पूर्णचन्द्र या पूर्णिमा तिथि के दिन चंद्रदेव अपने पूर्णाकार में आ जाते है। इस दिन श्री कृष्ण, सत्यनारायण आदि पूजन इसके साथ ही श्री वृन्दादेवी तुलसी को गुग्गुल आदि धूप, घृत दीप, नैवेद् द्वारा पूजन एवं गंगादि तीर्थजल का दान कर तीन बार परिक्रमा अवश्य करें। इस दिन के पूर्णिमा को हिंदू धर्म में किसी पर्व से
कम नहीं माना जाता। कहा जाता है जो भी व्यक्ति चाहे महिला हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध इस दिन व्रत करता है और इसे पूरे नियम से करता है उसे अपनी इच्छा अनुसार फल प्राप्त होता है। इस दौरान गंगा और अन्य नदिओं में स्ना, दीप दान, वस्त्र और अन्न दान आदि करने का सभी और दिनों की अपेक्षा में कई गुना माना जाता है। कुछ धार्मिक मान्यताओं है कि जो भी जातक इस विशेष व पावन दिन व्रत आदि करने के बाद बछड़ा दान करने से शिव लोक की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथाओं की मानें तो इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचने के लिए मतस्य अवतार रूप में जन्म लिया था। तो वहीं एक अन्य किंवंदति के अनुसार महाभारत के युद्ध के उपरांत युधिष्ठिर विचलित हो गए कि 18 दिन के भयंकर युद्ध में उनके सगे संबंधी मृत्यु को प्राप्त
हो गए। ऐसे मे उन्हें इस बात की समझ नहीं आ रही कैसे वो अपनवे मन की आशांति को दूर करें और उन सबको आत्मा को शांति प्रदान करें। तब तब श्री कृष्ण ने उन्हें अपने पितरों की तृप्ति के लिए के लिए एक उपाय बताया, जिसके अनुसार उन्हें गढ़ मुक्तेश्वर में स्नान करके दीपदान करना था तथा अपने पित्तरो का तर्पण करें। ऐसा माना जाता है महाभारत काल में युधिष्ठिर द्वारा इस पंरपंरा को किए जानें के बाद इसका प्रचलन शुरू हुआ।
अब जानते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा को कैसे और क्यो मिला त्रिपुरारी नाम-
पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा नाम भगवान शंकर से मिला था। कथाओं में जो उल्लेख मिलता है कि उसके अनुसार भगवान शिव ने अजर अमर त्रिपुरासुर नामक असुर का संहार किया था। जिसके खात्म से तीनो लोकों में फिर से धर्म की स्थापना कर दी गई है। मान्यता इसी बाद इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहा जाने लगा। बता दें इसे देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। यहां जानें कब है 2020 में कब मनाई जाएगी कार्तिक माह की पूर्णिमा
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