कब पहनें पुखराज

Kaushik sharma
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कई वैज्ञानिकों के मतानुसार बृहस्पति पीले व हरिद्राभ वर्ण से रंजीत होता है। कुण्डली में गुरु बृहस्पति का अशुभ रूप में अवस्थित होने पर विद्या, बुद्धि, विचार, मन्त्रणा, न्यायपरायण आदि का लोप होना शुरू हो जाता है। इन सभी कारण एवं अन्य विभिन्न कारणों से अशुभ फल दिखाई देते है उसीके निदान के लिए धारण होता है पुष्पराग ( yellow shaphire). पुष्पराग व पुखराज के कई अन्य नाम है जैसे कि पीत स्फटिक, पितनान, पितरक्त, पीताष्मा, पुरुरल, मंजुमणि, बृहस्पति बल्लभ इत्यादि।
शुभ रत्न - जो पुष्पराग हरिद्राभ या पीत वर्ण धारण, काठिन्य युक्त, सुदर्शन, उज्ज्वल, छिद्र, दाग युक्त या फटा, विंदु आदि से रहित, शीतल स्पर्श, चमकदार परन्तु वर्तुलाकार ही श्रेष्ठ पुष्पराग कहलाता है। 

अशुभ रत्न - विंदु आदि दोषयुक्त, चमक विहीन, धुसर वर्ण युक्त, मालिन्ययुक्त, हल्का एवं विभिन्न प्रभायुक्त, उज्ज्वलता हीन, शर्करा इत्यादि आकर वाला अशुभ पुष्पराग कहलाता है। इनको धारण करने पर किसी भी प्रकार का शुभ फल प्राप्त होना तो दूर विभिन्न अशुभ फलों का दृष्टिगोचर होने लगता है। 

अन्य गुणवत्ता - असली पुष्पराग वातव्याधि विनाशक, कर्म में उत्साही, मेधा, बल, पुष्टि व कान्ति वृद्धि एवं दैहिक शक्ति व आयु की भी वृद्धि करने वाला होता है। 
उपादान - अलमुनियम, फ्लोरिन व बालूकार संमिश्रण से ही पुष्पराग का निर्माण होता है।  मैग्नीशियम का मिश्रण होने पर बादामी रंग धारण करने वाला होता है परंतु ताप देने के उपरांत ठंडा करने पर गुलाबी आभायुक्त भी होती है। 

प्राप्तिस्थान - श्रीलंका, जापान, ब्राज़ील, साइबेरिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, व वर्मा में पुष्पराग की प्राप्ति होती है।
नीलम व पुखराज दोनों shaphire जाती के रत्न है। केमिकल के भेद से दोनों का वर्ण भिन्न होता है। 

कब पहने yellow shaphire ?
गोचर में बृहस्पति अस्त, बाल्य, वृद्ध न हो तथा गुरु बृहस्पति के प्रिय माह पौष या चैत्र मास में शुभ तिथि युक्त शुक्लपक्ष के बृहस्पतिवार को या गुरुपुष्यामृत योग में इंडेक्स फिंगर में इसे धारण करने पर तथा रत्न का अंगुली से स्पर्श होने पर अत्यंत शुभदायक फलों की प्राप्ति होती है।

जातक चाहें तो हमारे कार्यालय से मंगवाकर भी इसे धारण कर सकते है। कार्यालय के फोन नम्बर- 7908125171 पर हमें सूचित करें। 

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