर्य के अशुभ फलों की प्राप्ति शुरू होने लग जाती है जिससे व्येक्ति को पीड़ादायक होती है। ईश्वर को पूजने वाला सच्चा व्येक्ति कभी भी ईश्वर द्वारा उत्त्पत्ति की हुई जीवों को हानि नही करता अपितु उसे भोजन देकर तुष्ट ही किया करते है। ज्योतिष में सूर्य को शुभ करने के कई उपायों में मुर्गे को खिलाना भी शामिल है जो कि हर ज्योतिष के जानकारों को मालूम है। आप अगर मुर्गा खाने का महापाप अभी तक कर रहें है तो ऐसे महापाप से बचें।
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