Vaikunth chaturdashi ( वैकुण्ठ चतुर्दशी )

Kaushik sharma
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Vaikunth chaturdashi






वैकुण्ठ चतुर्दशी-


वैकुण्ठ चतुर्दशी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करके भगवान् विष्णु की कमल पुष्पों से पूजा करनी चाहिए, तत्पश्चात् भगवान् शंकर की पूजा की जानी चाहिए। यह व्रत वैष्णवों एवं शैव मतानुयायियों तथा हिन्दू मनीषियों द्वारा भी किया जाता है।

व्रत-कथा -

एक बार भगवान् विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। यहाँ मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एकहजार स्वर्ण कमलपुष्पों से भगवान् विश्वनाथ के पूजन का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे, तो शिव जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान् श्रीहरि को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए एक हजार कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आँखें कमल के ही समान हैं, इसलिए मुझे' 'कमलनयन" और 'पुण्डरीकाक्ष' कहा जाता है।  


एक कमल के स्थान पर मैं अपनी आँख ही चढ़ा देता हूँ । ऐसा सोचकर वे अपनी कमल सदृश आँख चढ़ाने को उद्यत हो गए। भगवान् विष्णु की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न हो देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले, "हे विष्णो! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई भक्त नही है। यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जानी  जाएगी।  




इस दिन व्रत के साथ जो भी पहले आपका पूजन कर मेरा पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठलोक की प्राप्ति होगी।" भगवान् शिव ने विष्णु को करोड़ों सूर्यो के समान कान्तिमान सुदर्शन चक्र दिया और कहा कि "यह राक्षसों का अन्त करने वाला होगा।" ऐसा कहकर वो अंतर्ध्यान हो गए।




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